उच्छिष्ट गणपति क्या है?
उच्छिष्ट गणपति एक ऐसा स्वरूप है जिसका उल्लेख अथर्ववेद और मंत्र महार्वण व मंत्र महोदधि नामक ग्रंथों में मिलता है। इस स्वरूप के दर्शन से मान्यता है कि व्यक्ति को बुद्धि, पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख-शांति, शीघ्र विवाह, और अनिष्ट ग्रहों का निवारण होता है।
भौतिकी तथा विज्ञान के सिद्धांतों के आधार पर, श्री गणेश का अष्टम स्वरूप विशेष रूप से प्रतिमा में प्रतिष्ठित है, जिसे हम श्री उच्छिष्ट गणपति कहते हैं।
उनकी महिमा और रूपों के बर्णन करते हुए निम्न श्लोक कुछ इस प्रकार है-
नमो उच्छिष्ट रूपाय तंत्र सिद्धिप्रदायकम् ।
नीलमूर्तिं गणेशं च सर्वाभरणभूषितम् ।।
पीतवस्त्रं त्रिनेत्रं च रक्तपद्मासने स्थितम्।
षड्भुजं महाकायं द्विदन्तं सस्मिताननम् ।।
दाड़िम च दक्षिणे हस्ते वीणां च तदधः करे ।
नीलपद्मं च हस्ताभ्यां धान्यमण्डलवेष्टितम् ।।
महाशक्तिं बाम भागेे दक्षिणे जप मालिकाम् ।
ललाटं चन्द्ररेखाढ्यं सर्वालंकारभूषितम् ।
उच्छिष्ट गणपति का मंदिर
1) श्री शनि-गजानन शक्तिपीठ, सनावद, मध्य प्रदेश:
श्री शनि-गजानन शक्तिपीठ सनावद के ग्राम मोरघड़ी में स्थित है और यह एक प्रमुख उच्छिष्ट गणपति मंदिर है। सनावद से इंदौर, खंडवा और ज्योतिर्लिंग औंकारेश्वर के लिए बस एवं टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है। यहां का मुख्य रेलवे स्टेशन खंडवा है, जो लगभग 48 किलोमीटर दूर है। इंदौर से भी इस मंदिर के प्रति यात्रा की जा सकती है, जो लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
2) गजानंदजी मंदिर, जोधपुर, राजस्थान:
जोधपुर शहर में स्थित गजानंदजी मंदिर एक अनूठा स्थान है जहां उच्छिष्ट गणपति का पूजन विशेष रूप से गणेश चतुर्थी की रात्रि को ही किया जाता है। मंदिर में दर्शन करने के लिए महिलाएं और पुरुष अलग-अलग समयों में जा सकते हैं। यहां प्रतिमा के दर्शन का आयोजन पूरे साल में सिर्फ एक बार किया जाता है, जो स्थान को और भी विशेष बनाता है।
उच्छिष्ट गणपति फोटो
उच्छिष्ट महागणपति को गणपति देवता के रूप में पूजा जाता है, जिनकी गोदा में भगवती नील सरस्वती, ज्ञान, विद्या, और कला की देवी, बैठी हुई हैं। यह समर्थन, विद्या, और कला के प्रतीक के रूप में उपास्य हैं।
उच्छिष्ट गणपति की साधना को कैसे करें
दक्षिणाचार साधना में शुचिता का ध्यान रखना एक महत्वपूर्ण आदान-प्रदान है, लेकिन श्रीगणेश के उच्छिष्ट गणपति स्वरूप की साधना में शुचि-अशुचि का बंधन नहीं है। यह विशेष रूप से उच्चतम परम्परागत परिप्रेक्ष्य में देवी चाण्डालिनी की साधना के साथ जुड़ा है। प्राचीन ग्रंथों में इस बारे में विस्तृत उल्लेख मिलता है कि पुराने समय में भगवान गणेश के इस अद्वितीय स्वरूप ने अपने भक्तों को अल्प भोजन से हजारों लोगों का भंडारा करने का आदान-प्रदान किया।
उच्छिष्ट गणपति की साधना का अनुष्ठान करते समय साधक को विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए। इस साधना में साधक का मुंह जूंठा होना एक महत्वपूर्ण एवं अनैतिक सिद्धांत है। साधना के समय, पान, इलायची, सुपारी इत्यादि को मुंह में रखना एक परंपरागत प्रथा है जो इस उच्छिष्ट गणपति साधना की विशेषता को बढ़ाती है।
