संसार में दया (compassion) एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मूल्यवान गुण है, जिसे संस्कृत श्लोकों में विशेष महत्व दिया गया है। संस्कृत श्लोक न केवल धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं को समृद्ध करते हैं, बल्कि मानव जीवन में दया के महत्व को भी स्पष्ट करते हैं। दया का आदान-प्रदान, दूसरों के प्रति संवेदनशीलता और सहायता का भाव मानवता के मौलिक पहलू हैं, और ये गुण जीवन को सारगर्भित और पूर्ण बनाते हैं।
इन संस्कृत श्लोकों में दया की प्रकृति, इसके महत्व और इसके बिना धार्मिक कर्मों की व्यर्थता को स्पष्ट किया गया है। श्लोकों के माध्यम से यह समझाया गया है कि दया के बिना कोई भी धार्मिक या नैतिक क्रिया संपूर्ण नहीं हो सकती। दया, जोकि एक आदर्श मानव गुण है, न केवल व्यक्तिगत विकास में सहायक होती है, बल्कि समाज में भी शांति और समरसता लाती है।
इस परिचय में, हम दया पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोकों की चर्चा करेंगे। इन श्लोकों के माध्यम से हम समझेंगे कि दया केवल एक नैतिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह हर धार्मिक और दार्शनिक मार्ग का आधार है। ये श्लोक हमें सिखाते हैं कि दया का अभ्यास न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन को सुधारता है, बल्कि यह समाज की भलाई के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
दया पर संस्कृत श्लोक
1. श्लोक:
संसारे मानुष्यं सारं मानुष्ये च कौलीन्यम्।
कौलिन्ये धर्मित्वं धर्मित्वे चापि सदयत्वम्॥
हिंदी अर्थ:
संसार में मनुष्यत्व की सार्थकता, मनुष्यत्व में खानदानी गुण, खानदानी गुण में धर्मिता और धर्मिता में सदयता (दया) है।
व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि जीवन में मानवता का असली सार दया में निहित है। यदि मनुष्य खानदानी गुणों, धर्मिता और सदयता को अपनाए, तो वह सच्चे अर्थ में मानव बनता है।
2. श्लोक:
दयां विना देव गुरुक्रमार्चाः तपांसि सर्वेन्द्रिययन्त्रणानि दानानि
शास्त्राध्ययनानि सर्वं सैन्यं गतस्वामि यथा तथैव॥
हिंदी अर्थ:
देव और गुरु पूजा, तप, सभी इंद्रियों का नियंत्रण, दान और शास्त्राध्ययन – ये सभी क्रियाएँ दया के बिना वैसी ही हैं जैसी कि सेनापति के बिना एक सेना।
व्याख्या:
इस श्लोक के अनुसार, दया के बिना धार्मिक क्रियाएँ और तपस्या व्यर्थ होती हैं। जैसे सेनापति के बिना सेना की कोई उपयोगिता नहीं है, वैसे ही दया के बिना अन्य धार्मिक कार्यों का कोई मूल्य नहीं है।
3. श्लोक:
न सा दीक्षा न सा भिक्षा न तद्दानं न तत्तपः।
न तद् ध्यानं न तद् मौनं दया यत्र न विद्यते॥
हिंदी अर्थ:
दया के बिना दीक्षा, भिक्षा, दान, तप, ध्यान और मौन सभी निरर्थक हैं।
व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि दया के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या साधना प्रभावी नहीं होती। दया ही सभी धार्मिक और नैतिक कार्यों का आधार है।
4. श्लोक:
सर्वे वेदा न तत् कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत।
सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च तत् कुर्यात् प्राणिनां दया॥
हिंदी अर्थ:
हे भारत! सभी वेद, यज्ञ, तीर्थ यात्रा और अभिषेक – ये सभी उस व्यक्ति के लिए हैं जो प्राणियों पर दया कर सकता है।
व्याख्या:
इस श्लोक में कहा गया है कि वेद, यज्ञ और तीर्थ यात्रा का वास्तविक उद्देश्य प्राणियों पर दया करना है। दया के बिना ये सभी कर्म अधूरे और निरर्थक हैं।
5. श्लोक:
दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि।
एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते॥
हिंदी अर्थ:
जहाँ दया नहीं होती, वहाँ कोई भी धर्म या वेद निष्फल हो जाते हैं। दया के बिना वेद भी अवेद बन जाते हैं।
व्याख्या:
यह श्लोक यह स्पष्ट करता है कि दया के बिना धर्म और वेद की कोई महत्वता नहीं है। दया के बिना सभी धार्मिक कर्म और अध्ययन निष्फल हो जाते हैं।
6. श्लोक:
अहिंसा लक्षणो धर्मोऽधर्मश्च प्राणिनां वधः।
तस्मात् धर्मार्थिभिः लोकैः कर्तव्या प्राणिनां दया॥
हिंदी अर्थ:
धर्म का लक्षण अहिंसा है, और प्राणियों का वध अधर्म है। इस प्रकार, धर्म की इच्छा रखने वालों को प्राणियों पर दया करनी चाहिए।
व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि धर्म की वास्तविक पहचान अहिंसा में है, और प्राणियों की हत्या अधर्म है। इसलिए, धर्म की चाहत रखने वालों को प्राणियों पर दया करनी चाहिए।
7. श्लोक:
दयाङ्गना सदा सेव्या सर्वकामफलप्रदा।
सेवितासौ करोत्याशु मानसं करुणामयम्॥
हिंदी अर्थ:
दयालु को हमेशा सेवा करनी चाहिए। यह सभी इच्छित फलों को देने वाली होती है। इसे सेवा करने से तुरंत ही मन करुणामय बन जाता है।
व्याख्या:
इस श्लोक के अनुसार, दया का पालन करने से मनुष्य का मन जल्दी ही करुणामय हो जाता है और यह इच्छित फल देने वाली होती है।
8. श्लोक:
लावण्यरहितं रुपं विद्यया वर्जितं वपुः।
जलत्यक्तं सरो भाति नैव धर्मो दयां विना॥
हिंदी अर्थ:
लावण्यरहित रूप, विद्या रहित शरीर, और जलविहीन तालाब शोभा नहीं देते। उसी प्रकार, दया के बिना धर्म भी शोभा नहीं देता।
व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि जैसे लावण्य, विद्या और जल की अनुपस्थिति वस्त्रों और तालाबों को अनाकर्षक बनाती है, वैसे ही दया के बिना धर्म भी निरर्थक है।
9. श्लोक:
न च विद्यासमो बन्धुः न च व्याधिसमो रिपुः।
न चापत्यसमो स्नेहः न च धर्मो दयापरः॥
हिंदी अर्थ:
विद्या जैसा कोई बंधु नहीं, व्याधि जैसा कोई शत्रु नहीं, पुत्र जैसा कोई स्नेह नहीं, और दया से श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं है।
व्याख्या:
इस श्लोक में कहा गया है कि विद्या से अच्छा कोई मित्र नहीं हो सकता, बीमारी से बड़ा कोई शत्रु नहीं हो सकता, और पुत्र से अधिक स्नेही कोई नहीं हो सकता। इसी तरह, दया से श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं है।
10. श्लोक:
धर्मो जीवदयातुल्यो न क्वापि जगतीतले।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन कार्या जीवदयाऽङ्गिभिः॥
हिंदी अर्थ:
इस धरती पर जीवों की दया के समान कोई भी धर्म नहीं है। इसलिए, आपको सर्वप्रयत्न से जीवों पर दया करनी चाहिए।
व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि जीवों पर दया करने वाला धर्म सबसे श्रेष्ठ है। इसलिए, हमें हर प्रयास करना चाहिए कि हम जीवों पर दया करें और उनका समर्थन करें।