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करवा चौथ व्रत कथा – एक पावन प्रेम और समर्पण की परंपरा

By Admin

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करवा चौथ व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाने वाला एक अत्यंत पवित्र व्रत है। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत (बिना अन्न और पानी के उपवास) रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ती हैं।

इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत बड़ा है। इसमें सिर्फ उपवास ही नहीं बल्कि परिवार, प्रेम, विश्वास और आस्था की भी झलक देखने को मिलती है। आइए विस्तार से जानते हैं करवा चौथ व्रत कथा और इससे जुड़े धार्मिक पहलू 👇

करवा चौथ व्रत कथा 1

करवा चौथ व्रत कथा1
करवा चौथ व्रत कथा

करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार, एक नगर में एक साहूकार की बेटी और 7 बेटे रहते थे। साहूकार की बेटी का नाम करवा था। सभी 7 भाई अपनी बहन करवा से बहुत प्रेम करते थे। एक दिन की बात है, करवा अपने ससुराल से मायके आई थी और कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का व्रत रखा था। उस रात वह काफी परेशान थी। भाइयों ने देखा तो उससे परेशानी का कारण जानना चाहा।

करवा ने बताया कि आज वह निर्जला व्रत है। यह व्रत तब तक पूरा नहीं होगा, जब तक कि चंद्रमा को अर्घ्य न दे दिया जाए। चंद्रमा के उदित न होने से वह पारण नहीं कर सकती थी, तब तक वह भूख-प्यास से व्याकुल थी। बहन को इस हालत में देखकर सभी भाई परेशान हो गए। तभी उनमें से सबसे छोटा भाई घर के बाहर पीपल के पेड़ पर छलनी में एक दीपक रख देता है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि चंद्रोदय हो रहा है। उसके बाद वह अपनी बहन को जाकर बताता है कि चांद निकल आया है। यह सुनकर करवा खुश होती है। वह उस छलनी के दीपक को चांद समझकर अर्घ्य देती है और पारण करने के लिए बैठ जाती है।

वह अपने मुंह में पहला निवाला डालती है, तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा निवाला उठाती है तो उसमें बाल पड़ा होता है। तीसरा निवाला मुंह में डालती ही है कि उसे एक बुरी खबर सुनने को मिलती है। उसके पति का देहांत हो गया। यह सुनते ही वह बदहवास सी हो जाती है, रोने और चिल्लाने लगती है।

उसी बीच उसकी भाभी ने बताया कि व्रत के पारण के लिए उसके छोटे भाई ने क्या किया था। यह सुनकर करवा हैरान होती है, लेकिन वह प्रण करती है कि वह अपने पति को जीवित कराएगी। करवा अपने पति के शव के पास सालभर रहती है।

पति के शव के पास सूई जैसी घास उगती हैं, उसे एकत्र कर लेती है। उस बार जब करवा चौथ का व्रत आता है, तो उसकी सभी भाभी व्रत रखती हैं। पूजा के समय वह सभी करवा से आशीर्वाद के लिए आती हैं। तो करवा उनसे कहती है कि यम की सूई ले लो, पिय की सूई दे दो, मुझे भी सुहागन बना दो। वह एक-एक करके 6 भाभियों से कहती है, तो वे मना कर देती है। वे कहती हैं कि छोटे भाई की वजह से ऐसा हुआ है तो तुम उसकी पत्नी से कहो।

सबसे आखिर में छोटे भाई की पत्नी आती है तो करवा उससे भी वही बात कहती है। छोटी भाभी भी उसकी बात नहीं मानती है और उसे टालना चाहती है। लेकिन करवा उसे जोर से पकड़ लेती है। अंत में वह करवा की बात मान जाती है क्योंकि वह एक साल से कठोर तप कर रही थी।

छोटी भाभी अपने हाथ की सबसे छोटी अंगुली काटकर अमृत निकालती है और उसके मृत पति के मुख में डालती है। उसके प्रभाव से करवा का पति गणेश जी के नाम का स्मरण करते हुए जीवित हो जाता है। इस व्रत में गणेश जी और मां गौरी की कृपा से करवा का पति जीवित होता है। जो भी यह व्रत करे, उसे गणेश जी और मां गौरी की कृपा से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हो।

