गायत्री महामंत्र वेदों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मंत्र है, जिसकी महत्ता ॐ के बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के ‘भूर्भुवः स्वः’ मंत्र और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना की जाती है, इसलिए इसे सावित्री मंत्र भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रूप में भी पूजा जाता है।
गायत्री मंत्र का अर्थ व महिमा
गायत्री छंद: संरचना और महत्व
‘गायत्री’ एक छंद भी है, जो 24 मात्राओं (8 + 8 + 8) के योग से बना है। यह ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में से एक है। इन सात छंदों के नाम हैं: गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छंद में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। इस प्रकार, जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी, तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया।
गायत्री मंत्र की आध्यात्मिक महत्ता
गायत्री महामंत्र के नियमित उच्चारण से मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक साधना का माध्यम है, बल्कि इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि गायत्री मंत्र को सभी मंत्रों का सार और सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
गायत्री महामंत्र और गायत्री छंद की महत्ता के कारण ही यह वेदों का एक अटूट हिस्सा है और इसे हर हिन्दू धर्मावलंबी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
Gayatri Mantra In Hindi
गायत्री मंत्र: स्वर सहित और स्वर रहित पाठ
स्वर सहित गायत्री मंत्र:
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्स॑वि॒तुर्वरे॑ण्यं॒
भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
स्वर रहित गायत्री मंत्र:
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
Gayatri Mantra Meaning In Hindi
गायत्री मंत्र का हिन्दी भावार्थ:
हम उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
गायत्री मंत्र का विस्तार और महत्ता:
गायत्री मंत्र वेदों का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण मंत्र है। इसे वेदों में सबसे प्रभावशाली मंत्रों में से एक माना गया है। इस मंत्र में तीन महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं:
- ॐ भूर्भुवः स्वः: यह त्रयी परमात्मा के तीन लोकों का प्रतिनिधित्व करती है। ‘भूर्’ पृथ्वी का, ‘भुवः’ अंतरिक्ष का और ‘स्वः’ स्वर्ग का सूचक है।
- तत् सवितुर्वरेण्यं: ‘तत्’ उस परमात्मा को संदर्भित करता है। ‘सवितु:’ का अर्थ है सविता (सूर्य) जो सभी जीवों का उत्पत्ति स्रोत है। ‘वरेण्यं’ का अर्थ है पूजनीय या श्रेष्ठतम।
- भर्गो देवस्य धीमहि: ‘भर्गो’ का अर्थ है दिव्य तेज, ‘देवस्य’ का अर्थ है देवता का, और ‘धीमहि’ का अर्थ है ध्यान करना। यह पंक्ति दिव्य तेज का ध्यान करने की प्रेरणा देती है।
- धियो यो नः प्रचोदयात्: ‘धियो’ का अर्थ है बुद्धि, ‘यो’ का अर्थ है जो, ‘नः’ का अर्थ है हमारी, और ‘प्रचोदयात्’ का अर्थ है प्रेरित करे। यह पंक्ति प्रार्थना करती है कि हमारी बुद्धि को परमात्मा सन्मार्ग में प्रेरित करें।
गायत्री मंत्र उपासना विधि:
गायत्री मंत्र का नियमित जप अत्यंत आवश्यक माना गया है। प्रतिदिन तीन माला जप करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। शौच-स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान और समय पर सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना करनी चाहिए।
उपासना विधि का क्रम:
1. ब्रह्म सन्ध्या:
यह शरीर और मन को पवित्र बनाने की प्रक्रिया है, जिसमें पाँच कृत्य शामिल होते हैं:
I. पवित्रीकरण:
बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें। इसके बाद जल को सिर और शरीर पर छिड़क लें:
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
II. आचमन:
वाणी, मन और अंतःकरण की शुद्धि के लिए तीन बार जल का आचमन करें। प्रत्येक मंत्र के साथ एक आचमन करें:
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।
III. शिखा स्पर्श एवं वंदन:
शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें और भावना करें कि सद्विचार यहाँ स्थापित रहेंगे:
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
IV. प्राणायाम:
श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना और बाहर निकालना प्राणायाम के अंतर्गत आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति और श्रेष्ठता अन्दर खींची जा रही है, और छोड़ते समय यह भावना करें कि दुर्गुण और बुरे विचार बाहर निकल रहे हैं। प्राणायाम निम्न मंत्र के साथ करें:
