पंच तत्वों के बीज मंत्र | Panchtatva Beej Mantra

ॐ श्री गुरुवे नमः

हर रोग का मुख्य कारण पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, तेज, वायु, और आकाश) की असंतुलन स्थिति है। मंत्रों की शक्ति द्वारा इन तत्त्वों की विकृतियों को दूर कर रोगों का उपचार किया जा सकता है। डॉ. हर्बट बेन्सन ने वर्षों के शोध के बाद कहा, “Om a day keeps doctors away”, जिसका तात्पर्य है कि के नियमित जप से हम शरीर और मन को स्वस्थ रख सकते हैं।

बीजमंत्रों की जानकारी से हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर का लाभ उठाकर शारीरिक और मानसिक संतुलन प्राप्त कर सकते हैं। आइए, जानते हैं पंचतत्त्वों के बारे में:

पंच तत्वों के बीज मंत्र Panchtatva Beej Mantra

पंच तत्वों के बीज मंत्र

1. पृथ्वी तत्व

स्थान: मूलाधार चक्र
रोग: पीलिया, कमलवायु (पेट संबंधी रोग), भय आदि मानसिक विकार।
बीज मंत्र: “लाम”
विधि: पृथ्वी तत्व के विकारों को शांत करने के लिए ‘ल’ बीजमंत्र का उच्चारण करें और पीले रंग की चौकोर वस्तु का ध्यान करें।
लाभ: थकान मिटती है, शरीर में हल्कापन आता है, पीलिया, भय, शोक, चिंता जैसे विकार दूर होते हैं।

2. जल तत्व

स्थान: स्वाधिष्ठान चक्र
रोग: असहनशीलता, मोह आदि मानसिक विकार।
बीज मंत्र: “वम”
विधि: ‘व’ बीजमंत्र का उच्चारण करते हुए जल तत्त्व का ध्यान करें। इससे भूख-प्यास नियंत्रित होती है और सहनशक्ति बढ़ती है।
लाभ: जल में डूबने का भय समाप्त होता है, पाचन शक्ति सुधरती है, और पेट के रोगों में राहत मिलती है।

3. अग्नि तत्व

स्थान: मणिपुर चक्
बीज मंत्र: “इदं अग्नये इदं न मम”
रोग: मंदाग्नि (कमजोर पाचन), अजीर्ण, सूजन, क्रोध आदि।
विधि: ‘३’ बीजमंत्र का उच्चारण करते हुए लाल त्रिकोणाकार अग्नि का ध्यान करें।
लाभ: पाचन शक्ति तेज होती है, भूख खुलकर लगती है, और क्रोध का नाश होता है। कुण्डलिनी जागरण में भी सहायता मिलती है।

4. वायु तत्व

स्थान: अनाहत चक्र
रोग: वात, दमा, फेफड़ों के रोग।
बीज मंत्र: “यम”
विधि: ‘घ’ बीजमंत्र का उच्चारण करते हुए हरे रंग की गोलाकार वस्तु का ध्यान करें।
लाभ: वात और दमा जैसे रोगों का नाश होता है, और दीर्घकालीन अभ्यास से आकाशगमन की सिद्धि प्राप्त होती है।

5. आकाश तत्व

स्थान: विशुद्ध चक्र
रोग: बहरापन और अन्य कान संबंधी रोग।
बीज मंत्र: “हं”
विधि: ‘हं’ बीजमंत्र का उच्चारण करते हुए नीले रंग के आकाश का ध्यान करें।
लाभ: कान के रोगों में लाभ होता है, दीर्घकालीन अभ्यास से तीनों कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) का ज्ञान प्राप्त होता है, और अणिमा सहित अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

पंचतत्व या पंचभूत : हमारा शरीर किन पांच तत्वों से मिलकर बना है?

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