विभिन्न कामनाओं के लिए विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग करना एक उपाय है जो साधक को अपनी आशाओं और इच्छाओं को प्राप्त करने में सहायक होता है।
उच्छिष्ट गणपति साधना में वशीकरण के लिए लौंग और इलायची का प्रयोग किया जा सकता है, सुपारी का प्रयोग किसी फल की कामना के लिए उपयुक्त है, धन वृद्धि के लिए गुड़ और सर्वसिद्धि के लिए ताम्बूल का उपयोग किया जा सकता है।
इस रूप में, साधक विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष उपायों का आचरण करता है, जो उनकी भक्ति और साधना को और भी शक्तिशाली बनाता है। इस प्रकार, उच्छिष्ट गणपति साधना साधक को आध्यात्मिक और दैहिक सिद्धि की प्राप्ति के माध्यम से अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हो सकती है।
उच्छिष्ट गणपति का मंत्र विधि । Uchchhishta Ganapati Mantra
मंत्र
।। हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।।
ऊँ हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने आं क्रों ह्रीं क्लीं ह्रीं हुँ धे धे उच्छिष्ठाय स्वाहा।।
ऊँ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने आँ क्रों ह्रीं गं धे धे स्वाहा।
विनियोग
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि:,विराट छन्द:, श्री उच्छि गणपति देवता,
मम अभीष्ट (जो भी कामना हो) या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
ऋष्यादिन्यास
- ॐ सुमेध ऋषये नमः, शिरसि।
- ॐ गायत्री छंदसे नमः, मुखे।
- ॐ उच्छिष्ट गणपति देवता नमः हृदि।
- ॐ गं बीजानि नमः, गुह्ये |
- ॐ ह्रीं शक्तिः नमः पादयो।
- ॐ ऐं क्रों कीलकं नमः, नाभौ।
- विनियोगाय नमः, सर्वान्गे।
करन्यास
- ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
- ॐ गीं भगवानिभ्य नमः।
- ॐ गं मध्यमाभ्यां नमः।
- ॐ गं अनामिकाभ्यां नमः।
- ॐ गौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
- ॐ गं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयआदिन्यास
- ॐ गं हृदयाय नमः।
- ॐ गीं शिरसे स्वाहा।
- ॐ गूं शिखायै वषट्।
- ॐ गं वाचाय हुम्।
- ॐ गौं उत्सवत्रय वौषट्।
- ॐ गः अस्त्राय फट्।
ध्यान
रक्तमूर्तिं गणेशं च सर्वाभरण भूषितम्। रक्तवस्त्रं त्रिनेत्रं च रक्त पद्मासने स्थितम् ॥
चतुर्भुजं महाकायं द्विदंत संस्मितानम्। इष्टं च दक्षिणे हस्ते दंतं च त्वपरः करे॥
पाशांकुशौ च हस्ताभ्यां जटामंडलवेष्टितम्। ललते चन्द्ररेखाध्यं सर्वालंकार भूषितम् ॥
ध्यान द्वारा मूलमंत्र का पाठ करके, अर्घ्य स्थापित करें और अर्घ्य जल को स्वयं पर छिड़कें। उसके बाद, भावना के साथ अष्टदल कमल में गणपति का ध्यान करें और मंत्रों के साथ पूजा करें।
पूजाक्रम निरीक्षण है:
- ॐ स्वरतुण्डाय स्वाहा।
- ॐ एकदन्ताय स्वाहा।
- ॐ लंबोदराय स्वाहा।
- ॐ विकटाय स्वाहा।
- ॐ विघ्नेशाय स्वाहा।
- ॐ गजवक्तराय स्वाहा।
- ॐ विनायकाय स्वाहा।
- ॐ गं गणपतये स्वाहा।
- ॐ हस्तिमुखाय स्वाहा।
मध्य में ध्यान लगाकर, मूल मंत्र के साथ गणपति की षोडशोपचार पूजा करें। उसके बाद, मंत्र जपें।
उच्छिष्ट गणपति मूल मंत्र । Uchchhishta Ganapati Mool Mantra
हस्ति पिशाचिले स्वाहा। हस्ति पिशाचिले ढ: ढ: | गं हस्ति पिशाचिले स्वाहा।
hasti pishaachilikhe svaaha. hasti pishaachilikhe dhah dhah. gam hasti pishaachilikhe svaaha.
