आन्ना सूक्तम् (Anna Suktam – Rig veda) एक वैदिक स्तोत्र है जो यजुर्वेद के तैत्तिरीय संहिता में शामिल है। इसे संस्कृत में “अन्न ब्रह्म” के रूप में भी जाना जाता है। इस सूक्त में अन्न (खाना) को ब्रह्मा (सृष्टि के सृजनकर्ता) का रूप मानकर उसकी पूजा की जाती है। यह सूक्त भोजन के आध्यात्मिक महत्व और उसके दान के पुण्य को स्पष्ट करता है।
अन्न सूक्तम् (ऋग्वेदीय) | Anna Suktam (Rig veda)
(ऋ।वे।१।१८७।१)
पि॒तुं नु स्तो॑षं म॒हो ध॒र्माणं॒ तवि॑षीम् ।
यस्य॑ त्रि॒तो व्योज॑सा वृ॒त्रं विप॑र्वम॒र्दय॑त् ॥ १ ॥
स्वादो॑ पितो॒ मधो॑ पितो व॒यं त्वा॑ ववृमहे ।
अ॒स्माक॑मवि॒ता भ॑व ॥ २ ॥
उप॑ नः पित॒वा च॑र शि॒वः शि॒वाभि॑रू॒तिभि॑: ।
म॒यो॒भुर॑द्विषे॒ण्यः सखा॑ सु॒शेवो॒ अद्व॑याः ॥ ३ ॥
तव॒ त्ये पि॑तो॒ रसा॒ रजां॒स्यनु॒ विष्ठि॑ताः ।
दि॒वि वाता॑ इव श्रि॒ताः ॥ ४ ॥
तव॒ त्ये पि॑तो॒ दद॑त॒स्तव॑ स्वादिष्ठ॒ ते पि॑तो ।
प्र स्वा॒द्मानो॒ रसा॑नां तुवि॒ग्रीवा॑ इवेरते ॥ ५ ॥
त्वे पि॑तो म॒हानां॑ दे॒वानां॒ मनो॑ हि॒तम् ।
अका॑रि॒ चारु॑ के॒तुना॒ तवाहि॒मव॑सावधीत् ॥ ६ ॥
यद॒दो पि॑तो॒ अज॑गन्वि॒वस्व॒ पर्व॑तानाम् ।
अत्रा॑ चिन्नो मधो पि॒तोऽरं॑ भ॒क्षाय॑ गम्याः ॥ ७ ॥
यद॒पामोष॑धीनां परिं॒शमा॑रि॒शाम॑हे ।
वाता॑पे॒ पीव॒ इद्भ॑व ॥ ८ ॥
यत्ते॑ सोम॒ गवा॑शिरो॒ यवा॑शिरो॒ भजा॑महे ।
वाता॑पे॒ पीव॒ इद्भ॑व ॥ ९ ॥
क॒र॒म्भ ओ॑षधे भव॒ पीवो॑ वृ॒क्क उ॑दार॒थिः ।
वाता॑पे॒ पीव॒ इद्भ॑व ॥ १० ॥
तं त्वा॑ व॒यं पि॑तो॒ वचो॑भि॒र्गावो॒ न ह॒व्या सु॑षूदिम ।
दे॒वेभ्य॑स्त्वा सध॒माद॑म॒स्मभ्यं॑ त्वा सध॒माद॑म् ॥ ११ ॥
इतर वेद सूक्तानि पश्यतु ।
आन्ना सूक्तम् का महत्व
आन्ना सूक्तम् के माध्यम से हमें समझने को मिलता है कि आन्ना केवल भौतिक पोषण का स्रोत नहीं है, बल्कि यह जीवन, सृष्टि, और आध्यात्मिक उन्नति का भी आधार है। यहाँ पर आन्ना सूक्तम् के महत्व की विभिन्न बिंदुओं के माध्यम से व्याख्या की गई है
- आन्ना ब्रह्मा के रूप में
आन्ना सूक्तम् के अनुसार, आन्ना (खाना) ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता) का पहला प्रकट रूप है और यह देवताओं के लिए अमरत्व का मूल है। यह जीवन देने वाला और जीवन समाप्त करने वाला है। - आन्ना देने का महत्व
दूसरों को खाने के लिए देना और स्वयं खाना शुरू करने से पहले आन्ना देना अत्यधिक praised किया गया है। जो व्यक्ति बिना दान किए खाता है, वह स्वयं खाद्य पदार्थ द्वारा ही नष्ट हो जाता है। आन्ना देने वाला व्यक्ति आन्ना प्राप्त करता है और उसे आन्ना देवता का आशीर्वाद मिलता है। - आन्ना प्राण और अपान का स्रोत
आन्ना को प्राण (जीवन शक्ति) और अपान (पंच प्राणों में से एक) दोनों माना जाता है। आन्ना ही वृद्धावस्था का कारण है और सभी संतान का उत्पत्ति भी इसी से होती है। - आन्ना देने से सुरक्षा
आन्ना देने वाला व्यक्ति देवताओं और पूर्वजों द्वारा संरक्षित रहता है। ऐसा व्यक्ति अमरता की प्राप्ति के लिए आन्ना देवता (खाने का व्यक्तित्व) की कृपा प्राप्त करता है। - सूर्य और वर्षा का स्रोत
आन्ना से सूर्य की अग्नि और वर्षा का जन्म होता है, जो पृथ्वी पर जीवन का पालन करती है। आन्ना सूक्तम् का पाठ आन्ना देवता का आशीर्वाद प्राप्त करने और सभी के लिए पोषणकारी भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
आन्ना सूक्तम् का सारांश
आन्ना सूक्तम् भोजन (आन्ना) के प्रति आभार और संयम के साथ भोजन करने के महत्व को उजागर करता है। यह आन्ना दान (भोजन का दान) के आध्यात्मिक और भौतिक लाभों पर प्रकाश डालता है और सभी जीवन के बीच आन्ना के माध्यम से आपसी संबंध को दर्शाता है।
आन्ना सूक्तम् के लाभ
लाभ | विवरण |
---|---|
स्वास्थ्य और दीर्घकालिक जीवन | सही आहार से जीवन की गुणवत्ता में सुधार और दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ |
आध्यात्मिक उन्नति | आन्ना दान से आत्मिक शांति और पुण्य की प्राप्ति |
जीवन की गुणवत्ता | प्राण और अपान का संतुलन बनाए रखने से जीवन में सुधार |
आध्यात्मिक सुरक्षा | देवताओं और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है |
प्राकृतिक संतुलन | सूर्य और वर्षा के तत्वों का सम्मान और संरक्षण |
धार्मिक और मानसिक शांति | भोजन के प्रति आभार और संयम से मानसिक शांति |
Anna Suktam Pdf
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