जानिए वह रोचक पौराणिक कथा जब भगवान गणेश ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी को भी ज्ञान दिया। इस कथा में गणेश जी की बुद्धिमत्ता और दिव्य महिमा का अद्भुत वर्णन मिलता है।
जब गणेशजी ने ब्रह्मा को भी दिया ज्ञान – भगवान गणेश और ब्रह्मा की सृष्टि कथा
श्री गणेश अथर्वशीर्ष में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि भगवान गणेश ही स्वयं परब्रह्म, परमात्मा और समस्त जगत के अधिष्ठाता हैं। सृष्टि की रचना का कार्य भी गणपति बाप्पा ने ही ब्रह्मदेव को सौंपा था।
किंतु जब ब्रह्मा जी को यह दायित्व मिला, तो वे उलझन में पड़ गए। उन्होंने विनम्रता से गणेश जी से कहा – “प्रभु! आपने मुझे सृजन करने को कहा है, लेकिन क्या सृजन करूँ? मेरे पास कोई आदर्श, कोई स्वरूप नहीं है जिस पर मैं रचना आधारित कर सकूँ।”
गणेश जी मुस्कुराए और बोले – “मैं तुम्हें दिखाता हूँ।”
इतना कहते ही ब्रह्मा ने देखा कि गणेश जी के विशाल उदर के भीतर पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है – देवता, असुर, ऋषि, मनुष्य, पर्वत, नदियाँ, समुद्र, वृक्ष, पशु-पक्षी, तारे, सूर्य और चंद्रमा। यह दृश्य देखकर ब्रह्मा चकित रह गए। गणेश जी ने संकेत किया – “यही वह जगत है जिसे तुम्हें रचना है।”
ब्रह्मा और भयंकर प्राणी
ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना प्रारंभ की, किंतु तभी अनेकों विकृत, भयंकर प्राणी प्रकट हो गए। किसी की तीन आँखें थीं, किसी के पाँच हाथ, किसी के दस पैर। वे सब ब्रह्मा पर आक्रमण करने लगे – कोई मारने लगा, कोई दाढ़ी खींचने लगा, तो कोई उन्हें गालियाँ देने लगा। भयभीत होकर ब्रह्मा ने गणेश जी से प्रार्थना की।
तभी आकाशवाणी हुई – “तपस्या करो, तपस्या करो।”
ब्रह्मा उलझन में पड़ गए क्योंकि उन्हें ‘तप’ का अर्थ तक नहीं मालूम था। आवाज़ फिर आई – “अश्वत्थ वृक्ष की तलाश करो।”
पीपल के पत्ते पर बालक गणेश
चारों ओर फैले जल में ब्रह्मा को एक अश्वत्थ वृक्ष दिखाई दिया। उसके एक पत्ते पर एक दिव्य बालक शयन कर रहा था। उस बालक का मुख हाथी का था, चार भुजाएँ थीं और देह तेजस्वी रत्नाभूषणों से अलंकृत थी। वह बालक अपनी सूंड से जल छिड़कते हुए ब्रह्मा की गोद में आ बैठा और बोला –
“तुम्हारा व्यवहार बिल्कुल बच्चों जैसा है। बिना तैयारी के इतनी विशाल सृष्टि रचने निकल पड़े। न तप का ज्ञान है, न एकाग्रता, और सोचते हो कि तुम महान हो! आओ, पहले मैं तुम्हें तप का मार्ग दिखाता हूँ।”
एकाक्षर मंत्र की दीक्षा
भगवान गणेश ने ब्रह्मा जी को अपना एकाक्षर मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” दिया और कहा – “इस मंत्र का जप करो, पुरश्चरण करो। जप, होम, तर्पण और अभिषेक – यही सच्चा तप है। जब तुम इसे पूरा करोगे, मैं पुनः प्रकट होकर तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।”
ब्रह्मा ने मंत्रजप आरंभ किया। उनके मुख से ज्वालाएँ निकलने लगीं, जिन्होंने सभी भयंकर प्राणियों को भस्म कर दिया।
गणेश जी का वरदान
तपस्या पूर्ण होने पर गणेश जी प्रकट हुए और बोले – “वरण करो।”
ब्रह्मा ने तीन वरदान माँगे –
- मुझे सदैव आप पर अविचल विश्वास रहे।
- मैं आपके आदेश को पूर्ण करने में सक्षम रहूँ।
- भविष्य में कोई भी बाधा आपके स्मरण मात्र से दूर हो जाए।
गणेश जी ने प्रसन्न होकर तीनों वरदान दिए।
इसी आशीर्वाद से ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना सफलतापूर्वक आरंभ की। यही कारण है कि हर कार्य की शुरुआत में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। बिना विघ्नहर्ता के आशीर्वाद के सृष्टि का चक्र भी रुक सकता है।