[श्री रङ्ग अवधूत स्वामि विरचित श्री दत्तभवानी]
जय योगीश्वर दत्त दयाल ।
तु ज एक जगमां प्रतिपाल ॥ 1॥
अत्र्यनसूया करी निमित्त ।
प्रगट्यो जगकारण निश्चित ॥ 2॥
ब्रह्माहरिहरनो अवतार ।
शरणागतनो तारणहार ॥ 3॥
अन्तर्यामि सतचितसुख ।
बहार सद्गुरु द्विभुज सुमुख् ॥ 4॥
झोली अन्नपुर्णा करमाह्य ।
शान्ति कमन्डल कर सोहाय ॥ 5॥
क्याय चतुर्भुज षडभुज सार ।
अनन्तबाहु तु निर्धार ॥ 6॥
आव्यो शरणे बाल अजाण ।
उठ दिगम्बर चाल्या प्राण ॥ 7॥
सुणी अर्जुण केरो साद ।
रिझ्यो पुर्वे तु साक्शात ॥ 8॥
दिधी रिद्धि सिद्धि अपार ।
अन्ते मुक्ति महापद सार ॥ 9॥
किधो आजे केम विलम्ब ।
तुजविन मुजने ना आलम्ब ॥ 10॥
विष्णुशर्म द्विज तार्यो एम ।
जम्यो श्राद्ध्मां देखि प्रेम ॥ 11॥
जम्भदैत्यथी त्रास्या देव ।
किधि म्हेर ते त्यां ततखेव ॥ 12॥
विस्तारी माया दितिसुत ।
इन्द्र करे हणाब्यो तुर्त ॥ 13॥
एवी लीला क इ क इ सर्व ।
किधी वर्णवे को ते शर्व ॥ 14॥
दोड्यो आयु सुतने काम ।
किधो एने ते निष्काम ॥ 15॥
बोध्या यदुने परशुराम ।
साध्यदेव प्रह्लाद अकाम ॥ 16॥
एवी तारी कृपा अगाध ।
केम सुने ना मारो साद ॥ 17॥
दोड अन्त ना देख अनन्त ।
मा कर अधवच शिशुनो अन्त ॥ 18॥
जोइ द्विज स्त्री केरो स्नेह ।
थयो पुत्र तु निसन्देह ॥ 19॥
स्मर्तृगामि कलिकाल कृपाल ।
तार्यो धोबि छेक गमार ॥ 20॥
पेट पिडथी तार्यो विप्र ।
ब्राह्मण शेठ उगार्यो क्षिप्र ॥ 21॥
करे केम ना मारो व्हार ।
जो आणि गम एकज वार ॥ 22॥
शुष्क काष्ठणे आंण्या पत्र ।
थयो केम उदासिन अत्र ॥ 23॥
जर्जर वन्ध्या केरां स्वप्न ।
कर्या सफल ते सुतना कृत्स्ण ॥ 24॥
करि दुर ब्राह्मणनो कोढ ।
किधा पुरण एना कोड ॥ 25॥
वन्ध्या भैंस दुझवी देव ।
हर्यु दारिद्र्य ते ततखेव ॥ 26॥
झालर खायि रिझयो एम ।
दिधो सुवर्ण घट सप्रेम ॥ 27॥
ब्राह्मण स्त्रिणो मृत भरतार ।
किधो सञ्जीवन ते निर्धार ॥ 28॥
पिशाच पिडा किधी दूर ।
विप्रपुत्र उठाड्यो शुर ॥ 29॥
हरि विप्र मज अन्त्यज हाथ ।
रक्षो भक्ति त्रिविक्रम तात ॥ 30॥
निमेष मात्रे तन्तुक एक ।
पहोच्याडो श्री शैल देख ॥ 31॥
एकि साथे आठ स्वरूप ।
धरि देव बहुरूप अरूप ॥ 32॥
सन्तोष्या निज भक्त सुजात ।
आपि परचाओ साक्षात ॥ 33॥
यवनराजनि टाली पीड ।
जातपातनि तने न चीड ॥ 34॥
रामकृष्णरुपे ते एम ।
किधि लिलाओ की तेम ॥ 35॥
तार्या पत्थर गणिका व्याध ।
पशुपङ्खिपण तुजने साध ॥ 36॥
अधम ओधारण तारु नाम ।
गात सरे न शा शा काम ॥ 37॥
आधि व्याधि उपाधि सर्व ।
टले स्मरणमात्रथी शर्व ॥ 38॥
मुठ चोट ना लागे जाण ।
पामे नर स्मरणे निर्वाण ॥ 39॥
डाकण शाकण भेंसासुर ।
भुत पिशाचो जन्द असुर ॥ 40॥
नासे मुठी दीने तुर्त ।
दत्त धुन साम्भालता मुर्त ॥ 41॥
करी धूप गाये जे एम ।
दत्तबावनि आ सप्रेम ॥ 42॥
सुधरे तेणा बन्ने लोक ।
रहे न तेने क्यांये शोक ॥ 43॥
दासि सिद्धि तेनि थाय ।
दुःख दारिद्र्य तेना जाय ॥ 44॥
बावन गुरुवारे नित नेम ।
करे पाठ बावन सप्रेम ॥ 45॥
यथावकाशे नित्य नियम ।
तेणे कधि ना दण्डे यम ॥ 46॥
अनेक रुपे एज अभङ्ग ।
भजता नडे न माया रङ्ग ॥ 47॥
सहस्र नामे नामि एक ।
दत्त दिगम्बर असङ्ग छेक ॥ 48॥
वन्दु तुजने वारंवार ।
वेद श्वास तारा निर्धार ॥ 49॥
थाके वर्णवतां ज्यां शेष ।
कोण राङ्क हुं बहुकृत वेष ॥ 50॥
अनुभव तृप्तिनो उद्गार ।
सुणि हंशे ते खाशे मार ॥ 51॥
तपसि तत्त्वमसि ए देव ।
बोलो जय जय श्री गुरुदेव ॥ 52॥
॥ अवधूत चिन्तन श्री गुरुदेव दत्त ॥