पंचामृत, जिसे हम धार्मिक आचरणों में प्रयोग करने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण मानते हैं, एक महत्वपूर्ण पदार्थ है जो हमारे जीवन को धन्य और समृद्ध बनाता है। यह परंपरागत प्रथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और हमें धार्मिकता, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक विकास के माध्यम के रूप में उपयोगी साबित होता है। इसे पंचामृत के रूप में बनाया जाता है, जो धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग होता है और प्रसाद के रूप में सम्बोधित किया जाता है।तो आइये जानते है इस लेख में क्या है पंचामृत मंत्र , इसे बनाने के मंत्र , लाभ एबं महत्व
पंचामृत के पांच तत्व
पंचामृत में पांच प्रमुख घटक होते हैं – दूध, दही, घी, शहद या शक्कर, और तुलसी पत्र। इन पाँचों अद्भुत पदार्थों को मिलाकर एक संयुक्त औषधि तैयार की जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में उपभोग किया जाता है।
- दूध: दूध विशेष गुणों से भरपूर होता है और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। यह हड्डियों को मजबूत करता है, त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाता है, और ऊर्जा को बढ़ाता है।
- दही: दही को आमतौर पर ठंडा करके प्रसाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह पाचन को सुधारता है, गर्मियों में ठंडक प्रदान करता है, और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाता है।
- घी: घी का सेवन भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। यह शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बढ़ाता है और स्वास्थ्यप्रद तत्त्वों से भरपूर होता है।
- शहद : शहद स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ये प्राकृतिक मिठास प्रदान करते हैं और त्वचा के लिए भी लाभकारी होते हैं।
- शक्कर: यह मीठास का प्रतीक है, जो हमारे जीवन में मिठास और सुख का संकेत है। शक्कर चढ़ाना अर्थ है कि हमें अपने जीवन में मिठास को बढ़ावा देना चाहिए। मीठा बोलना सभी को प्रिय होता है और यह हमारे व्यवहार को मधुर और प्रिय बनाता है।
अतिरिक्त ,एक या दो तुलसी के पत्ते को इसमें मिलाकर नियमित रूप से सेवन करने से व्यक्ति कभी भी किसी भी प्रकार के रोग या शोक का सामना नहीं करता है। कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, कब्ज, और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से बचाव संभव है। पंचामृत में और भी अनेक लाभ होते हैं।
पंचामृत की विधि | पंचामृत का तैयारी का विधान
पंचामृत शब्द ‘पंच’ और ‘अमृत’ का मेल से बनता है। इसमें पांच अमृत तत्वों का संयोजन किया जाता है। पंचामृत का प्रमुख कार्य देवी-देवताओं का स्नान (अभिषेक) कराना होता है। यहां हम जानेंगे कि पंचामृत को कैसे तैयार किया जाता है ।
पंचामृत की सामग्री
पंचामृत में पांच तत्वों को काम में लिया जाता है, जो निम्नलिखित हैं:
- कच्चा गाय का दूध (गाय का ताजा दूध)
- दही
- शहद
- घी
- शक्कर/मिश्री
ऊपर दी गई सभी चीजों को मिलाकर पंचामृत को तैयार किया जाता है। यदि आप थोड़ा सा गंगा जल और कुछ तुलसी के पत्ते डालते हैं तो यह और भी अच्छा होगा।
पंचामृत बनाने का मंत्र
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पंचामृत को बनाने के लिए उपरोक्त पदार्थों को संयोजित किया जाता है और फिर इसे भगवान को भोग लगाकर प्रसाद रूप में बांटा जाता है। इसके लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है, जो हमें धार्मिक भावना के साथ अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित और स्वास्थ्यपूर्ण रखने में मदद करते हैं।निम्न मंत्र का जाप करके पंचामृत का पान करें।
