शिव पुराण भाग 3 : देवताओं का हिमालय के पास जाना

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🌸शिव पुराण भाग 3रुद्र संहिता तृतीय खण्ड (पार्वती खण्ड)देवताओं का हिमालय के पास जाना

अध्याय का सारांश:

देवताओं का हिमालय के पास जाना

  • देवता हिमगिरि के पास जाते हैं …
  • देवता बताते हैं कि उमा (सती) का पुनर्जन्म उनके लिए लाभकारी होगा।
  • देवता उमा को प्रसन्न करने की विधि बताते हैं।

नारदजी बोले— “महामते! आपने मेना के पूर्वजन्म की यह शुभ और अद्भुत कथा सुनाई है। उनके विवाह का प्रसंग भी मैंने सुन लिया। अब आगे के उत्तम चरित्र का वर्णन कीजिये।”

ब्रह्माजी ने कहा— “नारद! जब मेना के साथ विवाह करके हिमवान् अपने घर गए, तब तीनों लोकों में बड़ा भारी उत्सव मनाया गया। हिमालय भी अत्यन्त प्रसन्न होकर मेना के साथ अपने सुखदायक सदन में निवास करने लगे। मुने! उस समय श्रीविष्णु आदि समस्त देवता और महात्मा मुनि गिरिराज के पास गए। उन सब देवताओं को आया देखकर महान् हिमगिरि ने प्रशंसापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और अपने भाग्य की सराहना करते हुए भक्तिभाव से उनका आदर-सत्कार किया। हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर वे बड़े प्रेम से स्तुति करने को उद्यत हुए। शैलराज के शरीर में महान् रोमांच हो आया। उनके नेत्रों से प्रेम के आँसू बहने लगे। मुने! हिमशैल ने प्रसन्न मन से अत्यन्त प्रेमपूर्वक प्रणाम किया और विनीतभाव से खड़े होकर श्रीविष्णु आदि देवताओं से कहा:

“आज मेरा जन्म सफल हो गया, मेरी बड़ी भारी तपस्या सफल हुई। आज मेरा ज्ञान सफल हुआ और मेरी सारी क्रियाएँ सफल हो गईं। आज मैं धन्य हुआ। मेरी सारी भूमि धन्य हुई, मेरा कुल धन्य हुआ। मेरी स्त्री तथा मेरा सब कुछ धन्य हो गया, इसमें संशय नहीं है; क्योंकि आप सब महान् देवता एक साथ मिलकर एक ही समय यहाँ पधारे हैं। मुझे अपना सेवक समझकर प्रसन्नता पूर्वक उचित कार्य के लिए आज्ञा दें।”

हिमाचल की यह बात सुनकर वे सभी देवता बड़े प्रसन्न हुए और अपने कार्य की सिद्धि मनाते हुए बोले— “महाप्राज्ञ हिमाचल! हमारा हितकारक वचन सुनो। हम सब लोग जिस काम के लिए यहाँ आए हैं, उसे प्रसन्नतापूर्वक बता रहे हैं। गिरिराज! पहले जो जगदम्बा उमा दक्षकन्या सती के रूप में प्रकट हुई थीं और रुद्रपली होकर सुदीर्घकाल तक इस भूतल पर क्रीड़ा करती रहीं, वे ही अम्बिका सती अपने पितासे अनादर पाकर अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण करके यज्ञ में शरीर त्यागकर अपने परम धाम को पधार गईं। हिमगिरे! वह कथा लोक में विख्यात है और तुम्हें भी विदित है। यदि वे सती पुनः तुम्हारे घर में प्रकट हो जाएं, तो देवताओं का महान् लाभ हो सकता है।”

ब्रह्माजी कहते हैं— “श्रीविष्णु आदि देवताओं की यह बात सुनकर गिरिराज हिमालय मन-ही-मन प्रसन्न हो आदर से झुक गए और बोले— ‘प्रभो! ऐसा हो तो बड़े सौभाग्य की बात है।'”

