गायत्री मंत्र का अर्थ व महिमा

गायत्री मंत्र का अर्थ व महिमा: गायत्री मंत्र, जो सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंत्र 24 अक्षरों से मिलकर बना है, और इन 24 अक्षरों में चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां, चौबीस सिद्धियां और चौबीस शक्ति बीज समाहित हैं। गायत्री मंत्र का उच्चारण व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है।

गायत्री मंत्र का पूरा स्वरूप:

ॐ भूर्भुव: स्व:
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गायत्री मंत्र का अर्थ :

  • : यह ब्रह्मांडीय ध्वनि है, जो परमात्मा का प्रतीक है।
  • भूर्भुव: स्व:: तीनों लोक (पृथ्वी, अंतरिक्ष, स्वर्ग) का आह्वान।
  • तत्सवितुर्वरेण्यं: उस सर्वोच्च दिव्य प्रकाश का ध्यान करते हैं।
  • भर्गो देवस्य धीमहि: उस परमात्मा की दिव्यता का ध्यान करते हैं।
  • धियो यो न: प्रचोदयात्: हमारी बुद्धि को सही दिशा में प्रेरित करें।

गायत्री मंत्र का भावार्थ

“हे परमात्मा, हे सूर्यदेव! आप हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें। हमें ज्ञान और बुद्धि प्रदान करें ताकि हम आपके दिव्य प्रकाश को समझ सकें और अपने जीवन को सार्थक बना सकें

गायत्री मंत्र का अर्थ व महिमा
गायत्री मंत्र का अर्थ व महिमा

गायत्री मंत्र का महिमा व तत्व

गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं, जो प्रत्येक देवता और उनकी अद्वितीय गुणों को प्रतिष्ठित करते हैं। ये अक्षर चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियों और चौबीस साधनाओं को दर्शाते हैं। गायत्री मंत्र का जाप करने से इन दिव्य शक्तियों का आवाहन होता है, जिससे धार्मिक लाभ और सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

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गायत्री मंत्र में समाहित तत्व 24 अक्षर, 24 देवता, 24 शक्तियां और 24 सिद्धियां

क्रम संख्याअक्षरदेवताशक्तिसिद्धि
1तत्गणेशसफलता शक्तिकठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि की वृद्धि
2स:नरसिंहपराक्रम शक्तिपुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता, शत्रुनाश, आतंक-आक्रमण से रक्षा
3वि:विष्णुपालन शक्तिप्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि
4तु:शिवकल्याण शक्तिअनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता
5व:श्रीकृष्णयोग शक्तिक्रियाशीलता, कर्मयोग, सौन्दर्य, सरसता, अनासक्ति, आत्मनिष्ठा
6रे:राधाप्रेम शक्तिप्रेम-दृष्टि, द्वेषभाव की समाप्ति
7णि:लक्ष्मीधन शक्तिधन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति
8यं:अग्नितेज शक्तिप्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रतिभाशाली और तेजस्वी होना
9इन्द्ररक्षा शक्तिरोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेतादि के आक्रमणों से रक्षा
10र्गोसरस्वतीबुद्धि शक्तिमेधा की वृद्धि, बुद्धि में पवित्रता, दूरदर्शिता, चतुराई, विवेकशीलता
11देदुर्गादमन शक्तिविघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार
12हनुमाननिष्ठा शक्तिकर्तव्यपरायणता, निष्ठावान, विश्वासी, निर्भयता एवं ब्रह्मचर्य-निष्ठा
13स्यपृथिवीधारण शक्तिगंभीरता, क्षमाशीलता, भार वहन करने की क्षमता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य
14धीसूर्यप्राण शक्तिआरोग्य-वृद्धि, दीर्घ जीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विचारों का शोधन
15श्रीराममर्यादा शक्तितितिक्षा, कष्ट में विचलित न होना, मर्यादापालन, मैत्री, सौम्यता, संयम
16हिश्रीसीतातप शक्तिनिर्विकारता, पवित्रता, शील, मधुरता, नम्रता, सात्विकता
17धिचन्द्रशांति शक्तिउद्विग्नता का नाश, काम, क्रोध, लोभ, मोह, चिन्ता का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार
18योयमकाल शक्तिमृत्यु से निर्भयता, समय का सदुपयोग, स्फूर्ति, जागरुकता
19योब्रह्माउत्पादक शक्तिसंतानवृद्धि, उत्पादन शक्ति की वृद्धि
20न:वरुणरस शक्तिभावुकता, सरलता, कला से प्रेम, दूसरों के लिए दयाभावना, कोमलता, प्रसन्नता, आर्द्रता, माधुर्य, सौन्दर्य
21प्रनारायणआदर्श शक्तिमहत्वकांक्षा-वृद्धि, दिव्य गुण-स्वभाव, उज्जवल चरित्र, पथ-प्रदर्शक कार्यशैली
22चोहयग्रीवसाहस शक्तिउत्साह, वीरता, निर्भयता, शूरता, विपदाओं से जूझने की शक्ति, पुरुषार्थ
23हंसविवेक शक्तिउज्जवल कीर्ति, आत्म-संतोष, दूरदर्शिता, सत्संगति, सत्-असत् का निर्णय लेने की क्षमता, उत्तम आहार-विहार
24यात्तुलसीसेवा शक्तिलोकसेवा में रुचि, सत्यनिष्ठा, पातिव्रत्यनिष्ठा, आत्म-शान्ति, परदु:ख-निवारण

