शिव पुराण भाग 1: हिमालय और मेना का विवाह

हिमालय के स्थावर और जंगम स्वरूप तथा दिव्यत्व का वर्णन, मेना के साथ उनका विवाह, और मेना को पूर्वजन्म में प्राप्त हुए सनकादि के शाप और वरदान का कथन।

शिव पुराण भाग 1

अध्याय संख्याखंड का नाम विषय
🌸 अध्याय 1 (शिव पुराण)रुद्र संहिता तृतीय खण्ड (पार्वती खण्ड)हिमालय और मेना के विवाह का वर्णन

अध्याय का सारांश:

हिमालय और मेना के विवाह

  • हिमालय पर्वत के दिव्य स्वरूप का वर्णन।
  • हिमालय की धर्म वृद्धि और कुल परंपरा की स्थिति के लिए विवाह की इच्छा।
  • पितरों और देवताओं द्वारा हिमालय के लिए मेना के विवाह का प्रस्ताव।
  • मेना का विवाह हिमालय से सम्पन्न होता है, जिसमें देवताओं और ऋषियों का सहयोग रहता है।

नारदजी ने पूछा—”ब्रह्मन्! पिताजी के यज्ञ में अपने शरीर का परित्याग करके दक्षकन्या जगदम्बा सती देवी किस प्रकार गिरिराज हिमालय की पुत्री हुईं? किस तरह अत्यंत उग्र तपस्या करके उन्होंने पुनः शिव को ही पतिरूप में प्राप्त किया? यह मेरा प्रश्न है। आप इस पर भलीभाँति और विशेष रूप से प्रकाश डालिए।”

ब्रह्माजी ने कहा—”मुने! नारद! तुम पहले पार्वती की माता के जन्म, विवाह और अन्य भक्तिवर्धक पावन चरित्र सुनो। मुनिश्रेष्ठ! उत्तर दिशा में पर्वतों का राजा हिमवान् नामक महान पर्वत है, जो महातेजस्वी और समृद्धिशाली है। उसके दो रूप प्रसिद्ध हैं—एक स्थावर और दूसरा जंगम। मैं संक्षेप में उसके सूक्ष्म (स्थावर) स्वरूप का वर्णन करता हूँ।

शिव पुराण भाग 1 - हिमालय और मेना का विवाह

वह रमणीय पर्वत नाना प्रकार के रत्नों का खान है और पूर्व तथा पश्चिम समुद्र के भीतर प्रवेश करके इस तरह खड़ा है, मानो भूमंडल को नापने के लिए कोई मानदंड हो। वह नाना प्रकार के वृक्षों से व्याप्त है और अनेक शिखरों के कारण विचित्र शोभा से सम्पन्न दिखता है। सिंह, व्याघ्र आदि पशु सदा सुखपूर्वक उसका सेवन करते हैं। हिम का तो वह भंडार ही है, इसलिये अत्यंत उग्र जान पड़ता है। भांति-भांति के आश्चर्यजनक दृश्यों से उसकी विचित्र शोभा होती है। देवता, ऋषि, सिद्ध और मुनि उस पर्वत का आश्रय लेकर रहते हैं। भगवान शिव को वह बहुत प्रिय है, और तपस्या करने का स्थान है। स्वरूप से ही वह अत्यंत पवित्र और महात्माओं को भी पावन करने वाला है। तपस्या में वह अत्यंत शीघ्र सिद्धि प्रदान करता है। अनेक प्रकार के धातुओं की खान और शुभ है।

वही दिव्य शरीर धारण करके सर्वांग-सुंदर रमणीय देवता के रूप में भी स्थित है। भगवान विष्णु का अविकृत अंश है, इसलिये वह शैलराज साधु-संतों को अधिक प्रिय है।

एक समय गिरिवर हिमवान ने अपनी कुल-परंपरा की स्थिति और धर्म की वृद्धि के लिए देवताओं तथा पितरों का हित करने की अभिलाषा से अपना विवाह करने की इच्छा की। मुनीश्वर! उस अवसर पर सम्पूर्ण देवता अपने स्वार्थ का विचार करके दिव्य पितरों के पास आकर उनसे प्रसन्नतापूर्वक बोले। देवताओं ने कहा—”पितर! आप सब लोग प्रसन्नचित्त होकर हमारी बात सुनें, और यदि देवताओं का कार्य सिद्ध करना आपको भी अभीष्ट हो, तो शीघ्र वैसा ही करें। आपकी ज्येष्ठ पुत्री जो मेना नाम से प्रसिद्ध है, वह मंगलरूपिणी है। उसका विवाह आप लोग अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक हिमवान पर्वत से कर दें। ऐसा करने पर आप सब लोगों को सर्वथा महान लाभ होगा और देवताओं के दुःखों का निवारण भी पग-पग पर होता रहेगा।”

देवताओं की यह बात सुनकर पितरों ने परस्पर विचार करके स्वीकृति दे दी और अपनी पुत्री मेना को विधिपूर्वक हिमालय के हाथ में दे दिया। उस परम मंगलमय विवाह में बड़ा उत्सव मनाया गया।

मुनीश्वर नारद! मेना के साथ हिमालय के शुभ विवाह का यह सुखद प्रसंग मैंने तुमसे प्रसन्नतापूर्वक कहा है। अब और क्या सुनना चाहते हो?”

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