दत्तात्रेय मंत्र साधना: श्री दत्तात्रेय की कथा अत्यंत प्राचीन और पौराणिक है। दत्तात्रेय का जन्म महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया की तपस्या के फलस्वरूप हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अत्रि ऋषि और अनुसूया ने त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – की कठोर तपस्या की थी ताकि उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हो। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर त्रिदेव स्वयं प्रकट हुए और वरदान स्वरूप उन्हें एक ऐसा पुत्र प्रदान किया जिसमें तीनों देवताओं का अंश हो। इस प्रकार, त्रिदेवों द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद के फलस्वरूप “दत्तात्रेय” का जन्म हुआ।
“दत्तात्रेय” नाम की व्युत्पत्ति भी इसी कहानी से जुड़ी हुई है। यह नाम “दत्त” और “अत्रेय” शब्दों से बना है। “दत्त” का अर्थ है ‘प्रदान किया हुआ’ या ‘अर्पित किया हुआ’, जो त्रिदेवों द्वारा दिए गए आशीर्वाद का प्रतीक है। “अत्रेय” शब्द अत्रि ऋषि के कुलनाम से संबंधित है, जिसका अर्थ है ‘अत्रि का पुत्र’। इस प्रकार, दत्तात्रेय का नाम इस बात का प्रतीक है कि वे त्रिदेवों के आशीर्वाद से अत्रि ऋषि और अनुसूया को प्राप्त हुए थे।
दत्तात्रेय को हिंदू धर्म में एक महान योगी और गुरु माना जाता है। उन्हें त्रिमूर्ति का संयुक्त अवतार भी कहा जाता है, जिसमें ब्रह्मा का सृजनात्मकता, विष्णु का पालन-पोषण और शिव का संहारक तत्व शामिल हैं। वे अद्वैत वेदांत के महान प्रवर्तक माने जाते हैं और उन्हें कई संतों और महापुरुषों का गुरु भी माना गया है।
दत्तात्रेय मंत्र साधना
दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का अग्रज माना जाता है। यह भी मान्यता है कि दत्तात्रेय ही रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक थे। भगवान दत्तात्रेय ने वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक समन्वित संप्रदाय की स्थापना की थी।
श्री गुरुदेव दत्त, भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर, उनके स्मरण मात्र से सभी विपदाओं से रक्षा करते हैं। औदुंबर अर्थात ‘गूलर वृक्ष’ दत्तात्रेय का सर्वाधिक पूज्यनीय रूप है, और इसी वृक्ष में दत्त तत्व अधिक मात्रा में विद्यमान है।
भगवान शंकर का साक्षात स्वरूप महाराज दत्तात्रेय में प्रकट होता है। वे तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित हैं, और उनकी साधना अत्यंत सफल और शीघ्र फल देने वाली मानी जाती है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगंबर रहे। वे सर्वव्यापी हैं और किसी भी संकट में भक्त की तुरंत सहायता करते हैं। यदि मानसिक रूप से, कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जाए तो वे साधकों पर शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं।
दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं, और इसलिए उन्हें ‘परब्रह्ममूर्ति सदगुरु’ और ‘श्री गुरुदेव दत्त’ कहा जाता है। वे गुरु वंश के प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माने जाते हैं। विविध पुराणों और महाभारत में भी दत्तात्रेय की श्रेष्ठता का उल्लेख मिलता है। वे श्री हरि विष्णु के अवतार हैं और पालनकर्ता, त्राता तथा भक्तवत्सल के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वे भक्तों के रक्षक और अभिमानी भी हैं।
दत्तात्रेय तंत्र मंत्र साधना विधि:
गुरुवार और प्रत्येक पूर्णिमा की शाम भगवान दत्तात्रेय की उपासना में विशेष मंत्र का स्मरण अत्यंत शुभ माना जाता है। इसलिए जितना अधिक संभव हो, मंत्र जाप करना चाहिए। मंत्र जाप से पूर्व शुद्धता का विशेष ध्यान रखें, और हो सके तो स्फटिक माला से रोज़ दोनों मंत्रों का एक माला जाप करें।
दत्तात्रेय मंत्र
“ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः॥”
(Om Draam Dattatreyaaya Namah)
अर्थ: यह तांत्रिक मंत्र भगवान दत्तात्रेय को समर्पित है। इसका उच्चारण करने से साधक भगवान दत्तात्रेय को प्रणाम करता है और उनकी कृपा प्राप्त करता है।
दत्तात्रेय ध्यान मंत्र
“जटाधारं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम्।
सर्व रोग हरं देवं, दत्तात्रेयमहं भजे॥”
अर्थ: मैं उस भगवान दत्तात्रेय की भक्ति करता हूँ, जो जटा धारण किए हुए हैं, जिनका रंग पांडुर (सफेद) है, जो हाथ में शूल (त्रिशूल) धारण करते हैं, जो कृपा के सागर हैं, और जो सभी रोगों को हरने वाले देवता हैं।
दत्तात्रेय गायत्री मंत्र
“ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्राराय धीमहि।
तन्नो दत्तः प्रचोदयात॥”
अर्थ: हम उन दिगंबर (निर्वस्त्र) दत्तात्रेय को जानते हैं, जो महान योगियों के ईश्वर हैं। हम उन पर ध्यान करते हैं। वे दत्त हमारे बुद्धि को प्रकट करें और मार्गदर्शन करें।
उपरोक्त इन मंत्र का जाप स्फटिक की माला से नित्य 108 बार करना चाहिए।
द्राम बीज मंत्र । मानसिक रूप से जाप करने का मंत्र –
ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां।
इसके बाद नित्य 10 माला का जाप निम्न मंत्र से करना चाहिए।
‘ ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा।’
धार्मिक शास्त्रों में व्यक्त की गई मान्यता के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय को उपासना करने से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि, और बल की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से शत्रुओं की बाधा दूर होती है और कार्यों में सफलता मिलती है। वे भक्त की प्रार्थना को शीघ्र सुनकर, उसकी कामनाएं पूरी करते हैं और संकटों को नष्ट करते हैं।