तदनन्तर वे देवता उन्हें बड़े आदर से उमा को प्रसन्न करने की विधि बताकर स्वयं सदाशिव-पलि उमा की शरण में गए। एक सुन्दर स्थान में स्थित होकर समस्त देवताओं ने जगदम्बा का स्मरण किया और बारंबार प्रणाम करके वहाँ श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे।

शिव पुराण भाग 3- देवताओं का हिमालय के पास जाना

देवता बोले— “शिवलोक में निवास करनेवाली देवी! उमा! जगदम्बे! सदाशिव-प्रिये! दुर्गे! महेश्वरि! हम आपको नमस्कार करते हैं। आप पावन शान्तस्वरूप श्रीशक्ति हैं, परमपावन पुष्टि हैं। अव्यक्त प्रकृति और महत्तत्त्व—ये आपके ही रूप हैं। हम भक्तिपूर्वक आपको नमस्कार करते हैं। आप कल्याणमयी शिवा हैं। आपके हाथ भी कल्याणकारी हैं। आप शुद्ध, स्थूल, सूक्ष्म और सबका परम आश्रय हैं। अन्तर्विद्या और सुविद्यासे अत्यन्त प्रसन्न रहनेवाली आप देवी को हम प्रणाम करते हैं। आप श्रद्धा हैं। आप धृति हैं। आप श्री हैं और आप ही सबमें व्याप्त रहनेवाली देवी हैं। आप ही सूर्य की किरणें हैं और आप ही अपने प्रपंच को प्रकाशित करनेवाली हैं।

ब्रह्माण्ड रूप शरीर में और जगत के जीवों में रहकर जो ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यन्त सम्पूर्ण जगत की पुष्टि करती हैं, उन आदिदेवी को हम नमस्कार करते हैं। आप ही वेद माता गायत्री हैं, आप ही सावित्री और सरस्वती हैं। आप ही सम्पूर्ण जगत के लिए वार्ता नामक वृत्ति हैं और आप ही धर्मस्वरूपिणी वेदत्रयी हैं। आप ही सम्पूर्ण भूतों में निद्रा बनकर रहती हैं। उनकी क्षुधा और तृप्ति भी आप ही हैं। आप ही तृष्णा, कान्ति, छबि, तुष्टि और सदा सम्पूर्ण आनन्द को देनेवाली हैं। आप ही पुण्यकर्ताओं के यहाँ लक्ष्मी बनकर रहती हैं और आप ही पापियों के घर सदा ज्येष्ठा (लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रता) के रूप में वास करती हैं। आप ही सम्पूर्ण जगत की शान्ति हैं। आप ही धारण करने वाली धात्री एवं प्राणों का पोषण करनेवाली शक्ति हैं। आप ही पाँचों भूतों के सारतत्त्व को प्रकट करनेवाली तत्त्वस्वरूपा हैं। आप ही नीतिज्ञों की नीति तथा व्यवसायरूपिणी हैं। आप ही सामवेद की गीति हैं। आप ही ग्रन्थि हैं। आप ही यजुर्मन्त्रों की आहुति हैं। वेद की मात्रा तथा अथर्ववेद की परम गति भी आप ही हैं। जो प्राणियों के नाक, कान, नेत्र, मुख, भुजा, वक्षःस्थल और हृदय में धृतिरूप से स्थित हो सदा ही उनके लिए सुख का विस्तार करती हैं। जो निद्रा के रूप में संसार के लोगों को अत्यन्त सुभग प्रतीत होती हैं, वे देवी उमा जगत की स्थिति एवं पालन के लिए हम सब पर प्रसन्न हों।”

इस प्रकार जगज्जननी सती-साध्वी महेश्वरी उमा की स्तुति करके अपने हृदय में विशुद्ध प्रेम लिए वे सब देवता उनके दर्शन की इच्छासे वहाँ खड़े हो गए।

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