बलि विधान
काम्य कर्मों के अंतर्गत, देवता को बलि अर्पित करनी चाहिए। बलि के रूप में, लड्डू (मोदक), गुड़, तिल से बना नैवेद्य सामग्री को तैयार करके नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करें और देवता को समर्पित करें।
बलि मंत्र
ॐ उच्छिष्ट गणेशाय महाकालाय एव बलिर्न मम |
साधक को उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करके बलि अर्पित करने के बाद, आचमन करना चाहिए। बलि क्रिया के पश्चात्, दक्षिण दिशा में पुष्प डालने के साथ समर्पण भाव से विसर्जन करना चाहिए।
यह मंत्र सोलह हजार बार जप करने से सिद्ध होता है। इसे कृष्ण पक्ष की चतुर्थी से शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तक नित्य पत्नी के साथ जपना चाहिए। सफेद या लाल चंदन से बनी अंगूठे की प्रतिमा को तैयार करके उसमें प्राणों की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। फिर तंत्रिक विधि के अनुसार जप करना चाहिए।
तंत्रोक्त जाप रीति
- जूठे मुख से जाप करना चाहिए जो विधान है।
- देवता की पूजा का विधान नहीं है, परंतु मानसिक जाप का विधान है।
- स्वयं अपने आपको को ही गणेश मानकर स्वयं मंत्र जाप करें।
- गर्ग मुनि के अनुसार, पान चबाकर;भृगु मुनि के अनुसार फल भक्षण करते हुए; और विभीषण के अनुसार नैवेद्य सेवन करते हुए जाप करें।
उच्छिष्ट गणपति मूल मंत्र तंत्रोक्त जाप प्राप्त फल
- मूल मंत्र के साथ किसी व्यक्ति का नाम उच्चारित करने से उसे वशीभूत बनाया जा सकता है।
- विवाह के इच्छुक स्त्री या पुरुष को पांच हजार बार मंत्र जाप करने से उन्हें अपने मनपसंद जीवनसाथी का मिलता है।
- एक करोड़ बार हवन करने से आठों सिद्धियां प्राप्त हो सकती हैं।
- अपामार्ग की समिधा से माला जाप तक हवन करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- वानर की हड्डी की चार अंगुल की कील को मूल मंत्र पढ़कर किसी के घर में दबा देने से उच्चाटन हो सकता है।
- उपरोक्त कील को शराब बनाने के स्थान पर रखा जाए तो शराब नष्ट हो जाती है।
- इसी प्रकार, वैश्य के घर में इस कील को रखने से वह सभी जगहों पर अपमानित हो सकता है।
उच्छिष्ट गणपति मंत्र की फल व लाभ
इस श्लोक के द्वारा जानते है की क्या फल प्राप्त होते गणपति के उच्छिष्ट मंत्र जाप करने से –
यत्रास्ति भोगो न तु तत्र मोक्ष:
यत्रास्ति मोक्षो न तु तत्र भोग:
उच्छिष्टविघ्नेश्वपूजकानां
भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव।
इस मंत्र में कहा गया है कि जिस जगह भोग की इच्छा करने वाला व्यक्ति है, वहां मोक्ष प्राप्त नहीं होता, और जिस जगह मोक्ष की आकांक्षा होती है, वहां भोग छोड़ना अनिवार्य है। यह मंत्र स्पष्टता से बताता है कि सांसारिक सुख और आत्मिक मुक्ति की दोनों ही प्राप्तियां एक साथ नहीं हो सकतीं हैं, किंतु भगवान उच्छिष्ट महागणपति के ध्यान, पूजा, और आराधना से भक्त को ऐश्वर्य और मोक्ष दोनों की अनुग्रह प्राप्त होती हैं।
FaQs
उच्छिष्ट गणपति गौद में कौन है?
उच्छिष्ट गणपति के गोदा में भगवती नील सरस्वती होती हैं। यह एक विशेष रूप है जिसमें गणपति और सरस्वती दोनों का सानिध्य है।
उच्छिष्ट गणपति के पूजन का महत्व क्या है?
उच्छिष्ट गणपति के पूजन से भक्तों को आत्मिक शुद्धि, ऐश्वर्य, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पूजन विघ्न निवारण के साथ-साथ संसारिक सुख और आत्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है।
उच्छिष्टगणपति किसकी एक स्वरूप है ?
उच्छिष्ट गणपति भगवान गणेश का ही एक स्वरूप हैं।
भारत में सबसे पुराण उच्छिष्ट गणपति मंदिर कौन सा है?
तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में स्थित उच्छिष्ट गणपति मंदिर भारत में अद्वितीय है जो की 1300-1400 साल पहले की है ।
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