- पात्र में दूध डालने के लिए मंत्र:
“ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः ।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ।”
- दही डालने के लिए मंत्र:
“ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं, जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।
सुरभि नो मुखा करत्प्र णऽ, आयू षि तारिषत् ।”
- घी डालने के लिए मंत्र:
“ॐ घृतं घृतपावानः, पिबत वसां वसापावानः, पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा।
दिशः प्रदिशऽआदिशो विदिशऽ, उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा॥”
- शहद डालने के लिए मंत्र:
“ॐ मधु वाताऽ ऋतायते, मधुक्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः।
ॐ मधु नक्तमुतोषसो, मधुमत्पार्थिव रजः। मधुद्यौरस्तु नः पिता।
ॐ मधुमान्नो वनस्पतिः, मधुमाँ२ अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः।”
- तुलसी डालने के लिए मंत्र:
“ॐ या ओषधीः पूर्वा जाता, देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा।
मनै नु बभ्रूणामह , शतं धामानि सप्त च॥”
पंचामृत का प्रयोग आमतौर पर भगवान विष्णु की पूजा में किया जाता है। इस पंचामृत से शालिग्रामजी या ठाकुरजी को स्नान कराया जाता है, और फिर इसमें तुलसी के पत्ते मिलाकर भोग लगाया जाता है। गंगाजल डालकर इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
ध्यान दें कि पंचामृत का सेवन उसी मात्रा में होना चाहिए जिस मात्रा में प्रसाद लिया जाता है, और अधिक नहीं। पंचामृत को ‘अमृत’ की तरह स्वाद करना ही अच्छा समझा जाता है।
पंचामृत पान का मंत्र:
पंचामृत में अधिकांश तत्व गौवंशीय द्रव्य होते हैं, इसलिए इसे मातृभूमि के प्रसाद एवं भगवान के प्रसाद के रूप में श्रद्धा, निष्ठा और प्रसन्नता के साथ ग्रहण करना चाहिए। यह पंचामृत ही जीवन के सर्वोत्तम अमृत होता है, जो मनुष्य को अमरत्व का अनुभव कराता है। निम्न मंत्र का जाप करके पंचामृत का पान करें।
“ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां, स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय, मा गामनागामदितिं वधिष्ट।”
इन मंत्रों का जाप करके पंचामृत को तैयार किया जाता है और इसे धार्मिक आचार-विचार के साथ भगवान को भोग लगाकर सभी को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
पंचामृत मंत्र | पंचामृत स्नान का मंत्र
“पयो दधि घृतं मधु चैव च शर्करायुतम्।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्।।”
पंचामृत के फायदे
पंचामृत पीने के लाभ:
- पंचामृत में कैल्शियम की मात्रा काफी अधिक होती है, जो हड्डियों को मजबूत बनाए रखती है।
- आयुर्वेद के अनुसार, पंचामृत बलवर्धक, शीतल, पौष्टिक, और पाचक गुणों से युक्त होता है।
- अगर आपको समय पर भूख नहीं लगती है, तो पंचामृत का सेवन करने से लाभ हो सकता है।
- पंचामृत पीने से दिमाग शांत रहता है और इससे क्रोध नहीं होता है।
महत्त्व
गाय का महत्त्व ब्राह्मण और माँ के समान माना गया है। इसकी दिव्यता और गुणों का उपयोग करते हुए पंचामृत पान किया जाता है। इस प्रक्रिया में पंचामृत बनाकर रखा जाता है और फिर भगवान को भोग लगाकर उसका प्रसाद बांटा जाता है। शास्त्रों में पंचामृत बनाने और पान करने के मंत्र एक साथ दिए गए हैं, और इस विधि से पंचामृत बनाया जाता है, जिससे उसे ग्रहण करने वाले का मन प्रसन्न और शांत होता है।
प्रसाद अमृत तुल्य, पौष्टिक और सुसंस्कार देने में समर्थ पदार्थों का ही बनाया जाता है और इसे प्रभु के अर्पण के रूप में पान किया जाता है। इसके लिए प्रतीक रूप में गोरस का उपयोग किया जाता है। गाय में दिव्यता (सतोगुण) की मात्रा अत्यधिक है, और गोरस हमारे शरीर, मन, मस्तिष्क और अंतःकरण को उत्कृष्टता के तत्त्वों से भर देता है।
