भगवान विष्णु के १० अवतार: धर्म, वैज्ञानिकता और प्राकृतिक अनुभव

भगवान विष्णु के १० अवतार: भगवान विष्णु, हिंदू धर्म के त्रिदेवों में से एक, सृष्टि के पालनहार माने जाते हैं। धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए विष्णु जी समय-समय पर विभिन्न अवतार लेते हैं। इन अवतारों को दशावतार के नाम से जाना जाता है। ये दस अवतार मानव समाज को धर्म के मार्ग पर चलने, सत्य का पालन करने और अधर्म से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। आइए, भगवान विष्णु के इन दस प्रमुख अवतारों का संक्षिप्त परिचय जानें:

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भगवान विष्णु के १० अवतार

भगवान विष्णु के १० अवतार धर्म, वैज्ञानिकता और प्राकृतिक अनुभव
भगवान विष्णु के १० अवतार धर्म

मत्स्य अवतार :

मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार है, जो हिन्दू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस अवतार के बारे में अनेक कथाएँ प्राचीन समय से प्रचलित हैं, जो सृष्टि, प्रलय और धर्म के संरक्षण के संदेश को साझा करती हैं। यहां मत्स्य अवतार के महत्वपूर्ण पहलुओं का विस्तारपूर्ण विवरण है:

कथा का संक्षेप:

मत्स्य अवतार की कथा महाप्रलय के समय शुरू होती है, जब ब्रह्मा का यज्ञ असुर हिरण्याक्ष ने बर्बाद कर दिया। असुरों के पाप के कारण, भगवान ब्रह्मा ने वेदों को समुद्र में डूबने से रोकने के लिए भगवान विष्णु से आग्रह किया। इस प्रलय के समय, भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर ब्रह्मा के वेदों को बचाया।

वैज्ञानिक संदर्भ:

मत्स्य अवतार का वैज्ञानिक संदर्भ भी है। इसे प्राचीन काल में समुद्री प्रलय और जल प्रलय के संदर्भ में विशेष माना गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, पृथ्वी के उपर्युक्त जीवन के नियमित परिवर्तन और प्राकृतिक आपातकालीन घटनाओं का समर्थन इस कथा में प्राप्त होता है।

धार्मिक अर्थ:

मत्स्य अवतार का धार्मिक संदेश प्राकृतिक आपातकाल में भगवान के संरक्षण में श्रद्धा और विश्वास को दिखाता है। इस अवतार के माध्यम से, भगवान विष्णु ने धर्म के संरक्षण के लिए समय-समय पर प्रकट होकर मानवता की रक्षा की है।

मत्स्य अवतार के चित्रण में अंतर:

  • प्राचीन कथाएं: प्राचीन साहित्य में मत्स्य अवतार का वर्णन विशेष रूप से महाभारत, पुराण और संहिताओं में पाया जाता है।
  • कला और संस्कृति: भारतीय कला में मत्स्य अवतार के रूप में चित्रण की गई कई कलाएं हैं, जो इस अवतार के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाती हैं।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण: वैज्ञानिकों के अनुसार, भूमंडल विज्ञान और पृथ्वी की प्राचीन इतिहास में जल प्रलय के संकेत मिलते हैं, जिनका संरक्षण मत्स्य अवतार ने किया था।

2. कूर्म अवतार

भगवान विष्णु का दूसरा अवतार, कूर्म अवतार, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण अवतार है। यह अवतार समुद्र मंथन के समय में भगवान विष्णु द्वारा अपनी आवाज का प्रसार करने के लिए धारण किया गया था। यहां कूर्म अवतार की कथा के महत्वपूर्ण पहलुओं का विवरण है:

कथा का संक्षेप:

कूर्म अवतार की कथा शुरू होती है जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन का समय आता है। समुद्र मंथन का उद्देश्य अमृत प्राप्ति था। देवताओं और असुरों के बीच आपसी सहमति न होने के कारण, समुद्र मंथन में समस्याएं आने लगती हैं।

कूर्म अवतार की प्रारंभिक उपस्थिति:

देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन के लिए समुद्र की धरती को लेकर युद्ध किया। समुद्र की धरती को स्थिर करने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म रूप धारण किया। वे समुद्र की धरती के नीचे जाकर उसे स्थिर करते हैं।

