Manyu Suktam in Hindi : मन्यु सूक्तम, ऋग्वेद के 10वें मंडल के अंतर्गत आता है। इस सूक्तम का मुख्य विषय भगवान मन्यु की स्तुति और प्रार्थना है। “मन्यु” का अर्थ होता है क्रोध, आक्रोश, या वीरता, और इसे यहाँ भगवान रुद्र का एक रूप माना जाता है।
मन्यु सूक्तम् (Manyu Suktam )
ऋग्वेद संहिता; मंडलं 10; सूक्तं 83,84
यस्ते᳚ म॒न्योऽवि॑धद्वज्र सायक॒ सह॒ ओज॑: पुष्यति॒ विश्व॑मानु॒षक् ।
सा॒ह्याम॒ दास॒मार्यं॒ त्वया᳚ यु॒जा सह॑स्कृतेन॒ सह॑सा॒ सह॑स्वता ॥ ०१
म॒न्युरिन्द्रो᳚ म॒न्युरे॒वास॑ दे॒वो म॒न्युर्होता॒ वरु॑णो जा॒तवे᳚दाः ।
म॒न्युं विश॑ ईलते॒ मानु॑षी॒र्याः पा॒हि नो᳚ मन्यो॒ तप॑सा स॒जोषा᳚: ॥ ०२
अ॒भी᳚हि मन्यो त॒वस॒स्तवी᳚या॒न्तप॑सा यु॒जा वि ज॑हि॒ शत्रू॑न् ।
अ॒मि॒त्र॒हा वृ॑त्र॒हा द॑स्यु॒हा च॒ विश्वा॒ वसू॒न्या भ॑रा॒ त्वं न॑: ॥ ०३
त्वं हि म᳚न्यो अ॒भिभू᳚त्योजाः स्वय॒म्भूर्भामो᳚ अभिमातिषा॒हः ।
वि॒श्वच॑र्षणि॒: सहु॑रि॒: सहा᳚वान॒स्मास्वोज॒: पृत॑नासु धेहि ॥ ०४
अ॒भा॒गः सन्नप॒ परे᳚तो अस्मि॒ तव॒ क्रत्वा᳚ तवि॒षस्य॑ प्रचेतः ।
तं त्वा᳚ मन्यो अक्र॒तुर्जि॑हीला॒हं स्वा त॒नूर्ब॑ल॒देया᳚य॒ मेहि॑ ॥ ०५
अ॒यं ते᳚ अ॒स्म्युप॒ मेह्य॒र्वाङ्प्र॑तीची॒नः स॑हुरे विश्वधायः ।
मन्यो᳚ वज्रिन्न॒भि मामा व॑वृत्स्व॒ हना᳚व॒ दस्यू᳚।णृ॒त बो᳚ध्या॒पेः ॥ ०६
अ॒भि प्रेहि॑ दक्षिण॒तो भ॑वा॒ मेऽधा᳚ वृ॒त्राणि॑ जङ्घनाव॒ भूरि॑ ।
जु॒होमि॑ ते ध॒रुणं॒ मध्वो॒ अग्र॑मु॒भा उ॑पां॒शु प्र॑थ॒मा पि॑बाव ॥ ०७
त्वया᳚ मन्यो स॒रथ॑मारु॒जन्तो॒ हर्ष॑माणासो धृषि॒ता म॑रुत्वः ।
ति॒ग्मेष॑व॒ आयु॑धा सं॒शिशा᳚ना अ॒भि प्र य᳚न्तु॒ नरो᳚ अ॒ग्निरू᳚पाः ॥ ०१
अ॒ग्निरि॑व मन्यो त्विषि॒तः स॑हस्व सेना॒नीर्न॑: सहुरे हू॒त ए᳚धि ।
ह॒त्वाय॒ शत्रू॒न्वि भ॑जस्व॒ वेद॒ ओजो॒ मिमा᳚नो॒ वि मृधो᳚ नुदस्व ॥ ०२
सह॑स्व मन्यो अ॒भिमा᳚तिम॒स्मे रु॒जन्मृ॒णन्प्र॑मृ॒णन्प्रेहि॒ शत्रू॑न् ।
उ॒ग्रं ते॒ पाजो᳚ न॒न्वा रु॑रुध्रे व॒शी वशं᳚ नयस एकज॒ त्वम् ॥ ०३
एको᳚ बहू॒नाम॑सि मन्यवीलि॒तो विशं᳚विशं यु॒धये॒ सं शि॑शाधि ।
अकृ॑त्तरु॒क्त्वया᳚ यु॒जा व॒यं द्यु॒मन्तं॒ घोषं᳚ विज॒याय॑ कृण्महे ॥ ०४
वि॒जे॒ष॒कृदिन्द्र॑ इवानवब्र॒वो॒३॒॑ऽस्माकं᳚ मन्यो अधि॒पा भ॑वे॒ह ।
प्रि॒यं ते॒ नाम॑ सहुरे गृणीमसि वि॒द्मा तमुत्सं॒ यत॑ आब॒भूथ॑ ॥ ०५
