Batuk Bhairav Stotra | श्री बटुक भैरव स्तोत्र

श्री बटुक भैरव स्तोत्र | Batuk Bhairav Stotra in Hindi

बटुक भैरव स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra) भगवान बटुक भैरव को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है, जो भगवान शिव का उग्र स्वरूप है। यह स्तोत्र बटुक भैरव के आशीर्वाद प्राप्त करने और सुरक्षा, शत्रुओं के विनाश, और बुरी शक्तियों के नाश से जुड़े देवता के रूप में जाना जाता है। बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ भाग्यशाली और संतुष्ट जीवन के लिए किया जाता है। इसके माध्यम से बटुक भैरव की कृपा प्राप्त की जा सकती है और जीवन में आने वाली बाधाओं और भय को दूर किया जा सकता है।

बटुक भैरव का चित्रण एक युवा लड़के के रूप में किया जाता है, जिनका रंग सांवला होता है और जो बाघ की खाल पहनते हैं। उन्हें आमतौर पर हर्षित और चंचल आचरण में चित्रित किया जाता है, लेकिन उनकी अद्भुत शक्ति होती है। भक्त उन्हें साहस, शक्ति, और बुरी शक्तियों से सुरक्षा पाने के लिए पूजते हैं।

बटुक भैरव स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra), संस्कृत में रचा गया है, जो भगवान बटुक भैरव की विशेषताओं और शक्तियों की प्रशंसा करता है। इसे भक्ति और श्रद्धा से पढ़ने से माना जाता है कि भक्तों को आध्यात्मिक और धार्मिक विकास में मदद मिल सकती है।

श्री बटुक भैरव स्तोत्र | Batuk Bhairav Stotra

ध्यान

वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।।

दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।।

मानस-पूजन

उक्त प्रकार ‘ध्यान’ करने के बाद,श्रीबटुक-भैरव का मानसिक पूजन करे-
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।

ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः।

ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।

मूल-स्तोत्र

ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।१

श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।२

कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।३

शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः।।४

धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्।।५

कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।।६

त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग-वर-धारकः।।७

भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः।।८

प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः।।९

अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः ।।१०

कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा ।।११

शुद्द-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालोबाल-पराक्रम ।।१२

सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः।
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी ।।१३

जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि ।।१४

।।फल-श्रुति।।

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम् ।।१५

य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा ।।१६

न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः ।।१७

मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये ।।१८

बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्।।१९

।।क्षमा-प्रार्थना।।

आवाहनङ न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।।

मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे।।

इति बटुक भैरव स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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किन लोगों की बटुक भैरव स्तोत्र का जप करना चाहिए ?

बटुक भैरव स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra) का जप वह लोग कर सकते हैं जो व्यापार में बाधाओं का सामना कर रहे हों, जिनके खिलाफ शत्रुता हो, अदालती मामलों का सामना कर रहे हों, या फिर जीवन में अन्य किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हों।

बटुक भैरव की पूजा और आराधना को बहुत विशेष माना जाता है, जो विभिन्न प्रकार की बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकती है। इससे न केवल समस्याओं का समाधान होता है, बल्कि जीवन में सुख-शांति और सफलता की प्राप्ति भी होती है। भैरव अष्टमी या शनिवार के दिन श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से विशेष परिणाम मिलते हैं और सभी कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न होते हैं।

बटुक भैरव स्तोत्र के लाभ

बटुक भैरव स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra) के पाठ से आपके सभी कार्य सफल और सार्थक होंगे, और आपको अपने व्यवसाय में समृद्धि मिलेगी। इस स्तोत्र का अद्भुत प्रभाव है, जो व्यक्ति को जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करने में मदद करता है। इसके अलावा, बाधाएँ दूर होंगी, शत्रु पर विजय प्राप्त होगी, और अदालत के चक्करों से छुटकारा मिलेगा। इस स्तोत्र से व्यक्ति अपने सांसारिक बाधाओं को दूर कर सांसारिक लाभ उठा सकता है।

बटुक भैरव स्तोत्र की विधि

बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ बुधवार, वीरवार, और रविवार में किसी भी दिन किया जा सकता है। बटुक भैरव जी की पूजा को दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके की जाती है और यह रात्रि में ही की जाती है। साधक को आसान पर बैठकर बटुक भैरव जी का ध्यान करते हुए सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए और फिर बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ शुरू करना चाहिए।

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बटुक भैरव स्तोत्र PDF

FaQs

बटुक भैरव स्तोत्र किसके लिए है?

व्यापारिक बाधाओं, शत्रुता, अदालती मामलों, और अन्य समस्याओं से जूझ रहे लोग।

बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कैसे किया जाता है?

बुधवार, वीरवार, और रविवार को किसी भी दिन, रात्रि में, दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके, सरसों के तेल के दीपक के साथ पाठ किया जाता है।

बटुक भैरव स्तोत्र का क्या महत्व है?

इस स्तोत्र का पाठ भगवान बटुक भैरव के आशीर्वाद प्राप्त करने, सुरक्षा, शत्रुओं के विनाश, और बुरी शक्तियों के नाश से जुड़े देवता के रूप में जाना जाता है।

बटुक भैरव का चित्रण कैसा है?

बटुक भैरव का चित्रण एक युवा लड़के के रूप में किया जाता है, जिनकी खाल सांवली होती है और जो बाघ की खाल पहनते हैं।

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