पवित्रता के लिए पञ्च कर्म: आत्मा और शरीर की शुद्धि

पवित्रता का महत्व हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें आत्मा और शरीर के शुद्धता की ओर ले जाता है और हमें दिव्यता के साथ जीने की क्षमता प्रदान करता है। पवित्रता के इस महत्वपूर्ण विषय पर अध्ययन करते हुए, हमें ब्रह्मसन्ध्या के पञ्च कर्म का अध्ययन करना चाहिए। यहां हम इन पञ्च कर्मों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे जो हमें शुद्धता और आत्मिक समृद्धि की ओर ले जाते हैं।

पवित्रीकरण के पञ्च कर्म

1. पवित्रीकरण

यह कार्य हमें शरीर और मन की पवित्रता के लिए किया जाता है। इसमें हमें निम्नलिखित कार्य करने होते हैं:

  • बाएं हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लें एवं मन्त्रोच्चारण के साथ जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें।
  • पवित्रता की भावना करें।

पवित्रीकरण मंत्र

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

पवित्रीकरण मंत्र का अर्थ इस प्रकार है :

जो कोई भी अपवित्र हो या पवित्र हो, सभी अवस्थाओं से गति पाया हुआ हो।
जो कोई भी पुण्डरीकाक्ष (भगवान विष्णु) को ध्यान में रखता है, वह बाहरी और अंतरिक्ष में शुद्ध होता है।

2. आचमन

इस कार्य में हमें वाणी, मन और अंतःकरण की शुद्धि के लिए जल का आचमन करना होता है। हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाता है।

आचमन मंत्र

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ॥ १॥
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ॥ २॥
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ॥ ३॥

3. शिखा स्पर्श और वंदन

इस कार्य में हमें गायत्री के प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार को स्थापित रखने के लिए शिखा को स्पर्श करना होता है। उसके साथ निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण किया जाता है:

शिखा वंदन मंत्र

ॐ चिद्रूपिणी महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरूष्व मे ॥

4. प्राणायाम

इस कार्य में हमें श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना और बाहर निकालना होता है। प्राणायाम के दौरान हमें श्रेष्ठ भावनाओं के साथ श्वास को अंदर और बाहर लाना चाहिए।

प्राणायाम मंत्र

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्मभूर्भुवः स्वः ॐ ।।

5. न्यास

इस कार्य में हमें शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश करना होता है। बायें हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श किया जाता है।

न्यास मंत्र

ॐ वाङ्मे आस्येऽस्तु ।। (मुख को)
ॐ नसोर्मेप्राणोऽस्तु ।। ( नासिका के दोनों छिद्रों को )
ॐ अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्तु ।। (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ।। (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु ।। (दोनों बाहों को)
ॐ ऊर्वोर्मेओजोऽस्तु ।। (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानिमेऽअङ्गानि तनूस्तान्वा में सह सन्तु ।। (समस्त शरीर को)

इन पञ्च कर्मों को सही तरीके से करके हम अपने शरीर और मन को पवित्र बना सकते हैं और आत्मा की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। ये कर्म हमें स्वयं को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध करने में सहायक होते हैं। इसलिए, इन पञ्च कर्मों को नियमित रूप से अपनाकर हम अपने जीवन को एक नई दिशा में ले जा सकते हैं।


Leave a Comment

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
100% Free SEO Tools - Tool Kits PRO
error: Content is protected !!