हवन कुंड और यज्ञ मण्डप: प्राचीन विधि और आधुनिक उपयोग

यज्ञ भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है, और यज्ञ में मण्डप और कुण्ड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस लेख में हम यज्ञ मण्डप और कुण्ड के प्राचीन विधि और आधुनिक उपयोग के बारे में विस्तार से जानेंगे।

यज्ञ मण्डप की संरचना । हवन कुंड को कैसे बनाये

यज्ञ मण्डप को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है: बड़े, मध्यम, और छोटे मण्डप। बड़े यज्ञों के लिए मण्डप का आकार 32 हाथ (48 फुट) से 36 फुट तक होता है। मध्यम कोटि के यज्ञों के लिए यह आकार 14 (18 फुट) से 12 हाथ (18 फुट) का होता है। छोटे यज्ञों में मण्डप की लंबाई और चौड़ाई 10 हाथ (15 फुट) या 8 (12 फुट) हाथ होती है। मण्डप की चबूतरी जमीन से एक हाथ या आधा हाथ ऊँची रहनी चाहिए।

हवन स्वाहा मंत्र

हवन कुंड और यज्ञ मण्डप प्राचीन विधि और आधुनिक उपयोग
हवन कुंड को कैसे बनाये

मण्डप के खंभे और तोरण द्वार

बड़े मण्डपों के लिए 16 खंभे लगाने चाहिए, जिनको रंगीन वस्त्रों से लपेटा जाता है। मण्डप के चारों दिशाओं में 4 तोरण द्वार होते हैं, जो 7 हाथ (10 फुट 6 इंच) ऊँचे और 3.5 चौड़े होते हैं। पूर्व द्वार पर शङ्क, दक्षिण द्वार पर चक्र, पश्चिम द्वार पर गदा, और उत्तर द्वार पर पद्म बनाने चाहिए। इन द्वारों पर प्रतीक वृक्षों की लकड़ी लगाई जाती है, जैसे पूर्व में पीपल, पश्चिम में गूलर, उत्तर में पाकर, और दक्षिण में बरगद की लकड़ी।

ध्वजाएँ और पताकाएँ

सभी दिशाओं में तिकोनी ध्वजाएँ लगानी चाहिए। पूर्व में पीली, अग्निकोण में लाल, दक्षिण में काली, नैऋत्य में नीली, पश्चिम में सफेद, वायव्य में धूमिल, उत्तर में हरी, और ईशान में सफेद ध्वजाएँ लगाई जाती हैं। ब्रह्मा और अनन्त की ध्वजाएँ विशेष होती हैं। पताकाएँ भी ध्वजाओं के समान रंग और दिशा में लगाई जाती हैं, जो चौकोर होती हैं।

मण्डप के भीतर की वेदियाँ

मण्डप के भीतर चार दिशाओं में चार वेदी बनती हैं: ईशान में ग्रह वेदी, अग्निकोण में योगिनी वेदी, नैऋत्य में वस्तु वेदी, और वायव्य में क्षेत्रपाल वेदी। प्रधान वेदी पूर्व दिशा में होनी चाहिए।

यज्ञ कुण्ड की संरचना

यज्ञ में मण्डप के बीच में कुण्ड होता है। यह चौकोर या कमल के आकार का हो सकता है। विभिन्न कामनाओं के लिए विभिन्न प्रकार के कुण्ड बनाए जाते हैं। पंच कुण्डी यज्ञ में पाँच कुण्ड होते हैं, और नव कुण्डी यज्ञ में नौ कुण्ड होते हैं।

कुण्ड की मेखलाएँ

प्रत्येक कुण्ड में 3 मेखलाएँ होती हैं: ऊपर की मेखला 4 अंगुल, बीच की 3 अंगुल, और नीचे की 2 अँगुल। ऊपर की मेखला पर सफेद रंग, मध्य की पर लाल रंग, और नीचे की पर काला रंग किया जाता है।

कुण्ड का आकार

50 से कम आहुतियों के हवन के लिए कुण्ड बनाने की आवश्यकता नहीं होती। 50 से 99 तक आहुतियों के लिए 21 अंगुल का कुण्ड, 100 से 999 तक के लिए 22.5 अंगुल का, एक हजार आहुतियों के लिए 2 हाथ (1.5 फुट) का, और एक लाख आहुतियों के लिए 4 हाथ (6 फुट) का कुण्ड बनाना चाहिए।

यज्ञ मण्डप में प्रवेश और सामग्री का स्थानांतरण

यज्ञ-मण्डप में पश्चिम द्वार से साष्टाँग नमस्कार करने के बाद प्रवेश करना चाहिए। हवन की सामग्री पूर्व द्वार से, दान की सामग्री दक्षिण द्वार से, और पूजा प्रतिष्ठा की सामग्री उत्तर द्वार से ले जानी चाहिए।

कुण्ड में योनि का निर्माण

कुण्ड के पिछले भाग में योनि बनाई जाती है। इसके निर्माण को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद हैं। कुछ इसे वामार्गी प्रयोग मानते हैं, जबकि अन्य इसे वेदोक्त मानते हैं।

निष्कर्ष

यज्ञ मण्डप और कुण्ड की संरचना और निर्माण प्राचीन विधियों पर आधारित होती है, जो यज्ञ की सफलता और पवित्रता को सुनिश्चित करते हैं। आधुनिक समय में भी इन विधियों का पालन किया जाता है, जिससे यज्ञ की परंपरा और महत्व बरकरार रहता है।

हवन कुंड । हवन सामग्री । हवन के लाभ

Leave a Comment

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
Best Wordpress Adblock Detecting Plugin | CHP Adblock
error: Content is protected !!