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करवा चौथ व्रत कथा 2

एक नगर में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। करवा चौथ के दिन साहूकार की पत्नी, उसकी बहुएं और बेटी ने व्रत रखा। रात होने पर साहूकार के सातों बेटे भोजन करने लगे और उन्होंने अपनी बहन से भी साथ में भोजन करने के लिए कहा। बहन ने कहा, “भाइयों! अभी चांद नहीं निकला है। चांद निकलने के बाद अर्घ्य देकर ही मैं भोजन करूंगी।”

भाइयों को बहन की भूख-प्यास देखी नहीं गई। उन्होंने नगर से बाहर जाकर अग्नि जलाई और छलनी में उसकी रोशनी दिखाकर वापस आए। उन्होंने बहन से कहा, “बहन! देखो चांद निकल आया है, अब अर्घ्य दो और भोजन कर लो।”

बहन बहुत खुश हुई और भाभियों से बोली, “आओ भाभी, तुम भी चांद को अर्घ्य दो।” लेकिन भाभियाँ सब जानती थीं। उन्होंने कहा, “बहन जी! तेरे भाई धोखा दे रहे हैं। ये असली चांद नहीं, आग की रोशनी है।”

भाभियों की बात अनसुनी कर साहूकार की बेटी ने भाइयों द्वारा दिखाई गई रोशनी को ही चांद समझकर अर्घ्य दे दिया और भोजन कर लिया। इससे गणेश जी अप्रसन्न हो गए। कुछ ही समय में उसका पति बहुत बीमार पड़ गया और घर की सारी संपत्ति इलाज में खत्म हो गई।

जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने पछतावा किया और गणेश जी से प्रार्थना करते हुए फिर से विधि-विधान से व्रत रखना शुरू किया। उसने सच्चे मन से पूजा की, छल-कपट त्याग दिया और श्रद्धा-भक्ति से व्रत किया।

उसकी भक्ति देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसके पति को जीवनदान दिया और उसके घर को धन-सम्पत्ति से भर दिया।

🌸 करवा चौथ व्रत का महत्व

करवा चौथ व्रत का सीधा संबंध पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास से है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से व्रत रखने वाली स्त्री के पति की आयु में वृद्धि होती है और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह व्रत उत्तर भारत के राज्यों जैसे — उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में विशेष रूप से मनाया जाता है।

  • 🪔 आस्था – देवी पार्वती की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना।
  • 💑 समर्पण – पति के लिए प्रेम और समर्पण व्यक्त करना।
  • 🌕 संस्कार – पारंपरिक पूजा और रीति-रिवाजों का पालन।

🪔 करवा चौथ व्रत कथा (पौराणिक कथा)

करवा चौथ की सबसे प्रसिद्ध कथा वीरवती और उसके सात भाइयों की है। इस कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे एक पतिव्रता स्त्री अपनी श्रद्धा और भक्ति से मृत्यु के मुंह से भी अपने पति को बचा सकती है।

वीरवती की कथा

बहुत समय पहले की बात है – एक राजा की सात बेटों और एक बेटी वीरवती थी। वह अपने भाइयों की बहुत प्यारी थी। शादी के बाद करवा चौथ के दिन वीरवती ने पहला व्रत रखा। दिन भर बिना अन्न और जल ग्रहण किए वह अपने पति की लंबी आयु के लिए उपवास करती रही।

शाम तक भूख और प्यास से उसका बुरा हाल हो गया। जब भाइयों ने अपनी बहन की स्थिति देखी तो वे दुखी हो गए। उन्होंने अपनी प्यारी बहन को खाना खिलाने के लिए एक उपाय निकाला। उन्होंने एक पीपल के पेड़ में दीपक जलाकर छल से चंद्रमा जैसा प्रकाश दिखाया और बहन से कहा – “देखो चांद निकल आया है, अब व्रत तोड़ दो।”

वीरवती ने तोड़ दिया व्रत

भाइयों की बातों में आकर वीरवती ने व्रत तोड़ दिया और पानी पी लिया। लेकिन जैसे ही उसने जल ग्रहण किया, उसे यह दुखद समाचार मिला कि उसके पति राजा की मृत्यु हो गई है। वीरवती के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह रोते-रोते अपने ससुराल पहुंची।

