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अभिराम भट्ट

By Admin

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अभिराम भट्ट


मुक्कडयूर नामक एक गाँव में अभिराम भट्ट का जन्म हुआ था। यह ब्राह्मण था। वचपन से ही उन्होंने संगीत कला में अपनी प्रतिभा दिखाई। ये जगन्माता अभिगमी के अनन्य भक्त थे। उन्होंने भौतिक जगत में अधिक श्रद्धा नहीं दिखाई। लोगों ने उसे पागल समझ रखा था।

सुरभोज राजा उस समच, अपना शासन चला रहा था। अमावस्या की रात को एक बार वह तिरुवकडवूर पहुँचा। वहाँ एक मंदिर में जगन्माता की पूजा में निमग्न अभिराम भट्ट को उस राजा ने देखा। राजा ने मंदिर के पुजारी से उस व्यक्ति के बारे में पूछताछ किया जो प्रार्थना में निमग्र था। तब पुजारी ने राजा से कहा ‘हे राजा! वह एक पागल व्यक्ति है। यह वेदों में विश्वास नहीं रखता। वह हरदम किसी अज्ञात देवी की प्रार्थना में लगा रहता है। राजा को उस व्यक्ति से बातचीत करने का मन हुआ। उसने भट्ट से पूछा ‘हे भट्ट! आज कौन सा दिन ?

अभिराम भट्ट

भगवती अभिरामी के दिव्य तेज की ओर देखकर भट्ट ने उत्तर दिया, यथा ‘आज पूर्णिमा का दिवास है।’ वास्तव में वह दिन पूर्णिमा का दिन नहीं था। जैसा हर किसी ने सोचा, उसी भाँति राजा ने भी यही मान लिया था कि भट्ट पागल व्यक्ति है। राजा के निकल जाने के बाद भट्ट ने अपनी भूल पहचान ली। उसने भगवती की प्रार्थना की ‘हे जगजननी! मुझे बचा लो, मेरी भूल को सही वना दो।’

उसने मंदिर में एक गड्ढा खोदी। उसमें अग्नि भी डाला। उसके बाद भट्ट ने ध्यान मुद्रा ग्रहण की। उसने भगवती माँ की प्रार्थना करना प्रारंभ किया ‘हे जगजननी! अगर तुम मेरी प्रार्थना नहीं सुनोगी तो मैं इस अग्निकुंड में कूद पडूंगा। उसने ध्यान करना प्रारंभ किया। उसने एक तख्ता लगाया जो अग्निकुंड के पास झूल रहा था। उस तख्ते पर भट्ट बैठ गया। यह तख्ता एक सी रस्सियों से चांधा हुआ था।’

अब उसने जगजननी पर अनेकानेक कीर्तनों की रचना करने लगा। एक गीत की रचना के बाद एक रस्सी को काटा। उसी प्रकार एक एक रस्सी, एक कीर्तन की रचना के तुरंत बाद काटने लगा। उसने उनासी रस्सियों को जैसे ही काटा, पश्चिम में सूरज ढलने लगा तथा चारों ओर अंधकार छाने लगा। उस समय भट्ट को जगजननी का दर्शन हुआ, उस माता का साक्षात्कार हुआ। उसके दर्शन से भाव विभोर होकर भट्ट ने ऐसा कहा ‘हे जगजननी, मेरी आँखों की रोशनी प्रदान कगे।

वह माँ की निरंतर स्तुति करता गया। भगवती ने अपने कर्णफूल की निकालकर आसमान की ओर फेंका। वह आकाश में चंद्रमा की भांति चमकने लगा। माँ अति प्रसन्न होकर भट्ट से कहने लगी ‘हे भक्त! मैं ने तुम्हारे वचनों को सत्य बना दिया। तुम निरंतर गाते जाओ।’ उस गाँव की प्रजा अत्यंत अश्चर्यचकित हुई। अमावस्या के दिन चंद्रमा का चमकना तथा पूर्णिमा के दिन का आभास दिलाना, यह सब कुछ आश्चर्य के विषय थे। सभी लोग आश्चर्यचकित होकर ऐसा कहने लगे ‘अ‌द्भुत ! यह तो भट्ट का चमत्कार है ।’

राजा ने स्वयं चाहर आकर इस चमत्कार को देखा। यह भट्ट के पास भागता हुआ आया। वह भट्ट के चरणों में गिर पड़ा। भट्ट ने ‘अभिरामी अंधादि की रचना की थी। ये संख्या में एक सी थे। इस रचना के लिए राजा ने भट्ट को पैसे भेंट में दिया।

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