गणेश जी को सबसे पहले पूजा का देवता माना जाता है और उन्हें सभी शुभ कार्यकी शुरुआत में बुलाया जाता है। गणेश जी की पुष्पांजलि में जीर्ण फूलों का उपयोग किया जाता है और इन्हें उनकी प्रार्थना और समर्पण के साथ भगवान गणेश के चरणों में रखा जाता है। यह प्रक्रिया शुभता, सफलता और बाधाओं से रक्षा करने का संकेत होती है।
मंत्र पुष्पांजलि (श्री गणेश जी) | Mantra Pushpanjali (Shree Ganesh ji)
प्रथम श्लोक:
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा: ॥
द्वितीय श्लोक:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।
नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मस कामान् काम कामाय मह्यं।
कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय।
महाराजाय नम: ।
तृतीय श्लोक:
ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं
वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं ।
समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात् ।
पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळ इति ॥
चतुर्थ श्लोक:
ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो।
मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥
॥ मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ॥
गणेश जी की पुष्पांजलि हिंदी अर्थ
प्रथम श्लोक की हिंदी अर्थ :
देवताओं ने यज्ञ के माध्यम से प्रजापति की पूजा की। यज्ञ और उसकी उपासना उनके प्रारंभिक धर्मविधियों में शामिल थे। जिस स्थान पर पहले देवताओं का निवास था (स्वर्गलोक में), वहाँ साधक महानता को प्राप्त करने के लिए उन्होंने यज्ञ अनुष्ठान किया। यज्ञाचरण द्वारा साधक महानता की प्राप्ति होती थी। इस प्रकार, देवताओं द्वारा यज्ञ का आदर्शित किया जाता रहा और धार्मिक आदर्शों को साधकों के लिए प्राप्ति का माध्यम बनाया गया।
द्वितीय श्लोक की हिंदी अर्थ :
हम राजाधिराज वैश्रवण, जिन्हें कुबेर के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित हैं। उन्हें हम वंदन करते हैं, क्योंकि वे कामनेश्वर हैं, जो हमारी सभी कामनाओं को पूरा करने की क्षमता रखते हैं। वे हमारे लिए सब कुछ सुखदायक और अनुकूल करने वाले हैं।
तृतीय श्लोक की हिंदी अर्थ :
हमारा आदर्श राज्य सभी के कल्याण का आदान-प्रदान करे। यहाँ सभी सुखदायक वस्तुएँ सर्वत्र प्राप्त हों। हमारा राज्य लोकतंत्र का मार्ग पर अग्रणी हो। निराकारिता और लोभ की कोई जगह न हो। ऐसा अत्यंत उत्कृष्ट साम्राज्य हमारे अधीन हो। हमें अपनी सीमाओं का सुरक्षित रखना है। हमारा सरकार धीरे-धीरे बढ़ती पृथ्वी के समुद्रों तक फैलने वाले दीर्घकालिक संरक्षित साम्राज्य का संरक्षण करे। हमारा राज्य सृष्टि के अंत तक सुरक्षित और स्थायी बना रहे।
चतुर्थ श्लोक की हिंदी अर्थ :
अविक्षित के पुत्र मरुती, जो राज्यसभा के सर्व सभासद है, उन मरुतगणों के द्वारा यह राज्य परिवेष्टित हो, यही हमारी कामना है, इसीलिए यह श्लोक राज्य की कीर्ति और उसके लिए गाया गया है।
श्री गणेश जी पुष्पांजलि मंत्र
इसे भी जरूर पढ़े :