अष्ट भैरव नाम | काल भैरव के 8 नाम
भैरव उपासना के दो शाखाएं, बटुक भैरव और काल भैरव, काफी प्रसिद्ध हैं। बटुक भैरव, जो अपने भक्तों को सौम्य स्वरूप में अभय देने वाले प्रसिद्ध हैं, वहीं काल भैरव, आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हैं। काल भैरव को भैरवनाथ का युवा रूप और बटुक भैरव को भैरवनाथ का बाल रूप कहा गया है।
पुराणों में भैरव का विस्तार से उल्लेख है। तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव के रूप में उल्लेखित हैं, जैसे
- असितांग-भैरव,
- रुद्र-भैरव,
- चंद्र-भैरव,
- क्रोध-भैरव,
- उन्मत्त-भैरव,
- कपाली-भैरव,
- भीषण-भैरव तथा
- संहार-भैरव।
कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह शिवजी का एक गण बताया गया है। उनका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में आठ पूज्य भैरवों का उल्लेख है।जैसे
- महाभैरव,
- संहार भैरव,
- असितांग भैरव,
- रुद्र भैरव,
- कालभैरव
- क्रोध भैरव
- ताम्रचूड़ भैरव तथा
- चंद्रचूड़ भैरव
इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है – “भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥”
काल भैरव नमस्कार मंत्र-
ॐ श्री भैरव्यै , ॐ मं महाभैरव्यै , ॐ सिं सिंह भैरव्यै , ॐ धूं धूम्र भैरव्यै, ॐ भीं भीम भैरव्यै , ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै , ॐ वं वशीकरण भैरव्यै , ॐ मों मोहन भैरव्यै |
॥ अष्टभैरव ध्यानम् ॥
असिताङ्गोरुरुश्चण्डः क्रोधश्चोन्मत्तभैरवः ।
कपालीभीषणश्चैव संहारश्चाष्टभैरवम् ॥
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काल भैरव ध्यान मंत्र | अष्ट भैरव ध्यान स्तोत्र
१) असिताङ्ग भैरव ध्यानम्
रक्तज्वालजटाधरं शशियुतं रक्ताङ्ग तेजोमयंअस्ते शूलकपालपाशडमरुं लोकस्य रक्षाकरम् ।
निर्वाणं शुनवाहनन्त्रिनयनं अनन्दकोलाहलं
वन्दे भूतपिशाचनाथ वटुकं क्षेत्रस्य पालं शिवम् ॥ १ ॥
२) रूरुभैरव ध्यानम्
निर्वाणं निर्विकल्पं निरूपजमलं निर्विकारं क्षकारंहुङ्कारं वज्रदंष्ट्रं हुतवहनयनं रौद्रमुन्मत्तभावम् ।
भट्कारं भक्तनागं भृकुटितमुखं भैरवं शूलपाणिं
वन्दे खड्गं कपालं डमरुकसहितं क्षेत्रपालन्नमामि॥ २ ॥
३) चण्डभैरव ध्यानम्
बिभ्राणं शुभ्रवर्णं द्विगुणदशभुजं पञ्चवक्त्रन्त्रिणेत्रं
दानञ्छत्रेन्दुहस्तं रजतहिममृतं शङ्खभेषस्यचापम् ।
शूलं खड्गञ्च बाणं डमरुकसिकतावञ्चिमालोक्य मालां सर्वाभीतिञ्च दोर्भीं भुजतगिरियुतं भैरवं सर्वसिद्धिम् ॥ ३ ॥
४) क्रोधभैरव ध्यानम्
उद्यद्भास्कररूपनिभन्त्रिनयनं रक्ताङ्ग रागाम्बुजं
भस्माद्यं वरदं कपालमभयं शूलन्दधानं करे ।
नीलग्रीवमुदारभूषणशतं शन्तेशु मूढोज्ज्वलं
बन्धूकारुण वास अस्तमभयं देवं सदा भावयेत् ॥ ४ ॥
५) उन्मत्तभैरव ध्यानम्
एकं खट्वाङ्गहस्तं पुनरपि भुजगं पाशमेकन्त्रिशूलं
कपालं खड्गहस्तं डमरुकसहितं वामहस्ते पिनाकम् ।
चन्द्रार्कं केतुमालां विकृतिसुकृतिनं सर्वयज्ञोपवीतं
कालं कालान्तकारं मम भयहरं क्षेत्रपालन्नमामि ॥ ५ ॥
६) कपालभैरव ध्यानम्
वन्दे बालं स्फटिक सदृशं कुम्भलोल्लासिवक्त्रं
दिव्याकल्पैफणिमणिमयैकिङ्किणीनूपुनञ्च ।
दिव्याकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं द्विनेत्रं
हस्ताद्यां वा दधानान्त्रिशिवमनिभयं वक्रदण्डौ कपालम् ॥ ६ ॥
७) भीषणभैरव ध्यानम्
७) भीषणभैरव ध्यानम्
त्रिनेत्रं रक्तवर्णञ्च सर्वाभरणभूषितम्
कपालं शूलहस्तञ्च वरदाभयपाणिनम् ।
सव्ये शूलधरं भीमं खट्वाङ्गं वामकेशवम् ॥ रक्तवस्त्रपरिधानं रक्तमाल्यानुलेपनम् ।
नीलग्रीवञ्च सौम्यञ्च सर्वाभरणभूषितम् ॥
नीलमेख समाख्यातं कूर्चकेशन्त्रिणेत्रकम् ।
नागभूषञ्च रौद्रञ्च शिरोमालाविभूषितम् ॥
नूपुरस्वनपादञ्च सर्प यज्ञोपवीतिनम् ।
किङ्किणीमालिका भूष्यं भीमरूपं भयावहम् ॥ ७ ॥
८) संहार भैरव ध्यानम्
एकवक्त्रन्त्रिणेत्रञ्च हस्तयो द्वादशन्तथा ।
डमरुञ्चाङ्कुशं बाणं खड्गं शूलं भयान्वितम् ॥
धनुर्बाण कपालञ्च गदाग्निं वरदन्तथा ।
वामसव्ये तु पार्श्वेन आयुधानां विधन्तथा ॥
नीलमेखस्वरूपन्तु नीलवस्त्रोत्तरीयकम् ।
कस्तूर्यादि निलेपञ्च श्वेतगन्धाक्षतन्तथा ॥
श्वेतार्क पुष्पमालां त्रिकोट्यङ्गण सेविताम् ।
सर्वालङ्कार संयुक्तां संहारञ्च प्रकीर्तितम् ॥ ८ ॥
इति श्री भैरव स्तुति निरुद्र कुरुते ।
काल भैरव ध्यान मंत्र के लाभ
- भैरव जी के स्त्रोत मंत्र का जाप करने से जातक को जीवन में सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
- व्यवसाय या रोजगार में उन्नति होती है।
- धन और वैभव में वृद्धि होती है, और वह सर्वशक्तिशाली बन जाता है।
- कोई संदेह नहीं है कि इस मंत्र का जाप करने से शत्रु से मुक्ति, जेल से मुक्ति, ग्रह पीड़ा या रोगों से छुटकारा मिलता है।
- इस जीवन में व्यक्ति सर्व सुखों का आनंद लेता है और राजा की भाँति धन की प्राप्ति होती है।
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