जानें हिंदू धर्म में क्या हैं 32 प्रकार के सेवापराध ?

नित्य पूजा हिंदू धर्म में भगवान की आराधना का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें भगवान को विशेष रूप से भोग अर्पित किया जाता है। यह भोग भगवान की कृपा पाने और आभार प्रकट करने का एक तरीका है। लेकिन पूजा करते समय कुछ नियमों और अनुशासन का पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है, ताकि पूजा विधिपूर्वक हो और भगवान की कृपा प्राप्त हो सके। खासकर भोग चढ़ाने और भगवान की सेवा में की जाने वाली गलतियों से बचना अत्यंत जरूरी है। शास्त्रों में 32 प्रकार के सेवापराध (अपराध) बताए गए हैं, जिनका ध्यान रखना चाहिए।

भोग चढ़ाने के बाद क्या करें?

शास्त्रों के अनुसार, भगवान को चढ़ाया हुआ भोग पूजा संपन्न होते ही तुरंत हटा लेना चाहिए। चढ़ाए हुए भोग को प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित कर देना उचित माना जाता है। भोग को भगवान के सामने बहुत देर तक रखने से बचना चाहिए क्योंकि भगवान की पूजा का प्रत्येक चरण एक विशेष समय पर संपन्न होना चाहिए।

प्रसाद का वितरण श्रद्धालुओं में समर्पण और प्रेम का प्रतीक होता है, जो उन्हें भगवान की कृपा का भागीदार बनाता है। अतः भोग चढ़ाने के बाद उसे तुरंत प्रसाद के रूप में सबको बांटना एक आवश्यक धार्मिक कर्तव्य है।

32 प्रकार के सेवापराध

भगवान की सेवा और पूजा करते समय कुछ सामान्य और विशेष नियमों का पालन करना जरूरी है। शास्त्रों में 32 प्रकार के सेवापराध बताए गए हैं, जो भगवान की पूजा के दौरान कभी भी नहीं करने चाहिए। इन अपराधों से बचना आवश्यक है ताकि पूजा विधिपूर्वक संपन्न हो और भगवान की कृपा प्राप्त हो सके। ये सेवापराध निम्नलिखित हैं:

यहां 32 प्रकार के सेवापराधों को विस्तृत पैराग्राफ़ में प्रस्तुत किया गया है:

1. सवारी पर चढ़कर या खड़ाऊं पहनकर मंदिर में प्रवेश करना

मंदिर में प्रवेश करते समय पादुकाओं (जूते) और सवारी का उपयोग करना धार्मिक परंपराओं और आदर्शों के खिलाफ है। मंदिर एक पवित्र स्थल होता है जहाँ भगवान की पूजा होती है। ऐसे स्थान पर सवारी या जूते पहनकर प्रवेश करना भगवान की पवित्रता और सम्मान को नकारता है। यह धार्मिक मान्यता की अनदेखी को दर्शाता है और श्रद्धालुओं को आदर्श पूजा विधियों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।

2. रथ यात्रा या जन्माष्टमी जैसे उत्सवों में सम्मिलित न होना

रथ यात्रा और जन्माष्टमी जैसे प्रमुख धार्मिक उत्सवों में भाग लेना हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण परंपराओं में शामिल है। इन अवसरों पर सम्मिलित न होना न केवल धार्मिक अनुष्ठानों से विमुखता को दर्शाता है, बल्कि समाज और धर्म की भावना को भी कमजोर करता है। उत्सवों में भाग लेकर श्रद्धालु अपने धर्म और परंपराओं के प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

3. श्रीविग्रह के दर्शन के बाद प्रणाम न करना

भगवान के श्रीविग्रह के दर्शन के बाद प्रणाम करना एक धार्मिक आदर्श है जो श्रद्धा और विनम्रता को प्रकट करता है। दर्शन के बाद प्रणाम न करना यह दर्शाता है कि श्रद्धालु भगवान के प्रति अपनी आस्था और सम्मान को प्रकट नहीं कर रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक आचरण है जो भक्त और भगवान के बीच एक गहरे संबंध को स्थापित करता है।

4. अशुचि अवस्था में भगवान का दर्शन करना

अशुचि अवस्था में भगवान का दर्शन करना पवित्रता और धार्मिक नियमों का उल्लंघन है। हिंदू धर्म में, पवित्रता एक महत्वपूर्ण तत्व है और इसे बनाए रखने के लिए विशेष नियम होते हैं। अशुचि अवस्था में दर्शन करने से न केवल व्यक्तिगत पवित्रता में कमी आती है, बल्कि पूजा स्थल की पवित्रता भी प्रभावित होती है।

5. एक हाथ से प्रणाम करना

प्रणाम करते समय दोनों हाथों का उपयोग करना आदर्श है, क्योंकि यह पूर्ण श्रद्धा और सम्मान को दर्शाता है। एक हाथ से प्रणाम करना असमर्थता और लापरवाही का संकेत हो सकता है, जो भगवान के प्रति सम्मान की कमी को दर्शाता है। सही तरीके से प्रणाम करके भक्त अपनी विनम्रता और श्रद्धा को प्रकट करते हैं।

