36 यक्षिणियाँ मानी जाती हैं और इनमें विभिन्न वर देने के प्रकार होते हैं। यहां, 32 यक्षिणि मंत्र (Yakshini Mantra) के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही है। इन मंत्रों का उपयोग यक्षिणियों से विभिन्न प्रकार की सिद्धियों, वशीकरण, आकर्षण, समृद्धि, सौभाग्य, स्वास्थ्य, और अन्य क्षेत्रों में साधना के लिए किया जाता है। ये मंत्र विशेषतः गोपनीय होते हैं और इनका नियमित जप और साधना साधक को यक्षिणी की कृपा प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
इन मंत्रों के माध्यम से यक्षिणियाँ विभिन्न गुण और विशेषताओं के साथ विद्यमान होती हैं, जैसे कि रंग, रूप, प्रेम, सुख, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, संपन्नता, वैभव, पराक्रम, रिद्धि-सिद्धि, धन-धान्य, संतान सुख, रत्न जवाहरात, मनचाही उपलब्धियां, राज्य प्राप्ति और भौतिक ऐश-ओ-आराम। ये यक्षिणियाँ शत्रु भय को दूर करती हैं और आत्मविश्वास और सौन्दर्य की वृद्धि में सहायक होती हैं।
हिंदू तंत्र योग में यक्षिणी या यक्षी कौन हैं ?
यक्षिणी एक प्राचीन हिंदू तंत्र और योग की परंपराओं में एक अलौकिक और आध्यात्मिक प्राणी है जिसे पूजा जाता है। इसे यक्षिणी या यक्षी भी कहा जाता है। यक्षिणी को चिकित्सा, आध्यात्मिक ज्ञान, अन्य वांछित परिणाम प्राप्ति, धन की प्राप्ति या रोमांटिक साथी की प्राप्ति में मदद करने के लिए आह्वान किया जाता है।
यक्षिणियों की संख्या विभिन्न तंत्र शास्त्रों और पौराणिक ग्रंथों में भिन्न हो सकती है, लेकिन उद्दामरेश्वर तंत्र में 36 यक्षिणियाँ बताई गई हैं। ये यक्षिणियाँ विभिन्न प्राकृतिक तत्वों और देवताओं से जुड़ी होती हैं और चिकित्सकों या साधकों को अपनी अनुपम शक्तियों से समृद्धि प्रदान करने का कारण बनती हैं।
हिंदू तंत्र या योग में, यक्षिणियों की पूजा और साधना अक्सर अधिकतर तामसिक और अघोरी प्रकृति की होती है, जिसमें साधक उनसे अनुपम शक्तियों की प्राप्ति के लिए तपस्या और साधना करता है। इस प्रकार की पूजा और साधना मुख्यतः अद्भुत और अत्यधिक शक्तिशाली परिणाम प्राप्त करने के लिए की जाती है।
यक्ष और यक्षिणियों में सम्बन्ध क्या हैं ?
हिंदू धर्म में, यक्ष और यक्षिणियों को अक्सर पूरक प्राणियों के रूप में चित्रित किया जाता है, जहाँ यक्ष पुरुष आत्माएं या देवता होते हैं और यक्षिणियां उनकी महिला समकक्ष होती हैं, जिन्हें प्राकृतिक संसाधनों और समृद्धि के संरक्षक के रूप में देखा जाता है। इन संबंधों में भक्ति, प्रेम और वफादारी की कहानियां सामान्य होती हैं और कई परंपराएं उनके आशीर्वाद और सुरक्षा के लिए उनकी संयुक्त पूजा की जाती है।
36 सभी यक्षिणियां नामों की लिस्ट । Yakshini Names List
- विचित्रा (Vichitra)
- विभ्रमा (Vibhrama)
- हंसी (Hamsi)
- भीषणी (Bhishani)
- जनरंजिनी (Janaranjika)
- विशाला (Vishala)
- मदना (Madana)
- घंटा (Ghanta)
- कलाकर्णी (Kalakarni)
- महाभया (Mahabhaya)
- महेन्द्री (Mahendri)
- शंखिनी (Shankhini)
- चंद्री (Chandri)
- श्मशाना (Shmashana)
- वटयक्षिणी (Vatayakshini)
- मेखला (Mekhala)
- विकला (Vikala)
- लक्ष्मी (Lakshmi)
- मालिनी (Malini)
- शतपत्रिका (Shatapatrika)
- सुलोचना (Sulochana)
- शोभा (Shobha)
- कपालिनी (Kapalini)
- वरयक्षिणी (Varayakshini)
- नटी (Nati)
- कामेश्वरी (Kameshvari)
- धनयक्षिणी (Dhana Yakshini)
- कर्णपिशाची (Karnapisachi)
- मनोहरा (Manohara)
- प्रमोदा (Pramoda)
- अनुरागिणी (Anuragini)
- नखकेशी (Nakhakeshi)
- भामिनी (Bhamini)
- पद्मिनी (Padmini)
- स्वर्णावती (Svarnavati)
- रतिप्रिया (Ratipriya)
36 यक्षिणि की मंत्र । 36 Yakshini Mantra
सुर सुंदरी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ सुर सुंदरी स्वाहा।’
पूजा: गूगल, लाल चंदन के जल, और तीन संध्याओं में पूजा के साथ।
साधना: एकांत में की जाती है।
मनोहारणी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा।’
पूजा: नदी के संगम पर, महीने भर की साधना रात्रि में।
साधना: बरगद के पास, मद्य और मांस के साथ।