अमृत प्राप्ति:

समुद्र मंथन के दौरान, हलाहल (विष) उत्पन्न हो जाता है जो विश्व को नष्ट करने के लिए तैयार था। इस स्थिति में, भगवान विष्णु ने अपने आवाज का प्रसार करते हुए अमृत की प्राप्ति के लिए एक योजना बनाई।

अज्ञातता की भूमिका:

असुरों और देवताओं ने कूर्म को धरती के स्थिर होने के लिए निकटतम नारायणी नदी के किनारे आकर धरती को स्थिर करने के लिए उसका प्रयास किया और उसकी सहायता की।


3. वराह अवतार

वराह अवतार भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है, जो हिंदू धर्म के पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण है। इस अवतार की कथा भगवान विष्णु के उपासकों और वेदों में व्याप्त है। वराह अवतार के बारे में निम्नलिखित ब्लॉग लेख में इसका विस्तारपूर्ण वर्णन है:

कथा का परिचय:

वराह अवतार की कथा संबंधित है भगवान विष्णु के द्वारा लिया गया इस अवतार की कथा इस पृथ्वी उद्धार करने और सम्प्राप्त है। इस अवतार के विविध पहलूओं का वर्णन है:

अवतार का उद्देश्य:

वराह अवतार का प्रमुख उद्देश्य था पृथ्वी के उद्धार और नरकासुर के विनाश का। नरकासुर ने पृथ्वी को पाताल में धकेल दिया था, और भगवान विष्णु ने उसे उसकी प्राकृतिक स्थिति में पुनर्थान करने के लिए वराह रूप धारण किया।

कथा का विस्तार:

वराह अवतार के अनुसार, भगवान विष्णु ने स्वर्ग में समुद्र का मंथन किया था, और समुद्र मंथन के दौरान धरती के नीचे लटक रही थी। इस समय पर, नरकासुर ने उसे पाताल में धकेल दिया था। भगवान विष्णु ने अपनी विशाल वराह रूप धारण किया और धरती को समुद्र से बाहर निकालकर उसे स्थिर किया।

युद्ध और विजय:

वराह ने नरकासुर के साथ एक महान युद्ध किया और उसे मार डाला। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने पृथ्वी को उसकी प्राकृतिक स्थिति में पुनर्थान किया और उसे नरकासुर के अत्याचार से मुक्त कर दिया।

महत्व:

वराह अवतार का महत्व भगवान विष्णु के धर्म के साथ ही पृथ्वी के संरक्षण के लिए भी है। इस अवतार के द्वारा, विष्णु ने पृथ्वी को नरकासुर के अत्याचार से बचाया और उसके लिए सम्पूर्ण ब्रह्मांड के लिए उदाहरण स्थापित किया।

वराह अवतार की कथा भगवान के भक्तों के लिए उनके साधना मार्ग को प्रेरित करती है, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा और संरक्षण की भावना उन्हें प्राप्त होती है।


4. नरसिंह अवतार

नरसिंह अवतार भगवान विष्णु का चौथा अवतार है, जो हिंदू धर्म के पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण है। यह अवतार हिरण्यकश्यप राक्षस के वध के लिए जाना जाता है। नरसिंह अवतार की कथा निम्नलिखित है:

कथा का परिचय:

नरसिंह अवतार के समय की कथा यह है कि राक्षस हिरण्यकश्यप ने अपनी तपस्या और वरदान की शक्ति से अमरत्व की प्राप्ति कर ली थी। उसका अमर होने का भाव उसे अत्याचारी बना दिया था, जो देवताओं और मनुष्यों के लिए भयानक था। हिरण्यकश्यप ने अपनी राजसी शक्ति से अपनी संतान पर प्रभुत्व स्थापित किया था और वेदों तथा यज्ञों की अवहेलना कर रहा था।

अवतार का उद्देश्य:

नरसिंह अवतार का मुख्य उद्देश्य था हिरण्यकश्यप के अत्याचारी राज्य का नाश करना और उसके अत्याचार से प्रहार करना। उसने हिरण्यकश्यप को उसके पापों का परिणाम देने के लिए अपना नरसिंह रूप धारण किया था।