6. भगवान की परिक्रमा करते समय उनके सामने रुकना या सामने ही परिक्रमा करना

भगवान की परिक्रमा करते समय भगवान के सामने रुकना या सामने से परिक्रमा करना आदर्श नहीं माना जाता है। यह भगवान के प्रति सम्मान और पवित्रता की कमी को दर्शाता है। परिक्रमा के दौरान भगवान के सामने रुकना उनके प्रति विनम्रता और श्रद्धा की कमी को दिखाता है, और यह पूजा की परंपराओं के खिलाफ है।

7. श्रीविग्रह के सामने पैर पसार कर बैठना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने पैर पसार कर बैठना धार्मिक आदर्शों के खिलाफ है। यह भगवान के प्रति सम्मान और श्रद्धा की कमी को दर्शाता है। भगवान के सामने बैठते समय उचित मुद्रा और सम्मान बनाए रखना चाहिए, ताकि पूजा का उद्देश्य और पवित्रता बनी रहे।

8. घुटने मोड़कर बैठना या हाथों से घुटने लपेटकर बैठना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने घुटने मोड़कर बैठना या हाथों से घुटने लपेटकर बैठना उचित नहीं माना जाता। यह बैठने की मुद्रा भगवान के प्रति सम्मान और पवित्रता को प्रभावित करती है। सही मुद्रा में बैठकर पूजा करना आदर्श है, जो श्रद्धा और सम्मान को प्रकट करता है।

9. भगवान के श्रीविग्रह के सामने सोना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने सोना एक गंभीर धार्मिक उल्लंघन है। भगवान के सामने सोना पवित्रता और सम्मान की कमी को दर्शाता है। यह पूजा स्थल की पवित्रता को नकारता है और भक्तों को भगवान के सामने उचित सम्मान देने की आवश्यकता है।

10. श्रीविग्रह के सामने भोजन करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने भोजन करना धार्मिक परंपराओं के खिलाफ है। भगवान के सामने भोजन करने से आदर और श्रद्धा की कमी का संकेत मिलता है। पूजा स्थल पर भोजन करने से भगवान की पवित्रता को अपमानित किया जाता है, इसलिए इसे टालना चाहिए।

11. श्रीविग्रह के सामने जोर से बोलना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने जोर से बोलना उचित नहीं है। शांति और श्रद्धा की भावना बनाए रखना महत्वपूर्ण है। जोर से बोलने से भगवान के प्रति सम्मान और ध्यान की कमी का संकेत मिलता है, जो पूजा की परंपराओं के खिलाफ है।

12. श्रीविग्रह के सामने झूठ बोलना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने झूठ बोलना धार्मिक आस्थाओं और सच्चाई के खिलाफ है। यह न केवल व्यक्तिगत धर्म का उल्लंघन है, बल्कि पूजा स्थल की पवित्रता को भी प्रभावित करता है। सच्चाई और ईमानदारी को बनाए रखना भगवान के प्रति श्रद्धा का महत्वपूर्ण भाग है।

13. श्रीविग्रह के सामने आपस में बातचीत करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने आपस में बातचीत करना पूजा की एकाग्रता और सम्मान की कमी को दर्शाता है। भगवान के सामने बातचीत करना पवित्रता और ध्यान की अनुपस्थिति को संकेत करता है। इस स्थिति में शांतिपूर्वक पूजा करने से भगवान के प्रति श्रद्धा प्रकट होती है।

14. श्रीविग्रह के सामने कलह करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने कलह करना एक गंभीर धार्मिक उल्लंघन है। यह भगवान के सामने अशांति और विवाद को प्रकट करता है, जो पूजा की पवित्रता को प्रभावित करता है। धार्मिक स्थलों पर शांति और सामंजस्य बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

15. श्रीविग्रह के सामने चिल्लाना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने चिल्लाना आदर और शांति की कमी को दर्शाता है। यह पूजा स्थल की पवित्रता को नकारता है और श्रद्धा के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। भगवान के सामने शांति बनाए रखना आवश्यक है।

16. श्रीविग्रह के सामने किसी को पीड़ा देना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने किसी को पीड़ा देना धार्मिक मान्यता के खिलाफ है। यह भगवान के सामने सम्मान और करुणा की कमी को दर्शाता है। पूजा स्थल पर सदभावना और शांति बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

17. श्रीविग्रह के सामने किसी पर अनुग्रह करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने किसी पर अनुग्रह करना धार्मिक अनुशासन का उल्लंघन हो सकता है। इस स्थिति में भगवान के सामने श्रद्धा और सम्मान बनाए रखना चाहिए, न कि अनुग्रह की बातें करना।