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।
V. न्यास :
न्यास का उद्देश्य शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश और अंतः की चेतना को जागृत करना है। बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को भिगोकर निम्न मंत्रों के साथ संबंधित स्थान को स्पर्श करें:
ॐ वाँ मे आस्येऽस्तु। (मुख को)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को)
ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु। (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानि मेऽंगानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)
आत्मशोधन की ब्रह्म सन्ध्या के उपरोक्त पाँचों कार्य का उद्देश्य साधक में पवित्रता और प्रखरता को बढ़ाना तथा मलिनता और अवांछनीयता को दूर करना है। पवित्र और प्रखर व्यक्ति ही भगवान के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं।
2. देवपूजन
गायत्री उपासना का प्रमुख आधार महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री है। पूजा वेदी पर उनका प्रतीक चित्र स्थापित कर, निम्न मंत्र के साथ उनका आवाहन करें:
ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि।
गुरु आवाहन: सद्गुरु का आवाहन निम्न मंत्रों के साथ करें:
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
पंचोपचार पूजन: पूजा में जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, और नैवेद्य का उपयोग करें। इनका क्रमिक समर्पण करें:
- जल: नम्रता-सहृदयता।
- अक्षत: समयदान-अंशदान।
- पुष्प: प्रसन्नता-आंतरिक उल्लास।
- धूप-दीप: सुगंध और प्रकाश का वितरण।
- नैवेद्य: स्वभाव और व्यवहार में मधुरता।
3. गायत्री मंत्र जाप
गायत्री मंत्र का न्यूनतम तीन माला जप करें:
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
जप के दौरान भावना करें कि आप निरंतर पवित्र हो रहे हैं और सद्बुद्धि स्थापित हो रही है।
4. ध्यान
जप करते समय मन को ध्यान में लगाएँ:
- साकार ध्यान: गायत्री माता की छाया में बैठने की भावना।
- निराकार ध्यान: सविता देवता की स्वर्णिम किरणों का अनुभव।
5. सूर्यार्घ्यदान
जप के बाद सूर्य की दिशा में अर्घ्य चढ़ाएँ:
ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥
भावना करें कि, जल आपकी आत्मा का प्रतीक है और सूर्य विराट ब्रह्म का, और आपकी सत्ता समष्टि के लिए समर्पित हो रही है।
पूजा के अंत में देवताओं को करबद्ध नमन करें और सभी वस्तुओं को यथास्थान रख दें। माला तुलसी या चंदन की होनी चाहिए। गायत्री उपासना सूर्योदय से दो घंटे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक की जा सकती है। मौन-मानसिक जप चौबीस घंटे किया जा सकता है। जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें और सुमेरु का उल्लंघन न करें।
इस विधि का पालन करने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है और आध्यात्मिक विकास के मार्ग में प्रगति होती है। इससे न केवल शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव भी आते हैं।
गायत्री ध्यानम्
गायत्री मंत्र के ध्यान के साथ ही गायत्री देवी के स्वरूप का ध्यान भी महत्वपूर्ण है। ध्यान के माध्यम से साधक अपनी आत्मा को पवित्र और ऊर्जावान बना सकता है। यहाँ गायत्री देवी के ध्यान मंत्र का विस्तृत विवरण दिया गया है:
गायत्री ध्यान मंत्र:
मुक्ता-विद्रुम-हेम-नील धवलच्छायैर्मुखस्त्रीक्षणै-
र्युक्तामिन्दु-निबद्ध-रत्नमुकुटां तत्त्वार्थवर्णात्मिकाम्।
गायत्रीं वरदा-ऽभयः-ड्कुश-कशाः शुभ्रं कपालं गुण।
शंख, चक्रमथारविन्दुयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे॥
मंत्र का भावार्थ:
मुक्ता (मोती), विद्रुम (माणिक्य), हेम (सोना), नील (नीला), और धवल (सफेद) की छाया में तीन नेत्रों वाली, इन्दु (चन्द्रमा) से बंधे हुए रत्नमुकुट से अलंकृत, तत्त्वार्थवर्ण (तत्त्वों के अर्थ वाली वर्णमाला) की स्वरूपा गायत्री देवी का ध्यान करते हुए, उनके वरद (वरदान देने वाली), अभय (निर्भयता देने वाली), अंकुश (नियंत्रण करने वाली), कश (चाबुक), शुभ्र (सफेद) कपाल (कपाला), शंख, चक्र, पद्म (कमल) और युगल (जोड़ी) हाथों में धारण करने वाली स्वरूपा का ध्यान करते हैं।
नौ ग्रहों के गायत्री मंत्र
ग्रह | गायत्री मंत्र |
---|---|
सूर्य | ॐ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय धीमहि, तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ |
चन्द्र | ॐ अमृताङ्गाय विद्महे, कलारूपाय धीमहि, तन्नः सोमः प्रचोदयात् ॥ |
भौम | ॐ अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय धीमहि, तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥ |
