परोपकार, जिसे दूसरों की निःस्वार्थ सेवा और सहायता के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह न केवल व्यक्तिगत नैतिकता और धर्म का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक स्नेह और सहयोग का भी आधार है। परोपकार का उद्देश्य केवल खुद के लाभ से अधिक होता है; यह समाज के उत्थान और मानवता की भलाई के लिए किया जाता है।
संस्कृत श्लोक परोपकार के महत्व और इसके अभ्यास के मार्गदर्शन के लिए अत्यंत प्रेरणादायक होते हैं। ये श्लोक हमें यह सिखाते हैं कि कैसे निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना, आत्मा की उन्नति और सामाजिक समरसता का मूल है। परोपकार केवल धार्मिक अनुष्ठान या आचारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में परिलक्षित होना चाहिए।
इस लेख में, हम परोपकार से संबंधित कुछ प्रेरणादायक संस्कृत श्लोकों पर चर्चा करेंगे, जो परोपकार के सिद्धांत, लाभ और इसके सही अभ्यास को स्पष्ट करते हैं। इन श्लोकों के माध्यम से, हम यह समझेंगे कि परोपकार किस प्रकार जीवन को अर्थपूर्ण और समृद्ध बना सकता है।
परोपकार पर प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक
परोपकार से संबंधित संस्कृत श्लोक:
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः परोपकाराय सतां विभृतयः॥
अर्थ: नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीतीं, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, और बादल स्वयं उगाए हुए अनाज का सेवन नहीं करते। ये सभी परोपकार के लिए कार्य करते हैं। इसी प्रकार, सत्पुरुषों का जीवन भी परोपकार के लिए होता है।
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्॥
अर्थ: अठारह पुराणों में महर्षि व्यास ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं: दूसरों की सहायता करने से पुण्य प्राप्त होता है और दूसरों को कष्ट देने से पाप होता है।
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम्॥
अर्थ: वृक्ष फल परोपकार के लिए देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए बहती हैं, और गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं। इसी प्रकार, यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है।
आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति॥
अर्थ: इस संसार में कौन नहीं स्वयं के लिए जीता है? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही वास्तव में जीवित है। अर्थात्, परोपकार के लिए जीने वाला व्यक्ति ही सच्चे अर्थ में जीवन जीता है।
भवन्ति नम्रस्तरवः फलोद्रमैः।
नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः।
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्॥
अर्थ: वृक्ष फल आने पर झुक जाते हैं, अर्थात् नम्र बन जाते हैं; पानी से भरे बादल आकाश से नीचे आ जाते हैं; अच्छे लोग समृद्धि से नम्र और सहृदय बने रहते हैं। परोपकार करने वालों की स्वभाव ही ऐसा होता है।
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