संघ प्रार्थना – नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे (अर्थ सहित)

“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रार्थना है, जो प्रत्येक शाखा और संघ के विभिन्न कार्यक्रमों में अनिवार्य रूप से गाई जाती है। यह प्रार्थना मातृभूमि के प्रति असीम भक्ति और राष्ट्र सेवा के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। इसकी रचना और गायन के पीछे एक गहरी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता है, जो इसे आरएसएस के विचार और दर्शन का अभिन्न अंग बनाती है।

संघ प्रार्थना का इतिहास

संघ प्रार्थना की रचना का प्रारंभिक रूप फरवरी 1939 में नागपुर के पास सिन्दी में हुई एक बैठक में तय किया गया। इस बैठक में संघ के प्रमुख नेतृत्व—डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, श्री गुरुजी, बाबा साहब आपटे, बालासाहब देवरस, अप्पाजी जोशी, और नाना साहब टालाटुले—ने भाग लिया। प्रारंभिक प्रार्थना आधी मराठी और आधी हिन्दी में थी। परंतु, पूरे देश में एकरूपता बनाए रखने और सर्वसम्मानित भाषा के रूप में संस्कृत का चयन किया गया, और अंत में केवल ‘भारत माता की जय’ को हिन्दी में रखा गया।

पुणे के नरहरि नारायण भिड़े ने प्रार्थना का संस्कृत में अनुवाद किया। 23 अप्रैल 1940 को पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में यादव राव जोशी ने इसे पहली बार प्रस्तुत किया और सुर प्रदान किए। तब से यह प्रार्थना आरएसएस की शाखाओं में नियमित रूप से गाई जाने लगी।

प्रार्थना का महत्व

यह प्रार्थना मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का स्मरण कराने के साथ-साथ, संघ के कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीयता, अनुशासन और त्याग के मार्ग पर अग्रसर करती है। इसका पाठ एक आत्मिक और राष्ट्रवादी भावना का संचार करता है, जो संघ के कार्यकर्ताओं को मातृभूमि की सेवा के लिए प्रेरित करता है।

संघ की प्रार्थना के पांच गुण

संघ प्रार्थना का मूल पाठ

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥

संघ प्रार्थना - नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
संघ प्रार्थना – नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे Image

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्।
त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये॥

अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्।
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गम्
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥२॥

समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रम्
परं साधनं नाम वीरव्रतम्।
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम्॥

विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥३॥

॥भारत माता की जय॥

संघ प्रार्थना हिंदी अनुवाद

प्रार्थना के पहले चरण में स्वयंसेवक मातृभूमि के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करते हैं। “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” का अर्थ है—हे मातृभूमि, जो सदा हमें वत्सलता (ममता) प्रदान करती हो, मैं तुझे सदा नमन करता हूँ। हिंदू भूमि में मेरा पालन-पोषण सुखपूर्वक हुआ है, और अब यह शरीर तेरे कार्य के लिए समर्पित है।

प्रार्थना के दूसरे चरण में प्रभु से शक्ति, सदाचार और ज्ञान की याचना की जाती है, ताकि कठिनाइयों और विपत्तियों से भरे मार्ग को आसानी से पार किया जा सके। यहाँ यह स्पष्ट होता है कि संघ के स्वयंसेवक केवल अपने व्यक्तिगत जीवन के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज के उत्थान के लिए कार्यरत हैं।

तीसरे चरण में वीरव्रती जीवन का उल्लेख है, जिसमें उच्चतम आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि को प्राप्त करने का लक्ष्य होता है। ध्येय के प्रति अडिग निष्ठा के साथ कार्य करने की प्रेरणा दी जाती है।

अंतिम चरण में राष्ट्र की प्रगति और धर्म के संरक्षण का संकल्प व्यक्त किया जाता है, जिसमें मातृभूमि को उसकी उच्चतम वैभव प्राप्ति के लिए सामर्थ्य प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है।

आरएसएस की शाखाओं में प्रार्थना का महत्व

प्रत्येक संघ शाखा या कार्यक्रम में प्रार्थना का गायन अनिवार्य होता है। यह न केवल अनुशासन और एकता का प्रतीक है, बल्कि यह सभी स्वयंसेवकों को एक राष्ट्रीय मिशन की भावना से जोड़ता है। ध्वज के सामने खड़े होकर इस प्रार्थना को गाने से एक गहरी आध्यात्मिक और राष्ट्रीय चेतना जागृत होती है, जो संघ के हर सदस्य को मातृभूमि की सेवा के प्रति प्रेरित करती है।

राष्ट्र सेविका समिति और अन्य प्रार्थनाएँ

आरएसएस की महिला शाखा, राष्ट्र सेविका समिति, और विदेशों में स्थित हिंदू स्वयंसेवक संघ की प्रार्थनाएँ अलग होती हैं, परंतु उनका भाव और उद्देश्य वही रहता है—राष्ट्र और समाज की सेवा। इन प्रार्थनाओं में भी मातृभूमि के प्रति समर्पण और त्याग की भावना को सर्वोपरि रखा जाता है।

निष्कर्ष

“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” केवल एक प्रार्थना नहीं है, यह संघ के सिद्धांतों, राष्ट्रभक्ति और मातृभूमि के प्रति अपार श्रद्धा का प्रतीक है। संघ के हर स्वयंसेवक के लिए यह प्रार्थना प्रेरणा का स्रोत है, जो उन्हें मातृभूमि की सेवा और देश के उत्थान के मार्ग पर दृढ़ता से चलने के लिए प्रेरित करती है।

FaQs

संघ की प्रार्थना में कितने श्लोक हैं ?

संघ की प्रार्थना “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” में कुल तीन श्लोक (कड़ी) हैं। हर श्लोक में मातृभूमि के प्रति समर्पण, धर्म, राष्ट्र और समाज की सेवा के लिए शक्ति और आशीर्वाद की प्रार्थना की गई है।

संघ की प्रार्थना किसने लिखी ?

संघ की प्रार्थना “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” का संस्कृत में रूपांतरण नरहरि नारायण भिड़े द्वारा किया गया था। प्रार्थना का प्रारंभिक स्वरूप 1939 में नागपुर के पास सिन्दी में हुई एक बैठक में तैयार किया गया था, जिसमें डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और संघ के अन्य प्रमुख सदस्य उपस्थित थे।

संघ की प्रार्थना किसके लिए है ?

संघ की प्रार्थना “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों के लिए है। यह प्रार्थना मातृभूमि के प्रति समर्पण, राष्ट्र की सेवा, और हिंदू समाज के उत्थान के लिए शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम है।

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