बुध | ॐ सौम्यरूपाय विद्महे, वाणेशाय धीमहि, तन्न: सौम्यः प्रचोदयात् ॥ |
गुरु | ॐ आंगिरसाय विद्महे, दण्डायुधाय धीमहि, तन्नो जीवः प्रचोदयात् ॥ |
शुक्र | ॐ भृगुपुत्राय विद्महे, विन्देशाय धीमहि, तन्न: शुक्रः प्रचोदयात् ॥ |
शनि | ॐ सूर्यात्मजाय विद्महे, मृत्युरूपाय धीमहि, तन्न: सौरिः प्रचोदयात् ॥ |
राहु | ॐ शिरोरूपाय विद्महे, अमृतेशाय धीमहि, तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥ |
केतु | ॐ गदाहस्ताय विद्महे, अमृतेशाय धीमहि, तन्नो केतुः प्रचोदयात् ॥ |
गायत्री मंत्र के फायदे
गायत्री मंत्र के जप के लाभों का वर्णन करते हुए, यह मंत्र वेदों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है जिसका नियमित उच्चारण और जप अनेक प्रकार के लाभ प्रदान करता है।
गायत्री मंत्र के फायदे:
- नकारात्मक शक्तियों का नाश: इस मंत्र का नियमित जप करने से व्यक्ति के आसपास की नकारात्मक ऊर्जाएँ धीरे-धीरे दूर होती हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति का मानसिक और आत्मिक स्थिति सुधारती है।
- तेज बढ़ना: इस मंत्र का जप करने से व्यक्ति का तेज बढ़ता है। यह मानसिक तेजस्वीता को बढ़ाता है और कार्यों में सकारात्मकता लाता है।
- मानसिक चिन्ताओं से मुक्ति: इस मंत्र के जप से मानसिक चिंताओं से छुटकारा मिलता है। यह मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- बौद्धिक क्षमता का विकास: इस मंत्र के जप से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता विकसित होती है। यह स्मरणशक्ति को बढ़ाता है और उसकी विचारशक्ति को मजबूत करता है।
- शक्तियों-सिद्धियों का प्राप्तिकरण:इस मंत्र में चौबीस अक्षर होने से यह 24 शक्तियों के प्रतीक माना जाता है। इसलिए ऋषियों ने इसे सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला बताया है। इस मंत्र का नियमित जप शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक फायदेमंद होता है।
गायत्री मंत्र का जप संसारी जीवन में स्थिरता और सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है, जो मानवता के उद्धार और समृद्धि में सहायक सिद्ध होता है।
गायत्री मंत्र के नुकसान
गायत्री मंत्र के नुकसान के बारे में निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं:
- गायत्री मंत्र का जाप केवल उन लोगों द्वारा किया जा सकता है जो इसकी दीक्षा प्राप्त कर चुके हैं. अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा इस मंत्र का जाप करने से भयंकर कुप्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं।
- गायत्री मंत्र का अनियमित या अनुचित जाप करने से व्यक्ति को नुकसान हो सकता है । इसलिए इस मंत्र का जाप केवल शास्त्रों के अनुसार ही करना चाहिए।
- नियमित इस मंत्र जाप से व्यक्ति की आत्मा का शुद्धिकरण होता है और उसमें उज्ज्वलता आती है. लेकिन अनधिकृत जाप से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
- इसलिए इस मंत्र का जाप केवल योग्य व्यक्तियों द्वारा ही किया जाना चाहिए और उसका पालन शास्त्रीय विधि से होना चाहिए।
गायत्री मंत्र का अर्थ आर्य समाज
गायत्री मंत्र के अर्थ को लेकर आर्य समाज का मत निम्नानुसार है:
- आर्य समाज के अनुसार, गायत्री मंत्र का वास्तविक अर्थ वेदों के अनुसार होना चाहिए. लेकिन आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती नेइस मंत्र का गलत अर्थ दिया था, जो वेदों के अनुरूप नहीं था।
- आर्य समाज केवल “हवन यज्ञ” करने पर ज़ोर देता है और इस मंत्र के सही अर्थ को नहीं जानता था. स्वामी दयानंद जैसे वेद ज्ञान हीन व्यक्तियों को यह भी नहीं पता था कि गायत्री मंत्र किस वेद का है।
- आर्य समाज द्वारा गायत्री मंत्र के गलत अर्थ को प्रचारित किया गया, जिससे अन्य पुस्तकों में भी गलत व्याख्या प्रकाशित हो गई।
इसलिए आर्य समाज का मत है कि गायत्री मंत्र का सही अर्थ वेदों के अनुसार होना चाहिए, न कि स्वामी दयानंद या अन्य अज्ञानी व्यक्तियों द्वारा दिया गया अर्थ।
FaQs
गायत्री मंत्र का जाप करने के लिए कौन से लोग पात्र हैं?
गायत्री मंत्र का जाप वही लोग कर सकते हैं जो इसकी दीक्षा लिए हुए हैं।
गायत्री मंत्र का जाप करने से पहले क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
साफ और सूती वस्त्र पहनकर, कुश या चटाई के आसन पर बैठकर, और धीरे-धीरे एवं सावधानीपूर्वक मंत्र का जाप करना चाहिए। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर और हाथी पर विराजमान गायत्री मां का ध्यान करते हुए, श्री का संपुट लगाकर मंत्र का जाप करना उचित है।