आभू᳚त्या सह॒जा व॑ज्र सायक॒ सहो᳚ बिभर्ष्यभिभूत॒ उत्त॑रम् ।
क्रत्वा᳚ नो मन्यो स॒ह मे॒द्ये॑धि महाध॒नस्य॑ पुरुहूत सं॒सृजि॑ ॥ ०६
संसृ॑ष्टं॒ धन॑मु॒भयं᳚ स॒माकृ॑तम॒स्मभ्यं᳚ दत्तां॒ वरु॑णश्च म॒न्युः ।
भियं॒ दधा᳚ना॒ हृद॑येषु॒ शत्र॑व॒: परा᳚जितासो॒ अप॒ नि ल॑यन्ताम् ॥ ०७
धन्व॑ना॒गाधन्व॑ना॒जिञ्ज॑येम॒ धन्व॑ना ती॒व्राः स॒मदो᳚ जयेम ।
धनुः शत्रो᳚रपका॒मं कृ॑णोति॒ धन्व॑ ना॒सर्वा᳚: प्र॒दिशो᳚ जयेम ॥
शान्ता॑ पृथिवी शि॑वम॒न्तरिक्षं॒ द्यौर्नो॒᳚देव्यऽभ॑यन्नो अस्तु ।
शि॒वा॒ दिश॑: प्र॒दिश॑ उ॒द्दिशो᳚ न॒ऽआपो᳚ वि॒श्वत॒: परि॑पान्तु स॒र्वत॒: शा॒न्ति॒: शा॒न्ति॒: शान्ति॑: ।
इतर वेद सूक्तानि पश्यतु ।
मन्यु सूक्तम् का मुख्य तत्व:
- भगवान मन्यु की स्तुति: इस सूक्तम में भगवान मन्यु को विभिन्न उपाधियों से सम्बोधित किया गया है, जैसे कि वीर, योध्दा, और रक्षक।
- युद्ध की महिमा: इस सूक्तम में युद्ध की महिमा का वर्णन किया गया है और यह दर्शाया गया है कि भगवान मन्यु की कृपा से युद्ध में विजय प्राप्त होती है।
- रक्षा और शरण: भक्तों द्वारा भगवान मन्यु से प्रार्थना की जाती है कि वे उन्हें शत्रुओं से बचाएं और उनकी रक्षा करें।
- धर्म और न्याय: इस सूक्तम में धर्म और न्याय की स्थापना के लिए भगवान मन्यु से प्रार्थना की जाती है।
मन्यु सूक्तम में विभिन्न मंत्रों के माध्यम से भगवान मन्यु की कृपा, शक्ति और वीरता की स्तुति की गई है। यह सूक्तम न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए, बल्कि आत्मरक्षा और शौर्य की प्रेरणा के लिए भी महत्वपूर्ण है।
मण्यु सूक्त का महत्व
मण्यु सूक्त में इंद्र के क्रोध को एक दिव्य शक्ति के रूप में देखा गया है, जो राक्षसों और दुष्ट शक्तियों का विनाश करती है। यह सूक्त हमें यह सिखाता है कि क्रोध को सही दिशा में उपयोग करके अधर्म का नाश किया जा सकता है। इसके साथ ही, यह सूक्त इंद्र की वीरता और उनकी युद्ध कौशल की भी प्रशंसा करता है।
मण्यु सूक्त पाठ के लाभ
मण्यु सूक्त का पाठ विशेष रूप से युद्ध और संघर्ष के समय किया जाता है, ताकि इंद्र की कृपा प्राप्त हो और विजय प्राप्त हो सके। इसके अलावा, यह सूक्त उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन में किसी भी प्रकार के संघर्ष का सामना कर रहे हैं और उन्हें शक्ति और साहस की आवश्यकता है।