अन्न सूक्तम् (यजुर्वेदीय) एक प्राचीन वैदिक स्तोत्र है, जो यजुर्वेद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह स्तोत्र अन्न (भोजन) के महत्व और उसकी पवित्रता का विशद वर्णन करता है। अन्न सूक्तम् में अन्न को आमंत्रित किया जाता है ताकि वह सभी जीवों को अपना पोषण प्रदान करे।इस सूक्त के प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं:
अन्न सर्वत्र समान रूप से सभी जीवों को पोषण प्रदान करता है और इसे सभी देवताओं और पितरों द्वारा संरक्षित माना गया है। यह अन्न जीवन का आधार है और इसका महत्व हर युग में अपरिहार्य है।
इस सूक्त के अनुसार, अन्न का उद्गम ऋषि त्रिता द्वारा वृत्र नामक असुर को पराजित करने के बाद हुआ था। ऋषि त्रिता ने महान् धर्म और तेज का उपयोग कर अन्न को प्राप्त किया था, जिससे सभी जीवों को पोषण मिला।
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अन्न सूक्तम् (यजुर्वेदीय) । Anna Suktam (Yajur veda)
(तै।ब्रा।२।८।८।१)
अ॒हम॑स्मि प्रथ॒मजा ऋ॒तस्य॑ ।
पूर्वं॑ दे॒वेभ्यो॑ अ॒मृत॑स्य॒ नाभि॑: ।
यो मा॒ ददा॑ति॒ स इदे॒व माऽऽवा᳚: ।
अ॒हमन्न॒मन्न॑म॒दन्त॑मद्मि ।
पूर्व॑म॒ग्नेरपि॑ दह॒त्यन्न᳚म् ।
य॒त्तौ हा॑ऽऽसाते अहमुत्त॒रेषु॑ ।
व्यात्त॑मस्य प॒शव॑: सु॒जम्भ᳚म् ।
पश्य॑न्ति॒ धीरा॒: प्रच॑रन्ति॒ पाका᳚: ।
जहा᳚म्य॒न्यं न ज॑हाम्य॒न्यम् ।
अ॒हमन्नं॒ वश॒मिच्च॑रामि ॥ १
स॒मा॒नमर्थं॒ पर्ये॑मि भु॒ञ्जत् ।
को मामन्नं॑ मनु॒ष्यो॑ दयेत ।
परा॑के॒ अन्नं॒ निहि॑तं लो॒क ए॒तत् ।
विश्वै᳚र्दे॒वैः पि॒तृभि॑र्गु॒प्तमन्न᳚म् ।
यद॒द्यते॑ लु॒प्यते॒ यत्प॑रो॒प्यते᳚ ।
श॒त॒त॒मी सा त॒नूर्मे॑ बभूव ।
म॒हान्तौ॑ च॒रू स॑कृद्दु॒ग्धेन॑ पप्रौ ।
दिवं॑ च॒ पृश्नि॑ पृथि॒वीं च॑ सा॒कम् ।
तत्सं॒पिब॑न्तो॒ न मि॑नन्ति वे॒धस॑: ।
नैतद्भूयो॒ भव॑ति॒ नो कनी॑यः ॥ २
अन्नं॑ प्रा॒णमन्न॑मपा॒नमा॑हुः ।
अन्नं॑ मृ॒त्युं तमु॑ जी॒वातु॑माहुः ।
अन्नं॑ ब्र॒ह्माणो॑ ज॒रसं॑ वदन्ति ।
अन्न॑माहुः प्र॒जन॑नं प्र॒जाना᳚म् ।
मोघ॒मन्नं॑ विन्दते॒ अप्र॑चेताः ।
स॒त्यं ब्र॑वीमि व॒ध इत्स तस्य॑ ।
नार्य॒मणं॒ पुष्य॑ति॒ नो सखा॑यम् ।
केव॑लाघो भवति केवला॒दी ।
अ॒हं मे॒घः स्त॒नय॒न्वर्ष॑न्नस्मि ।
माम॑दन्त्य॒हम॑द्म्य॒न्यान् ॥ ३
अह॒ग्ं सद॒मृतो॑ भवामि ।
मदा॑दि॒त्या अधि॒ सर्वे॑ तपन्ति ।
इतर वेद सूक्तानि पश्यतु ।