कनकावती यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं कनकावती मैथुन प्रिये आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।’
साधना: एकांत में, वटवृक्ष के पास, नेवैद्य के साथ।
कामेश्वरी यक्षिणी । Kameshwari Yakshini Mantra
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ कामेश्वरी स्वाहा।’
साधना: एकांत कक्ष में, मासभर की साधना पूर्वाभिमुख होकर।
रतिप्रिया यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ रतिप्रिये स्वाहा।’
साधना: एकांत कमरे में, चित्र बनाकर नित्य पूजा और जप रात्रि में।
पद्मिनी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।’
साधना: रात्रि में मासभर जप और पूजा, पूर्णिमा को रातभर जप।
नटी यक्षिणी । Nati Yakshini Mantra
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ नटि स्वाहा।’
साधना: अशोक वृक्ष के नीचे, मद्य, मीन, मांसादि की बलि प्रदान के साथ।
अनुरागिणी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।’
साधना: घर के एकांत कक्ष में, मास के अंत में सभी इच्छाएं पूर्ण करने के साथ।
विचित्रा यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं विचित्रे चित्र रूपिणि मे सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।’
साधना: वटवृक्ष के नीचे, एकांत में, चम्पा पुष्प से पूजा करनी होती है।
विभ्रमा Yakshini Mantra
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं विभ्रमे विभ्रमांग रूपे विभ्रमं कुरु रहिं रहिं भगवति स्वाहा।’
साधना: श्मशान में रात्रि में, प्रसन्न होने पर नित्य अनेक व्यक्तियों का भरण-पोषण करने के साथ।
हंसी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ हंसी हंसाह्वे ह्रीं स्वाहा।’
साधना: घर के एकांत में, अंत में पृथ्वी में गड़े धन को देखने की शक्ति प्रदान करती है।
भीषणी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ऐं महानाद भीषणीं स्वाहा।’
साधना: किसी चौराहे पर बैठकर, सभी विघ्न दूर करने के साथ।
जनरंजिनी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं क्लीं जनरंजिनी स्वाहा।’
साधना: कदम्ब के वृक्ष के नीचे, दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के साथ।
विशाला यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ऐं ह्रीं विशाले स्वाहा।’
साधना: चिंचा वृक्ष के नीचे, दिव्य रसायन प्राप्त करने के साथ।
मदना यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगे देहि देहि श्री: स्वाहा।’
साधना: राजद्वार पर, अदृश्य होने की शक्ति प्रदान करने के साथ।
घंटाकर्णी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ऐं पुरं क्षोभय भगति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा।’
साधना: शमशान में रात्रि में, प्रसन्न होने पर नित्य अनेक व्यक्तियों का भरण-पोषण करने के साथ।
कालकर्णी Yakshini Mantra
मंत्र: ‘ॐ हुं कालकर्णी ठ: ठ: स्वाहा।’
साधना विधि: एकांत में घंटा लगातार बजाते हुए साधना होती है, वशीकरण की शक्ति प्राप्त होती है।
फल: शत्रु का स्तंभन, ऐश्वर्य प्रदान।
महाभया यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं महाभये हुं फट् स्वाहा।’
साधना विधि: श्मशान में साधना की जाती है, अजर-अमरता का वरदान प्रदान करती है।
फल: अजर-अमरता, रक्षा कवच प्राप्ति।
माहेन्द्री यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ माहेन्द्री कुलु कुलु हंस: स्वाहा।’
साधना विधि: तुलसी के पौधे के समीप साधना की जाती है, अनेक सिद्धियां प्रदान करती हैं।
फल: सिद्धियां, अज्ञेय रहस्यों का ज्ञान।
शंखिनी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ शंख धारिणे शंखा भरणे ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा।’
साधना विधि: एकांत में प्रात:काल साधना की जाती है, हर इच्छा पूर्ण करती है।
फल: हर इच्छा पूर्णि, ऐश्वर्य और सुख-शांति।
श्मशाना यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ द्रां द्रीं श्मशान वासिनी स्वाहा।’
साधना विधि: श्मशान में साधना होती है, गुप्त धन का ज्ञान करवाती है।