कथा का विस्तार:

नरसिंह अवतार के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह रूप धारण किया। हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए उन्होंने वहां पर उभयाचारी पक्षपात से किया था। नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को विध्वंस कर दिया और उसके अत्याचारी शासन को समाप्त किया।

महत्व:

नरसिंह अवतार उस विशेष कार्य के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और अधर्म के अन्धकार को दूर किया। इस अवतार के माध्यम से, भगवान विष्णु ने अपने भक्तों को दिखाया कि वह सदैव उनके साथ हैं और उन्हें संरक्षित रखने के लिए तैयार हैं। यह अवतार श्रद्धा और भक्ति के साथ विशेष रूप से याद किया जाता है।


5. वामन अवतार

भगवान विष्णु का पांचवां अवतार, वामन अवतार, हिंदू धर्म के पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण कथा है। यह अवतार भगवान विष्णु द्वारा उसके भक्त प्रह्लाद के परिवार की रक्षा के लिए किया गया था। इसकी कथा निम्नलिखित है:

कथा का परिचय:

वामन अवतार की कथा अनुसार, देवताओं के राजा इंद्रा के बराबर असुर राजा बलि बहुत ही प्रबल और धर्मात्मा थे। उनके बलिदानी और धार्मिक यज्ञों ने उन्हें स्वर्ग की सीमा के बाहर ले जाने का फैसला कर दिया था। बलि के यज्ञ में देवताओं का अधिकार कमजोर हो गया था और वे असुरों के राज्य से विमुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु के पास गए।

अवतार का उद्देश्य:

वामन अवतार का मुख्य उद्देश्य था बलि राजा के अत्याचारी शासन को समाप्त करना और उसकी बलिदानी प्रवृत्ति को अवरुद्ध करना। भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके बलि के यज्ञ में गए और उससे तीन बार दान मांगा, जिससे बलि ने उसकी मान्यता की और उसे उच्च स्थान पर यजमान के रूप में स्वीकार किया।

कथा का विस्तार:

वामन अवतार के समय, भगवान विष्णु ने बलि से तीन कदम का वचन लिया, जिससे उसने उसके अत्याचारी राज्य को समाप्त किया। भगवान वामन ने एक दीप्तिमान रूप में उसका वध किया और उसे पाताल लोक में जकड़ लिया। बलि की निष्कलंक सेवा को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और उसे पुनः स्वर्ग की प्राप्ति करवाई।

महत्व:

वामन अवतार ने धर्म और अधर्म के बीच युद्ध की महत्वपूर्ण सीख दी है। यह अवतार भगवान की सामर्थ्य और उसके भक्तों के प्रति प्रेम का प्रतीक है, जो उन्हें सदैव रक्षित और समर्थन प्रदान करते हैं। वामन अवतार का उदाहरण भक्ति और विश्वास का अद्वितीय उदाहरण है, जो हर भक्त को आदर्श रूप से प्रेरित करता है।


6. राम अवतार

राम अवतार भगवान विष्णु के सातवें अवतार में से एक हैं, जिन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में जाना जाता है। राम अवतार के बारे में श्रीमद्भागवत और रामायण महाकाव्य में विस्तार से वर्णन है। रामायण में रामचंद्र जी की अद्वितीय कथाएं और महत्वपूर्ण घटनाएं प्रस्तुत हैं, जो उनके अवतार की महिमा को दर्शाती हैं।

जन्म और बचपन:

रामचंद्र जी का जन्म अयोध्या नगरी में राजा दशरथ और कौशल्या के घर में हुआ था। उनका जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे हम भगवान राम की जन्म-जयंती के रूप में मनाते हैं। राम के बचपन का समय उनके आदर्श जीवन और उनकी भक्ति के कई प्रमुख घटनाओं से भरा हुआ है, जैसे की गुरुकुल में उनकी शिक्षा आदि।

विवाह और वनवास:

राम का विवाह सीता देवी से हुआ था, जो विश्व में प्रसिद्ध सीता-राम जोड़ी के रूप में जानी जाती है। उनके विवाह के बाद, राम, सीता और उनके भाई लक्ष्मण ने अपने पिता के वचन का पालन करते हुए 14 वर्ष का वनवास गुजारा। वनवास में भगवान राम ने अनेक असुरों और राक्षसों से युद्ध किया और धर्म की रक्षा की।

