एकनाथ और कोढ़ी
एकनाथ नामक एक भक्त को अपने पिताजी की अंत्येष्टि करना था । परंपरा के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन खिलाना था । लेकिन, एकनाथ ने गरीब व निम्न जात के लोगों को खाने पर बुलाया। उसने इन सबको बड़ा भोज दिया। जब ब्राह्मणों को इसका समाचार मिला, तो सभी एकनाथ के घर जाकर उससे ऐसा पूछा ‘अंत्येष्टि के दिन केवल ब्राह्मणों को भोजन खिलाना था, लेकिन तुमने उस परंपरा को तोड़ दिया।
इस के लिए तुमको पाप परिहारार्थ कुछ संस्कारों को निभाना होगा। एकनाथ ने नदी में नहाकर प्रायश्चित धार्मिक संस्कार को संपन्न किया । जब सभी अनुष्ठान पूरा करके वापिस लौट रहे थे, तब एक कोढ़ रोगी उनके सामने प्रस्तुत हुआ और एकनाथ से ऐसा कहा ‘भैया! मैं निकट के गाँव से आया हूँ। मैं शिवजी का भक्त हूँ। मैं उनकी नित्य पूजा करता हूँ।
कल रात को वे मुझे स्वप्न में दिखाई दिए। उन्होंने मुझे आपसे मिलने के लिए कहा। उन्होंने मुझसे यह भी कहा था कि आपने गरीब व निम्नवर्ग के लोगों को भोजन खिलाकर बहुत सारा पुण्य कमाया है। अगर आप थोडा सा पुण्य मुझे प्रदान करोगे तो मेरा यह रोग दूर हो जायेगा ।’
एकनाथ ने निस्वार्थ रूप से जितना चाहिए था, उतना सहर्ष बाँटने को तैयार हो गया। उसने नदी का पानी थोड़ा लेकर कोढ़ी पर छिडका, आश्चर्य! कोढ़ी को रोग से मुक्ति मिली। ब्राह्मणों को एकनाथ का महत्व मालूम पड़ा और उनसे क्षमा याचना की।