संघ की प्रार्थना के पांच गुण

किसी भी प्रार्थना व वन्दना के प्रत्येक शब्द उनके अर्थ , भावार्थ ,उच्चारण का योग्य ज्ञान जब तक सम्बन्धित व्यक्ति को नहीं होगा।
तब तक प्रार्थना व वन्दना का सही भाव उसमें नहीं जागेगा। एक एक शब्द व उनमें निहित भावार्थ का ज्ञान योग्य प्रकार से कराना तथा शब्दों का लेखन शुद्ध कराना ।हलन्त , विसर्ग , अनुस्वार की जानकारी के अनुसार उच्चारण का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।

प्रार्थना में 3 श्लोक तथा ‘भारत माता की जय ‘ ,मिलकर 13 पंक्तिया हैं।
दोहराते समय पंक्तियों की संख्या 21 हैं।

#प्रथम_श्लोक :–प्रथम श्लोक को स्वयंसेवक एक वचन में बोलता है , वह इस श्लोक में कुछ मांगता नहीं अपितु मातृभूमि के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है।मातृभूमि को सर्वोच्च स्थान पर रखते हुए इस मातृभूमि की विशेषताओं का स्मरण कर उसके लिए स्वयं को समर्पित करने का संकल्प लेता है।इस श्लोक के माध्यम से वह मातृभूमि (राष्ट्र) के लिए “मातृभूमे , हिन्दुभूमे , महामङ्गले , पुण्यभूमे ” विशेषणों का प्रयोग करता है ।

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इन सभी के विशेष अर्थ हैं-

“वत्सले मातृभूमे” :- अर्थात् अपने पुत्र पर मातृवत स्नेह करने वाली मातृभूमि ,या पुत्र को सदैव मातृवत स्नेह देने वाली होता है। इस श्लोक में “नमस्ते सदा वत्सले ” में सदा का सम्बन्ध नमस्ते के साथ है वत्सले के साथ नहीं, और मातृभूमि का परिचय अनादि काल से ही हिन्दुभूमि के रूप में है , यह समझना चाहिए।

” पतत्वेष कायो ” :- मातृभूमि के प्रति अनन्य भक्तिभाव के कारण श्रद्धा पूर्वक समर्पण हेतु यह संकल्प है , जिसे स्वयंसेवक नित्यप्रति दोहराता है।
“मातृभूमि के प्रति मेरा सर्वस्वार्पण हो जाये ऐसी अभिलाषा स्वयंसेवक “पतत्वेष कायो” के रूप में व्यक्त करता है। समर्पण केवल एक वचन में अर्थात् स्वयं का ही होता है। कोई दूसरा बलिदान करेगा तब में करूँगा या हम सब बलिदान करेंगे ऐसा नहीं है।

#द्वितीय_श्लोक :- यह श्लोक उत्तम पुरुष बहुबचन में है। जब हम कोई वस्तु मांगते है तब अकेले के लिए नहीं माँगते है। अतः द्वितीय श्लोक के माध्यम से हम सर्वशक्तिमान ईश्वर को सामूहिक रूप से नमस्कार करते हैं।

“वयं हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता ” : – यहाँ हम अपना परिचय सामूहिक रूप से हिन्दु राष्ट्र के अभिन्न अङ्ग के रूप में करते है ( राष्ट्र से एकात्मता , जो संघ का सिद्धान्त है )

“त्वदीयाय कार्याय “:- यहाँ हम सब मिलकर ईश्वर से निवेदन करते है कि , हे प्रभु ! यह कार्य आपका ही है (संघ कार्य ,ईश्वरीय कार्य) हम सब आपका (ईश्वर का) कार्य करने में समर्थ हो सकें इसलिए आशीर्वाद के रूप में आप (ईश्वर) हम सबको विशेष पाँच गुण प्रदान करने की कृपा करें ऐसा इस श्लोक का भाव जानें।

“मांगे गए पाँच गुण ” —

1.अजेय शक्ति — ऐसी शक्ति जिसको विश्व में कोई जीत न सके ।

2. सुशील :— ऐसा श्रेष्ठ शील (चरित्र) माँगा है जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये।

3. श्रुतं :— ऐसा ज्ञान भी माँगा है जो सभी कठिनाईयों तथा समस्याओं में से मार्ग प्रसस्त कर दे,तथा कभी कोई विभ्रम न हो।
स्वयं स्वीकृतं कण्टकाकीर्ण मार्गम् :– स्वयं स्वीकार किया हुआ यह मार्ग सुखमय नहीं है ,अर्थात् कष्टों (चुनौतियों) से भरा यह कार्य हमने अपने मन,बुद्धि व आत्मा से स्वयं स्वीकार किया है।

#तृतीय_श्लोक :–शेष दो गुणों के लिए इस श्लोक में सर्वशक्तिमान ईश्वर से निवेदन करते है।

4. वीरव्रत :— समुत्कर्ष निःश्रेयस – इस लोक तथा ऊध्र्वलोक का उत्कर्ष (वैभव) तथा मोक्ष दोनों वीरव्रती को ही मिलते हैं। ऐसा वीरव्रत भी ईश्वर से माँगा है।(वीरव्रत =विषम परिस्थितियों में भी जो धैर्य रखते हुए अपने लक्ष्य की और अग्रसर रहे वीरव्रती कहलाता है)