अयोध्या में वापसी और राज्याभिषेक:

अपने वनवास पूरा करने के बाद, भगवान राम ने अयोध्या में अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वापसी की। उन्होंने राक्षस रावण को मारकर माता सीता को मुक्त किया और अयोध्या में राज्याभिषेक किया। उनके शासनकाल में ‘रामराज्य’ का संविधान था, जिसमें न्याय, सम्मान, और समृद्धि थी।

महत्व:

राम अवतार का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि उनके जीवन और कार्य धर्म, न्याय, और सच्चाई की प्रतिमूर्ति के रूप में हमें दिखाई देते हैं। रामायण में उनकी अद्वितीय भक्ति, वचनवद्धता, और धर्म परायणता के उदाहरण हमें सच्चे धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका अवतार लोक में धर्म की विजय और अधर्म का नाश करने के लिए हुआ था, जो हमें आज भी उनके जीवन के मार्गदर्शन में सहायक होता है।


7. कृष्ण अवतार

कृष्ण अवतार भगवान विष्णु के दसवें अवतार में से एक हैं, जो हिंदू धर्म के प्रमुख देवता माने जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म माथुरा नगरी में विष्णु के अंशरूप में हुआ था। कृष्ण अवतार के बारे में महाभारत, भागवत पुराण और गीता के रूप में विस्तार से वर्णन है। उनके अवतार का प्रमुख उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करना था।

जन्म और बचपन:

कृष्ण जी का जन्म रात्रि के काल में विष्णु के अंशरूप में हुआ था, जब उनके पिता वसुदेव और माता देवकी को कंस नामक असुर द्वारा कैद में डाला गया था। भगवान कृष्ण का बचपन गोकुल में नंद और यशोदा के पास बिता, जहां उन्होंने अपनी लीलाएं और महान कार्य किए।

बाललीला:

कृष्ण के बालकालीन लीलाएं और गोपियों के संग रासलीला विशेष रूप से मशहूर हैं। उनके साथ गोपियों का रास लीला, माखन चोरी, गोपीयों के संग वनवास, गोवर्धन पर्वत का उठान, और कई अन्य लीलाएं उनके बचपन के महत्वपूर्ण हालात हैं।

गीता उपदेश:

कृष्ण अवतार का एक महत्वपूर्ण पहलू उनका भगवद् गीता में उपदेश है। भगवद् गीता में उन्होंने अर्जुन को धर्म के तत्वों, कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग के माध्यम से जीवन के उच्चतम आदर्शों का उपदेश दिया।

महाभारत का सारथी:

कृष्ण अवतार महाभारत युद्ध के समय अर्जुन के सारथी के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अर्जुन को धर्मयुद्ध का मार्ग दिखाकर महाभारत युद्ध में धर्म की विजय के लिए मार्गदर्शन किया।

विश्वास:

कृष्ण अवतार का विश्वास हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें उनकी लीलाएं, उपदेश, और कार्यों को ध्यान में रखकर भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति की जाती है। उनकी अद्वितीय व्यक्तित्व और कर्मयोगी भावना हमें सच्चे धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।


8. परशुराम अवतार

परशुराम अवतार भगवान विष्णु के आठवें अवतार में से एक है, जिसे हिंदू धर्म में महाभारत काल में जन्म लेने वाले ब्राह्मण ऋषि जामदग्नि के पुत्र माना जाता है। उनका जन्म कर्तव्य परायण और धर्मात्मा ऋषि के रूप में हुआ था। परशुराम अवतार के बारे में कई महत्वपूर्ण कथाएँ और उनके योगदान हैं।

कथा का परिचय:

परशुराम का जन्म जामदग्नि ऋषि और उनकी पत्नी रेणुका के घर हुआ था। जामदग्नि ऋषि का यज्ञदानशीलता में उसके शक्तिशाली तपस्या और अनुग्रहों से उनका जन्म हुआ था। परशुराम का असली उद्देश्य असुरों और क्षत्रियों के विनाश के लिए था।

अवतार का उद्देश्य:

