माँ दुर्गा का ध्यान मंत्र, हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा की उपासना के लिए प्रयुक्त एक शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र का उच्चारण और ध्यान, माँ दुर्गा के आदिशक्ति और शक्ति के रूपों के प्रति श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है यह मंत्र आत्मा की ऊर्जा को शुद्ध करने और माँ दुर्गा के प्रति विश्वास और समर्पण को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखता है, ताकि भक्त अपने जीवन में सार्थकता, शांति, और सफलता प्राप्त कर सकें।
माँ दुर्गा ध्यान मंत्र । Durga Dhyan Mantra। महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र:।
दशभुजा दुर्गा ध्यान मंत्र:
ॐ जटाजूटसमायुक्तां मर्द्धेन्दुकृतशेखराम्।
लोचनत्रयसंयुक्तां पूर्णेन्दुसदृशाननाम् ॥
तप्तकाञ्चनवर्णाभां सुप्रतिष्ठां सुलोचनाम्।
नवयौवनसम्पन्नां सर्वाभरणभूषिताम् ॥
सुचारुदशनां देवीं पीनोन्नतपयोधराम्।
त्रिभङ्गस्थानसंस्थानां महिषासुरमद्दिनीम्।
मृणालायतसंस्पर्श दशबाहुसमन्विताम्।
त्रिशूलं दक्षिणे ध्येयं खड़्गं चक्रं क्रमादधः ॥
तीक्ष्णबाणं तथाशक्तिं दक्षिणे सन्निबेशयेत्।
खेटकं पूर्णचापञ्च पाशमङ्कुशमेव च ॥
घण्टां बा परशुं बापि बामतः सन्निबेशयेत्।
अधस्तान्महिषं तद्वद्विशिरस्कं प्रदर्शयेत् ॥
शिरश्छेदोद्भवं बीह्मेद्दानवं खड़्गपाणिनम्।
हृदि शूलेन निर्भिन्नं निर्यदन्त्रविभूषितम् ॥
रक्तारक्तीकृताङ्गं च रक्तबिस्फुरितेक्षणम्।
बेष्टितं नागपाशेन भ्रुकुटी भीषणाननम् ॥
सपाश-बामहस्तेन धृतकेशंच दुर्गया।
रमद्रुधिरबज्रंच देव्याः सिंहं प्रदर्शयेत् ॥
देव्याः दक्षिणं पादं समं सिंहोपरिस्थितम्।
कीधिदूर्धं तथा बाम-मङ्गुष्ठं महिषोपरि।
प्रसन्नवदनां देवीं सर्वकाम फलप्रदाम्।
शत्रुङ्कयकरीं देवीं दैत्यदानव दर्पहां।।
स्तुयमानंच तद्रूप-ममरैः सन्निबेशयेत्।
उग्रचण्डा प्रचण्डा च चण्डोग्रा चण्डनायिका।।
चण्डा चण्डवर्ती चैव चण्डरूपातिचण्डिका।
अष्टाभिः शक्तिभिस्ताभिः सततं परिवेष्टिताम्।
चिन्तयेज्जगतां धात्री धर्मकामार्थमोक्षदाम्।
दुर्गा ध्यान मंत्र के हिंदी अर्थ
श्लोक 1 : वह जिनके बाल ब्रह्मा के द्वारा जटित हैं, वही जिनका मस्तक चंद्रमा द्वारा सजाया गया है, जिनके तीन नेत्र हैं, वही जिनका चेहरा पूर्णिमा चंद्रमा की तरह है।
श्लोक 2: वह जिनका रंग जैसे भट्टी में पिघला सोना हो, वही जिनकी उत्तम तरह से स्थिति है, वही जिनकी शरीर में सुन्दर नेत्र हैं, और वही जिन्होंने युवा आकृति को प्राप्त किया है, वही जिनका शरीर सभी प्रकार के आभूषणों से युक्त है।
श्लोक 3 :वह देवी जो सुंदर दस बाहुओं वाली है, जिनका स्तन ऊपर उठा हुआ है, जिन्होंने त्रिभंगी रूप में स्थान लिया है और महिषासुर का संहार किया है।
श्लोक 4 :वह देवी जिनका शरीर मृणाली से स्पर्श करता है और जिनके पास दस बाहुएँ हैं, उन्हें त्रिशूल और दक्षिणा में खड़ग के साथ ध्यान किया जाना चाहिए, और वह चक्र को भी अपने क्रम से धारण करती है।
श्लोक 5: वह देवी जो तीक्ष्ण तीर और शक्तिशाली आयुध लेकर दक्षिण (दाहिनी) हाथ में बैठी है, वही जिनके पास खेटक, पूर्ण चाप, पाश, और एक अंकुश है।
श्लोक 6: उसके दाहिने (बायें) हाथ में घण्टा, परशु, और बाएं (बायें) हाथ में बाण है, और उसके पैरों के नीचे महिषासुर को विशिरस्क रूप में प्रकट है।
श्लोक 7: जिनका मस्तक खड़्ग से उत्पन्न हुआ है, जो दानवों का वध करने वाली है, जिनका हृदय शूल (त्रिशूल) से भिन्न है, जो बिना आस्तीन में अंगभूषणों से युक्त है।
श्लोक 8: उनके शरीर का रंग लाल-लाल है, उनके आंखों का रंग रक्त से बीमल है, उनका शरीर नागपाश (एक प्रकार का आयुध) से बँधा हुआ है, और उनका मुख भयानक है।
श्लोक 9: वह दुर्गा देवी, जिनके बाएँ हाथ में पाश (रस्मी रूप से दिखाई देने वाला पाश) और बायें हाथ में केश (मैंसे पकड़ने वाला केश, बाल) धारण करती है, वह जिनके मुख से रक्त और वज्र (देवताओं के आयुध) निकलते हैं और वह देवी जिनके द्वारके पास सिंह (शेर) को प्रकट करती है।
श्लोक 10: उनका दक्षिण (दाहिना) पाद सम रूप से सिंह के ऊपर स्थित है, उनका कीचक पाद (वाम-पाद) भी महिष के ऊपर है।
श्लोक 11: वह देवी जिनका चेहरा प्रसन्नता से भरपूर है, जो सभी कामों की पूर्ति करने वाली है, जो शत्रुओं और दैत्यों के घमंड को नष्ट करने वाली है।
श्लोक 12: उसकी महिमा को व्यक्त करने वाले मेरे मन्त्रगण उसके उग्रचण्डा, प्रचण्डा, और चण्डोग्रा स्वरूप में बैठते हैं, वह जिनके रूप के आदि हैं, और वह जिन्होंने चण्ड मुखी देवी की स्तुति की है।
श्लोक 13: वह देवी जिन्का नाम चण्डा, चण्डवर्ती, चण्डरूपा, और अष्टभुजा है, वही जिनके आसपास निरंतर आठ शक्तियाँ हैं और वही जिन्होंने सदैव जगत के धरण के धरन (सर्वभूतों के पालक) के रूप में ध्यान किया है, वह धर्म, काम, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए है।
दुर्गा ध्यान मंत्र pdf
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