समुत्कर्ष निःश्रेयस -ऐहिक एवं पारलौकिक कल्याण।
कणाद मुनि ने धर्म की व्याख्या इस प्रकार की है — यतोSभ्यूदय निःश्रेयस् सिद्धि: स धर्म:

. अक्षय ध्येयनिष्ठा — जीवन में ध्येय का स्मरण और उसके प्रति निष्ठा अक्षय बनी रहे अर्थात् जीवन की अन्तिम श्वास तक इस कार्य के प्रति मेरी भावनाएं तथा मेरा समर्पण बाधित या समाप्त न हो । ऐसे आशीर्वाद के रूप में “ध्येय निष्ठा” अन्तिम गुण माँगा है।

#विशेष शब्दों के भावार्थ

संहता कार्यशक्तिर् — कार्य की पूर्णता संघठित शक्ति के आधार पर करने हैं , अर्थात् सभी कार्य संघठन के द्वारा ही करने हैं।

विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् — अपने लक्ष्य “धर्म तथा हिन्दुत्व के रक्षण” को धर्म का रक्षण करते हुए प्राप्त करना ।

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं — यहाँ हम अपने पवित्र ध्येय का स्मरण करते हैं। परम वैभव का अर्थ है कि सभी प्रकार से हमारे राष्ट्र का उत्कर्ष हो। अपने राष्ट्र के जीवन मूल्यों तथा जीवन उद्देश्यों का सम्मान करते हुए राष्ट्र के परम वैभवशाली स्वरुप को हम प्राप्त करें।

भारत माता की जय — यह उदघोष (नारा) नहीं अपितु भारत माता की सर्वत्र जय-जयकार करने का दृढ संकल्प हम लेते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना का श्लोक के अनुसार अनुवाद
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बोली जाने वाली प्रार्थना ‘‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे….’’ संस्कृत भाषा के तीन श्लोकों एवं अन्तिम हिन्दी पंक्ति ‘‘भारत माता की जय’’ से मिलकर बनी हुई हैं। संघ की दैनिक शाखा एवं विभिन्न कार्यक्रमों में नित्य एवं अनिवार्य रूप से संघ की इस प्रार्थना को बोला व दोहराया जाता हैं। संघ की शाखा में आने वालें अनेक स्वयंसेवकों एवं समाज के अन्य लोग जो संघ में नहीं आते उनको सामान्यतः संस्कृत भाषा का उचित ज्ञान नहीं होता। जिसके फलस्वरूप लोग संघ की प्रार्थना को सुनकर कई बार गलत अर्थ निकाल लेते हैं। वास्तव में संघ की प्रार्थना का भावार्थ बहुत ही उत्तम हैं। अतः प्रयास पूर्वक हम सभी को संघ की प्रार्थना का अर्थ समझना चाहिए ताकि हम अन्य लोगों एवं स्वयंसेवकों को इसके बारे में जानकारी दें सके। प्रार्थना का सही अर्थ समझ कर प्रार्थना बोलने से हमारे मन में भी वेसे ही भावों का निर्माण होगा। जिससे हम उचित प्रकार से अपने दायित्वों की पूर्ति कर सकेगें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साहित्यों से लिया गया अर्थ आपके लिए प्रस्तुत हैं। आशा हैं यह अनुवाद आपके लिए उपयोगी होगा।

श्लोक – 1
नमस्ते सदा वत्सले…..
अर्थ: हे वत्सल मातृभूमि! मैं तुझे सदैव प्रणाम करता हूँ। हे हिन्दुभूमि! तूने मुझे सुख से बढ़ाया है। हे महामङ्गलमय पुण्यभूमि! तेरे कार्य में मेरी यह काया अर्पण हो। तुझे मैं अनन्त बार प्रणाम करता हूँ।

श्लोक – 2
प्रभो शक्तमन्…..
अर्थ: हे सर्वशक्तिमान् परमेश्वर! हम हिन्दुराष्ट्र के अङ्गभूत घटक, तुझे आदर पूर्वक प्रणाम करते हैं। तेरे ही कार्य के लिए, हम कटिबद्ध हैं। उसकी पूर्ति के लिए, हमें शुभाशीर्वाद दे। विश्व हो अजेय ऐसी शक्ति, सारा जगत् आदर से विनम्र हो ऐसा विशुद्ध शील, तथा हमारे द्वारा बुद्धि पूर्वक स्वीकृत कण्टकमय मार्ग को सुगम करे, ऐसा ज्ञान भी हमें देवें।

श्लोक – 3
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं….
अर्थ: अभ्युदय सहित निःश्रेयस की प्राप्ति का वीरव्रत नामक जो एकमेव श्रेष्ठ उग्र साधन है, उसका हम लोगों के अन्तःकरण में स्फुरण हो। हमारे हृदय में अक्षय तथा तीव्र ध्येयनिष्ठा सदैव जाग्रत रहे। तेरे आशीर्वाद से हमारी विजयशालिनी संगठित कार्य शक्ति स्वधर्म का रक्षण कर अपने इस राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति पर ले जाने में अतीव समर्थ हो।


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