18. श्रीविग्रह के सामने निष्ठुर वचन बोलना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने निष्ठुर वचन बोलना आदर और सम्मान की कमी को दर्शाता है। यह धार्मिक आस्थाओं के खिलाफ है और पूजा स्थल की पवित्रता को प्रभावित करता है।

19. श्रीविग्रह के सामने कंबल से पूरे शरीर को ढक लेना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने कंबल से पूरे शरीर को ढक लेना पूजा के आदर्शों के खिलाफ है। यह भगवान के सामने सम्मान की कमी को दर्शाता है और पूजा स्थल की पवित्रता को प्रभावित करता है।

20. श्रीविग्रह के सामने किसी की निंदा करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने किसी की निंदा करना धार्मिक आदर्शों के खिलाफ है। यह आदर और सम्मान की कमी को दर्शाता है और पूजा स्थल की पवित्रता को प्रभावित करता है।

21. श्रीविग्रह के सामने दूसरे की स्तुति करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने किसी की अधिक स्तुति करना पूजा के उद्देश्य को प्रभावित करता है। इसका मतलब है कि ध्यान और सम्मान भगवान के बजाय व्यक्ति की ओर मोड़ा जा रहा है, जो उचित नहीं है।

22. श्रीविग्रह के सामने अश्लील वचन बोलना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने अश्लील वचन बोलना धार्मिक मान्यता और पवित्रता के खिलाफ है। यह पूजा स्थल की पवित्रता और श्रद्धा को नकारता है, इसलिए ऐसे शब्दों से बचना चाहिए।

23. श्रीविग्रह के सामने अधोवायु का त्याग करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने अधोवायु का त्याग करना पूजा की पवित्रता और सम्मान को प्रभावित करता है। यह धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है और पूजा स्थल पर उचित आचरण बनाए रखना आवश्यक है।

24. सामर्थ्य होते हुए भी सामान्य उपचार से भगवान की पूजा करना

जब किसी के पास सामर्थ्य हो, तो सामान्य उपचार से भगवान की पूजा करना उचित नहीं है। इसका मतलब है कि भगवान को सबसे अच्छा अर्पित नहीं किया जा रहा है, जो धार्मिक आदर्शों के खिलाफ है।

25. भगवान को निवेदित किए बिना कुछ भी खाना-पीना

भगवान को निवेदित किए बिना खाना-पी

ना करना धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है। यह भगवान के प्रति सम्मान की कमी को दर्शाता है और पूजा की पवित्रता को प्रभावित करता है।

26. जिस ऋतु के फल पहले भगवान को अर्पित न करना

ऋतु के फल पहले भगवान को अर्पित करना आदर्श है। इसे न करने से भगवान के प्रति सम्मान और आदर की कमी का संकेत मिलता है, और यह पूजा की विधियों का उल्लंघन हो सकता है।

27. फल या सब्जी के खराब हिस्से को भगवान को चढ़ाना

फल या सब्जी के खराब हिस्से को भगवान को चढ़ाना भगवान की पवित्रता और श्रद्धा का उल्लंघन है। यह सही पूजा विधियों और आदर्शों के खिलाफ है।

28. श्रीविग्रह के सामने पीठ करके बैठना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने पीठ करके बैठना सम्मान की कमी को दर्शाता है। यह धार्मिक आदर्शों का उल्लंघन है और भगवान के प्रति श्रद्धा की कमी को प्रकट करता है।

29. श्रीविग्रह के सामने दूसरे को प्रणाम करना

भगवान के श्रीविग्रह के सामने किसी अन्य को प्रणाम करना पूजा की पवित्रता और सम्मान को प्रभावित करता है। यह भगवान के प्रति श्रद्धा की कमी को दर्शाता है और सही पूजा विधियों के खिलाफ है।

30. गुरुदेव की अभ्यर्थना, उनका कुशल प्रश्न न करना

गुरुदेव की अभ्यर्थना करना और उनका कुशल पूछना श्रद्धा और सम्मान की भावना को दर्शाता है। इसे न करना धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं के खिलाफ हो सकता है।

31. अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना

अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना धार्मिक आदर्शों के खिलाफ है। यह भगवान के सामने आत्मप्रशंसा का प्रतीक हो सकता है, जो श्रद्धा और विनम्रता के खिलाफ है।

32. किसी अन्य देवता की निंदा करना

किसी अन्य देवता की निंदा करना धार्मिक मान्यताओं और सम्मान के खिलाफ है। यह धार्मिक सहिष्णुता और आदर की कमी को दर्शाता है और पूजा स्थल की पवित्रता को प्रभावित करता है।

भगवान की पूजा में शुद्धता और नियमों का पालन अत्यंत आवश्यक होता है। चढ़ाए हुए भोग को तुरंत प्रसाद रूप में बांट देना और सेवापराधों से बचना पूजा के प्रभाव को बढ़ाता है और भक्त को भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

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