फल: गुप्त धन का प्रकाश, रहस्यों का ज्ञान।
वट यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ श्रीं द्रीं वट वासिनी यक्षकुल प्रसूते वट यक्षिणी एहि-एहि स्वाहा।’
साधना विधि: वटवृक्ष के नीचे साधना की जाती है, दिव्य सिद्धियां प्रदान करती हैं।
फल: दिव्य सिद्धियां, आध्यात्मिक उन्नति।
मदन मेखला यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ क्रों मदनमेखले नम: स्वाहा।’
साधना विधि: एकांत में साधना होती है, दिव्य दृष्टि प्रदान करती हैं।
फल: दिव्य दृष्टि, सुंदरता और प्रेम में वृद्धि।
चन्द्री Yakshini Mantra
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं चंद्रिके हंस: स्वाहा।’
साधना विधि: अभीष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं।
फल: अभीष्ट सिद्धियां, सामर्थ्य और ऐश्वर्य।
विकला यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्वाहा।’
साधना विधि: पर्वत-कंदरा में साधना की जाती है, समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
फल: समस्त मनोकामनाएं, सिद्धियां और समृद्धि।
लक्ष्मी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महाल्क्ष्म्यै नम:।’
साधना विधि: घर में एकांत में साधना होती है, दिव्य भंडार प्रदान करती हैं।
फल: धन, ऐश्वर्य, श्रृंगार, विद्या और सुख-शांति।
स्वर्णावती यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ स्वर्णावति स्वाहा।’
साधना विधि: एकांत वन में शिव मंदिर में साधना की जाती है, मासांत में सिद्धि प्राप्त होती है।
फल: धन, वस्त्र, और आभूषण प्रदान करती हैं।
प्रमोदा Yakshini Mantra
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं प्रमोदायै स्वाहा।’
साधना विधि: घर में एकांत में साधना की जाती है, मास के अंत में निधि का दर्शन होता है।
फल: मानव समृद्धि, सुख, और प्रमोद।
नखकोशिका यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं नखकोशिके स्वाहा।’
साधना विधि: एकांत वन में साधना होती है, हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।
फल: सभी कार्यों में सफलता, और मनोबल वृद्धि।
भामिनी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं भामिनी रतिप्रिये स्वाहा।’
साधना विधि: ग्रहण काल में जप किया जाता है, अदृश्य होने तथा गड़ा हुआ धन देखने की सिद्धि प्राप्त होती है।
फल: अदृश्यता, गड़ा हुआ धन देखना, और रतिप्रियता।
पद्मिनी यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।’
साधना विधि: शिव मंदिर में साधना की जाती है।
फल: धन व ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।
स्वर्णावती यक्षिणी
मंत्र: ‘ॐ ह्रीं आगच्छ स्वर्णावति स्वाहा।’
साधना विधि: वटवृक्ष के नीचे साधना की जाती है, अदृश्य निधि देखने की शक्ति प्रदान करती है।
फल: धन, वस्त्र, और आभूषण प्रदान करती हैं।
Yakshini Mantra Pdf
FaQs
यक्ष कौन सा भगवान है?
यक्ष कोई भगवान नहीं ,हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यक्ष हिमालय में रहने वाली प्राकृतिक आत्माएं हैं, जो ग्रह की संपत्ति की रक्षा करती हैं और आर्य-पूर्व दिवस में उनका सम्मान ग्रामीणों द्वारा किया जाता था ।
यक्षी क्या करती है?
यक्षी प्रमाणिक या अदृश्य रूप से प्रकट होने वाली अस्तित्व हो सकती है जो पुराणिक और मिथकीय विवादों में विभिन्न धार्मिक परंपराओं में उपस्थित है। हिन्दू, बौद्ध, और जैन धर्मों में इसके विभिन्न रूपों का उल्लेख किया गया है। व्यापक रूप से, यक्षी को सुंदर, समृद्धि से भरी, और आकर्षक दृष्टि से चित्रित किया जा सकता है ।
यक्ष कैसे दिखते हैं?
यक्ष विभिन्न हिन्दू, जैन, और बौद्ध धर्मों में पौराणिक और मिथकीय चरित्रों में प्रमुख रूप से प्रकट होने वाले दिव्य प्राणियों में से एक हैं। उनका रूप विभिन्न स्रोतों और पुराणों में विभिन्न हो सकता है, लेकिन आमतौर पर यक्षों को भूषित और शक्तिशाली रूपों में दिखाया जाता है।
कुबेर एक यक्ष है?
कुबेर को एक यक्ष माना जाता है, और जैन धर्म में उन्हें 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के सहायक यक्ष के रूप में चित्रित किया गया है।