अध्याय संख्या | खंड का नाम | विषय |
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🌸 अध्याय 2 (शिव पुराण) | रुद्र संहिता तृतीय खण्ड (पार्वती खण्ड) | मेना की उत्पत्ति |
अध्याय का सारांश:
मेना की उत्पत्ति
- दक्ष की कन्याओं में स्वधा की तीन पुत्रियाँ थीं: मैना, धन्या, और …
- सनत्कुमार ने उन्हें नर-स्त्री बनने का शाप दिया…
- मेना का विवाह हिमालय से हुआ…
ॐ नमः शिवाय
नारदजी ने पूछा— “हे विधे! विद्वान! कृपया आदरपूर्वक मेरे समक्ष मेना की उत्पत्ति का वर्णन करें। उसे किस प्रकार शाप प्राप्त हुआ था, और मेरे इस संदेह का निवारण करें।”
ब्रह्माजी बोले— “हे मुने! मैंने अपने दक्ष नामक पुत्र की पहले चर्चा की थी। उनकी साठ कन्याएँ थीं, जो सृष्टि की उत्पत्ति में सहायक बनीं। नारद, दक्ष ने कश्यप आदि श्रेष्ठ मुनियों से उन कन्याओं का विवाह कर दिया था। यह सब वृत्तांत तो आपको ज्ञात है। अब प्रस्तुत विषय पर सुनें।
उन कन्याओं में से एक कन्या का नाम ‘स्वधा’ था, जिसका विवाह पितरों के साथ हुआ। स्वधा की तीन पुत्रियाँ थीं, जो सौभाग्यशालिनी और धर्म की मूर्ति थीं। उनमें से ज्येष्ठ पुत्री का नाम ‘मैना’ था, मंझली ‘धन्या’ के नाम से प्रसिद्ध थी, और सबसे छोटी कन्या का नाम ‘कलावती’ था। ये सभी कन्याएँ पितरों की मानसी पुत्रियाँ थीं, अर्थात उनके मन से उत्पन्न हुई थीं। इनका जन्म किसी मातृगर्भ से नहीं हुआ था, अतः ये अयोनिजा थीं, केवल लोक व्यवहार में इन्हें स्वधा की पुत्री माना जाता था।
इनके सुंदर नामों का कीर्तन करने से मनुष्य सम्पूर्ण इच्छाओं की प्राप्ति कर सकता है। ये सदा सम्पूर्ण जगत की वंदनीय लोकमाताएँ हैं और उत्तम गुणों से विभूषित रहती हैं। ये सभी परम योगिनी, ज्ञान की निधि और तीनों लोकों में सर्वत्र विचरण करने वाली हैं।
हे मुनिश्रेष्ठ! एक समय वे तीनों बहनें भगवान विष्णु के निवास स्थान श्वेतद्वीप में उनका दर्शन करने गईं। भगवान विष्णु को प्रणाम करके, उनकी स्तुति करने के बाद, वे वहीं उनकी आज्ञा से ठहर गईं। उस समय वहाँ संतों का बड़ा समाज एकत्र हुआ था।
मुने! उसी समय मेरे पुत्र सनकादि सिद्धगण भी वहाँ आए और भगवान विष्णु की स्तुति करके वहाँ ठहर गए। सनकादि मुनि देवताओं के आदिपुरुष हैं और सम्पूर्ण लोकों में पूज्य हैं। जब वे वहाँ पहुँचे, तो सभी ने उठकर उन्हें प्रणाम किया, परंतु इन तीनों बहनों ने उन्हें देखकर भी उठने का कष्ट नहीं किया। इस पर सनत्कुमार ने उन्हें शाप दिया कि वे स्वर्ग से दूर होकर नर-स्त्री रूप में जन्म लेंगी।
उनके प्रार्थना करने पर सनत्कुमार प्रसन्न हुए और बोले— ‘हे पितरों की कन्याओ! यह शाप तुम्हारे शोक का नाश करेगा और सदा तुम्हें सुख देगा। तुम्हारी ज्येष्ठ बहन भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न हिमालय की पत्नी बनेगी और उसकी कन्या ‘पार्वती’ के नाम से प्रसिद्ध होगी। पितरों की दूसरी प्रिय कन्या, योगिनी धन्या, राजा जनक की पत्नी होगी। उसकी कन्या के रूप में महालक्ष्मी अवतरित होंगी, जिनका नाम ‘सीता’ होगा। इसी प्रकार पितरों की सबसे छोटी पुत्री कलावती द्वापर युग के अंत में वृषभानु वैश्य की पत्नी बनेगी, और उसकी प्रिय पुत्री ‘राधा’ के नाम से प्रसिद्ध होगी।
योगिनी मेना (मैना) पार्वतीजी के आशीर्वाद से अपने पति के साथ कैलाश धाम को प्राप्त होगी। धन्या और उनके पति, जनककुल में उत्पन्न महायोगी राजा सीरध्वज, अपनी पुत्री सीता के प्रभाव से वैकुंठधाम में जाएंगे। वृषभानु के साथ वैवाहिक मंगल कार्य संपन्न होने पर योगिनी कलावती भी अपनी पुत्री राधा के साथ गोलोक धाम को प्राप्त होगी। इसमें कोई संशय नहीं है।
संकट में पड़े बिना महापुरुषों की महिमा प्रकट नहीं होती। जब संकट टल जाता है, तो पुण्यात्मा को महान सुख प्राप्त होता है। अब प्रसन्न होकर मेरी दूसरी बात सुनो, जो तुम्हारे लिए सदा सुख देने वाली है।
मेना की पुत्री जगदम्बा पार्वती देवी अत्यंत कठोर तपस्या करके भगवान शिव की प्रिय पत्नी बनेंगी। धन्या की पुत्री सीता भगवान श्रीराम की पत्नी बनेंगी और उनके साथ लोकाचार का पालन करेंगी। राधा, कलावती की पुत्री, श्रीकृष्ण की प्रियतमा बनेंगी और गोलोकधाम में निवास करेंगी।’
ब्रह्माजी कहते हैं— ‘हे नारद! इस प्रकार शाप देने के बाद सनत्कुमार ने उन तीनों बहनों को दुर्लभ वरदान देकर प्रशंसा पाई और फिर अपने भाइयों के साथ अंतर्धान हो गए।’
पितरों की मानसी पुत्री वे तीनों बहनें शापमुक्त होकर सुखी हो गईं और तुरंत अपने घर लौट आईं।