गोरस केवल उत्तम आहार ही नहीं, बल्कि दिव्यगुण सम्पन्न देव प्रसाद भी है। उसकी सात्त्विकता का अनुष्ठान सम्पूर्ण होना चाहिए और जहाँ संभव हो, यज्ञ आहुतियों के लिए गोघृत का प्रबंध किया जाना चाहिए। प्रसाद के रूप में पंचामृत को ही उसकी विशेषताओं के कारण उपयोगी माना जाना चाहिए, जो सस्ता और सर्वसुलभ होता है। गोरस के उपयोग से ही गौ रक्षा और गौ- संवर्धन संभव हो सकता है।
पंचामृत और चरणामृत में अंतर:
- पंचामृत:
- पंचामृत का अर्थ है पांच अमृत समान पवित्र वस्तुओं से बना पदार्थ।
- इसका मुख्य उपयोग देवी-देवताओं के स्नान (अभिषेक) में होता है।
- पंचामृत में शामिल पाँच अमृतीय तत्व हैं – गाय का दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर।
- इन तत्वों के संयोजन से पंचामृत बनता है, जो शरीर और आत्मा को पवित्र करता है और रोगमुक्ति प्रदान करता है।
पंचामृत मंत्र :
“पयो दधि घृतं मधु चैव च शर्करायुतम्।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्।।”
- चरणामृत:
- चरणामृत का अर्थ है भगवान विष्णु के चरणों का अमृत, जो सभी पापों से मुक्ति प्रदान करता है।
- यह जल को तांबे के पात्र में तुलसी दल और तिल के साथ रखकर तैयार किया जाता है।
- इसका सेवन जीवन में सकारात्मकता, स्मरण शक्ति, और बुद्धि विवेक में वृद्धि करता है।
- चरणामृत को श्रद्धा और भाव से ग्रहण किया जाना चाहिए।
चरणामृत मंत्र :
“अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।”
निष्कर्ष:
पंचामृत के कुछ विशेष बातें:
- पंचामृत का निर्माण सूर्यास्त के पूर्व करना उचित माना जाता है।
- पंचामृत के लिए गाय का दूध प्रयोग करना अत्यंत प्रशंसनीय है।
- पंचामृत तैयार होने के बाद, इसमें तुलसी दल और गंगाजल भी मिलाया जाता है।
- यदि शालिग्राम मूर्ति है, तो उसे पंचामृत में स्नान कराया जाता है। अन्यथा, एक चांदी का सिक्का डालें, और इसके माध्यम से श्री हरि को स्नान कर रहे हों।
- अब, श्री हरि का स्मरण करके पंचामृत का प्रसाद लोगों को दें और स्वयं भी ग्रहण करें।
- पंचामृत को दोनों हाथों से ग्रहण करें और ध्यान दें कि यह भूमि पर न गिरे।
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पंचामृत में कौन सी पांच चीजें होती है?
पंचामृत में पांच प्रमुख चीजें होती हैं:
1)कच्चा गाय का दूध, 2) दही, 3)शहद, 4) घी, 5) शक्कर/मिश्री
क्या पंचामृत पीना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है?
पंचामृत पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी हो सकता है। यह परंपरागत आयुर्वेदिक और आध्यात्मिक अनुभव से प्रमाणित है कि पंचामृत का सेवन शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को संतुलित करने में मदद कर सकता है।
पंचामृत मंत्र का उच्चारण कब और कैसे किया जाता है?
पंचामृत तैयार करने के समय, व्यक्ति को प्रत्येक उत्तरदायी तत्त्व के साथ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। उच्चारण के बाद, पंचामृत का प्रसाद तैयार होता है।
पंचामृत मंत्र का क्या महत्त्व है?
पंचामृत मंत्र का उच्चारण करने से पंचामृत के प्रसाद की शक्ति और महिमा में वृद्धि होती है, जो आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्रदान करता है।
पंचामृत मंत्र का उच्चारण करने का उद्देश्य क्या है?
पंचामृत मंत्र के उच्चारण से पंचामृत को शुद्ध और पवित्र बनाने का उद्देश्य होता है, ताकि इसका सेवन करने वाले को आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्राप्त हो।