देवी पार्वती का आशीर्वाद

वीरवती का दुःख और उसका समर्पण देख देवी पार्वती प्रकट हुईं और बोलीं —
“हे पुत्री! तुम्हारा व्रत अधूरा रहने के कारण ही तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। लेकिन तुम्हारी सच्ची निष्ठा और भक्ति को देखकर मैं तुम्हें वरदान देती हूं — यदि तुम पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत रखो तो तुम्हारा पति पुनः जीवित हो जाएगा।”

इसके बाद वीरवती ने पूरे विधि-विधान से व्रत रखा और अपने सच्चे प्रेम व श्रद्धा से भगवान से प्रार्थना की। उसके तप और भक्ति से प्रभावित होकर यमराज ने उसके पति को जीवनदान दे दिया।

करवा चौथ का धार्मिक इतिहास और मान्यता

  1. 📜 महाभारत में उल्लेख – पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी अर्जुन की रक्षा के लिए करवा चौथ व्रत रखा था।
  2. 🕉️ करवा और यमराज कथा – एक और मान्यता है कि करवा नामक एक स्त्री ने अपने पति की रक्षा के लिए यमराज से युद्ध किया और अपने सच्चे प्रेम से उसे यमराज से छुड़ाया।
  3. 🌕 चंद्रमा की पूजा – चंद्रमा को करवा चौथ में विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि इसे दीर्घायु और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

करवा चौथ व्रत विधि (पूजा प्रक्रिया)

1. सुबह सर्गी (Sargi)

  • व्रत से पहले सास द्वारा दिया गया पारंपरिक नाश्ता खाया जाता है।
  • इसमें सूखे मेवे, फल, मिठाइयाँ और पारंपरिक व्यंजन होते हैं।

2. निर्जला व्रत

  • महिलाएं सूर्योदय से चंद्रमा निकलने तक बिना अन्न और जल के उपवास रखती हैं।
  • दिन भर पूजा की तैयारी और श्रृंगार में समय बिताया जाता है।

3. करवा चौथ पूजा विधि

  • शाम को करवा माता, गौरी माता और चंद्र देव की पूजा की जाती है।
  • करवा में जल भरकर पूजा की जाती है।
  • कथा सुनना व्रत का प्रमुख अंग होता है।

4. चाँद को अर्घ्य देना

  • जब चाँद निकलता है, महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं और फिर अपने पति को देखती हैं।
  • इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ा जाता है।

करवा चौथ और सुहाग का प्रतीक

करवा चौथ के दिन महिलाएं विशेष श्रृंगार करती हैं — जैसे साड़ी या लहंगा पहनना, मेंहदी लगाना, चूड़ियाँ पहनना, सिंदूर लगाना और पूजन के लिए तैयार होना। यह दिन सुहाग का प्रतीक माना जाता है।

प्रतीकमहत्व
मेंहदीसौभाग्य और प्रेम का प्रतीक
चूड़ीवैवाहिक जीवन की मिठास
सिंदूरपति की लंबी उम्र का प्रतीक
करवाअटूट रिश्ते और आस्था का प्रतीक

करवा चौथ व्रत कथा सुनने का महत्व

  • कथा सुनने से व्रत पूर्ण होता है।
  • देवी पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।
  • पति की आयु में वृद्धि होती है।
  • पारिवारिक जीवन में प्रेम और समृद्धि आती है।

निष्कर्ष

करवा चौथ व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि एक स्त्री के प्रेम, समर्पण और आस्था का उत्सव है। यह दिन पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। जिस प्रकार वीरवती ने अपने प्रेम और श्रद्धा से अपने पति को पुनर्जीवित किया, उसी प्रकार हर स्त्री की सच्ची भावना इस दिन भगवान तक पहुँचती है।

🌸 “जहां प्रेम और आस्था हो, वहां कोई भी कठिनाई बड़ी नहीं होती।” 🌸

FAQs – करवा चौथ व्रत कथा से जुड़े सवाल

Q1. करवा चौथ व्रत कब रखा जाता है?

👉 करवा चौथ व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है।

Q2. क्या व्रत बिना पानी के ही रखा जाता है?

👉 हाँ, पारंपरिक रूप से यह व्रत निर्जला (बिना पानी) होता है, लेकिन स्वास्थ्य के अनुसार महिलाएं पानी पी सकती हैं।

Q3. करवा चौथ की पूजा में किन देवताओं की आराधना होती है?

👉 देवी पार्वती, गणेश जी और चंद्र देव की पूजा की जाती है।

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