गायत्री मंत्र के इन 24 अक्षरों में समाहित 24 देवता और उनकी शक्तियां व्यक्ति के जीवन को संतुलित, समृद्ध और आनंदमय बनाते हैं। इसके नियमित जाप से सभी शक्तियों और सिद्धियों का लाभ प्राप्त होता है।

गायत्री मंत्र में 24 देवता कौन कौन से हैं?

गायत्री मंत्र में 24 देवताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. तत् (त्रयम्बकं) – भगवान शिव
  2. स: (सर्वेश्वरं) – भगवान नरसिंह
  3. वि: (विश्वम्भरं) – भगवान विष्णु
  4. तु: (तेजोमयं) – भगवान शिव
  5. व: (विग्ननाशनं) – भगवान श्रीकृष्ण
  6. रे (रुद्रं) – भगवान रुद्र (शिव)
  7. णि: (निराकारं) – भगवान लक्ष्मी
  8. यं (युगादिकारं) – भगवान अग्नि
  9. भ (भरं) – भगवान इन्द्र
  10. र्गो (रजसं) – भगवान सरस्वती
  11. दे (देवाधिदेवं) – भगवान दुर्गा
  12. व (विवस्वतं) – भगवान हनुमान
  13. स्य (स्यात्प्रसादात्) – भगवान पृथ्वी
  14. धी (धेयायज्ञाध्यायं) – भगवान सूर्य
  15. म (मरीचिं) – भगवान श्रीराम
  16. हि (हिरण्यगर्भं) – भगवान श्रीसीता
  17. धि (धियां) – भगवान चन्द्र
  18. यो (योनिं) – भगवान यम
  19. यो (योनिम्ने) – भगवान ब्रह्मा
  20. न (नरकेऽधं) – भगवान वरुण
  21. प्र (प्रजापतिं) – भगवान नारायण
  22. चो (चोदितं) – भगवान हयग्रीव
  23. द (देवं) – भगवान हंस
  24. यात् (यातयत्) – भगवान तुलसी

गायत्री मंत्र विराट् विश्व और मानव जीवन, देवतत्व और भूततत्त्व, मन और प्राण, ज्ञान और कर्म के पारस्परिक सम्बन्धों की पूरी व्याख्या करता है। इसके देवता सविता हैं, जो सूर्य के एक रूप हैं। सविता वह शक्ति है जो समस्त देवों को प्रेरित करती है। जाग्रत् अवस्था में सविता रूपी मन ही मानव की महती शक्ति है।

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