पारण एक धार्मिक प्रक्रिया है, जिसे एकादशी और अन्य व्रतों के समापन के दौरान किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण चरण है, जो व्रत के पुण्य को संपूर्ण बनाने के लिए किया जाता है। पारण का सही तरीके से पालन करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पारण क्या है?
पारण वह प्रक्रिया है जिसमें व्रत या उपवास के बाद अन्न ग्रहण किया जाता है। जब कोई व्यक्ति एकादशी जैसे व्रत का पालन करता है, तो वह पूरे दिन बिना अन्न के उपवास करता है और द्वादशी (व्रत के अगले दिन) के दिन, शुभ मुहूर्त में अन्न ग्रहण करता है। यह प्रक्रिया व्रत के फल को पूर्ण और प्रभावशाली बनाने के लिए की जाती है।
पारण का महत्व
पारण का महत्व एकादशी और अन्य व्रतों के समापन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह प्रक्रिया व्रत के पुण्य को संपूर्ण करती है और व्रति को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त करने का अवसर देती है। एकादशी के दिन व्रति अन्न का सेवन नहीं करते हैं, लेकिन पारण के माध्यम से अन्न ग्रहण करके व्रत की पूर्णता सुनिश्चित करते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, पारण के बिना व्रत का पुण्य अधूरा रहता है। इसलिए, एकादशी के दिन सही समय और विधि से पारण करना आवश्यक होता है। पारण न केवल धार्मिक नियमों का पालन करता है, बल्कि व्रति को मानसिक और आत्मिक शांति भी प्रदान करता है। सही तरीके से पारण करने से व्रति के मन में संतोष और शांति का अनुभव होता है, जो जीवन को संतुलित और सुखमय बनाता है।
इस प्रकार, पारण व्रत के समापन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो व्रति को धार्मिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है।
एकादशी पारण के नियम और विधि
एकादशी पारण एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रक्रिया है, जो व्रत के समापन का हिस्सा होती है। इस दिन पारण करने से व्रत का पुण्य पूर्ण होता है और व्रति को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। पारण का नियम है कि इसे द्वादशी तिथि में किया जाए। यदि द्वादशी तिथि समाप्त हो जाती है, तो त्रयोदशी में भी पारण किया जा सकता है। यदि द्वादशी का मुहूर्त संपूर्ण नहीं होता, तो त्रयोदशी में पारण करना उचित होता है।
पारण सूर्योदय के बाद करना चाहिए, क्योंकि सूर्योदय से पहले पारण करने से व्रत भंग हो सकता है। इसके अलावा, एकादशी का पारण द्वादशी के प्रथम चौथाई (हरिवासर) में करना चाहिए। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए, तो त्रयोदशी में पारण किया जा सकता है।
ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा देकर पारण करना अत्यंत शुभ माना जाता है। व्रत के दौरान चावल का सेवन पूरी तरह से वर्जित है और पूजा में भी चावल या अक्षत का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही, व्रत के समय पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और झूठ बोलने और पाखंडी लोगों से बचना चाहिए।
एकादशी उद्यापन विधि के अनुसार, एकादशी के दिन प्रातः नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, ताम्रपात्र में जल लेकर उत्तराभिमुख होकर व्रत के उद्यापन का संकल्प करें। इस संकल्प में भगवान श्रीहरी से प्रार्थना करें कि आप एकादशी व्रत का उद्यापन करेंगे और पुरोहित द्वारा विधिवत पूजन, ब्राह्मण भोजन और दान प्रदान करेंगे। पूजन के बाद पुरोहित द्वारा कलश स्थापना और लक्ष्मीनारायण की षोडसोपचार पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद, यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा प्रदान करें और ब्राह्मणों से आशीर्वाद प्राप्त करें कि आपका व्रत और उद्यापन विधिवत और सफलतापूर्वक पूर्ण हुआ है।
पारण के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित होता है, जिन्हें व्रत कथा में विस्तार से बताया गया है। एकादशी व्रत का पारण विधिपूर्वक और नियमों के अनुसार करने से व्रति को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।
उपसंहार:
एकादशी व्रत एक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व का व्रत है, जिसे विधिवत और नियमपूर्वक पूरा करना चाहिए। इस व्रत का पालन करने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्रति के जीवन में दिव्य चमत्कार देखने को मिलते हैं। व्रत की सही विधि और नियमों का पालन करके, आप व्रत के लाभ और पुण्य को पूरी तरह से प्राप्त कर सकते हैं।