परशुराम अवतार का मुख्य उद्देश्य हिंसा और अधर्म का समाप्त करना था। उन्होंने कई बार असुरों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए अपनी आत्मा का त्याग किया। वे कई क्षत्रियों को मारकर उनके साम्राज्य का अंत किया और धर्म की रक्षा की।

कथा का विस्तार:

परशुराम अवतार के कई प्रसिद्ध कथाएँ हैं। उनमें से एक कथा यह है कि परशुराम ने अपने पिता जामदग्नि ऋषि की ब्रह्महत्या का प्रतिशोध लेने के लिए कई क्षत्रिय राजा व उनकी सम्पत्तियों का विनाश किया। उन्होंने अपनी तापस्या और ध्यान से ब्रह्मांड को शांति प्रदान की और धर्म के परायण होने का संदेश दिया।

महत्व:

परशुराम अवतार ने धर्म और न्याय की रक्षा करने का महत्वपूर्ण संदेश दिया। उनके कार्यों और जीवन ने धर्म के प्रति समर्पण और कठोर साधना का प्रतीक प्रस्तुत किया। उनका अवतार भक्ति, सेवा, और समर्पण के अद्वितीय उदाहरण के रूप में जाना जाता है, जो हर भक्त को प्रेरित करता है धर्म के पथ पर चलने के लिए।


9. बुद्ध अवतार

बुद्ध अवतार भगवान विष्णु के दसवें अवतार में से एक हैं, जो कि भगवान विष्णु के अंशरूप में आए थे। बुद्ध अवतार का उद्देश्य मुख्य रूप से धर्म की पुनर्स्थापना और दुःख से मुक्ति के मार्ग का प्रस्ताव करना था। उन्होंने अपने जीवन में ज्ञान, अहिंसा, और करुणा के सिद्धांतों का प्रचार किया और समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

जीवन:

बुद्ध का जन्म लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब नेपाल में स्थित है। उनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम माया था। उनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व हुआ था। बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ था, जिन्होंने अपने जीवन में अध्यात्मिक खोज की और अनंतता के कारणों का विचार किया।

महत्वपूर्ण घटनाएँ:

  1. महाबोधि ग्रहण: बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपने जीवन में विशेष महत्वपूर्ण पलों को जीवन्त किया। महाबोधि ग्रहण, जहां उन्होंने अनंत ज्ञान की प्राप्ति की, उनकी धार्मिक धारणाएं मानवता के लिए मार्गदर्शन करती हैं।
  2. धम्मपद: उनके उपदेशों का संग्रह, जो कि उनकी विशेष विचारशीलता और धार्मिक सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करता है।
  3. संघ प्रारंभ: बुद्ध ने संघ की स्थापना की, जिसने उनके अनुयायियों को उनकी उपदेशों को बांटने और लोक के हित में सेवा करने के लिए संगठित किया।

सिद्धांत:

बुद्ध के सिद्धांत अहिंसा, शांति, और मानवता के प्रति करुणा पर आधारित थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य, असंयम, अपरिग्रह, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, और अपरिग्रह जैसे महत्वपूर्ण गुणों का पालन किया। उनका उपदेश है कि धर्म का मार्ग भक्ति, ज्ञान, और कर्मयोग के माध्यम से होता है।

विस्तार:

बुद्ध अवतार का संदेश धर्म, शांति, और ब्रह्मचर्य के माध्यम से मानव जीवन को ध्यान में रखने के लिए है। उनके उपदेश और जीवनयात्रा ने अनेकों को मानवता और शांति के मार्ग पर प्रेरित किया है। उनका अवतार धर्म की समझ, शिक्षा, और पुनर्स्थापना के लिए महत्वपूर्ण है, जो आज भी लोगों के जीवन में उजागर है।


10. कल्कि अवतार

कल्कि अवतार भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार माने जाते हैं, जिन्हें भविष्य में आकर धर्म की पुनर्थापना के लिए प्रेरित किया गया है। इस अवतार को विशेष रूप से कलियुग के अंत में प्रकट होने का कार्य सौंपा गया है। भगवत पुराण और अन्य पुराणों में कल्कि अवतार के वर्णन किया गया है, जो कि समाज में अधर्म, अन्याय और विपरीतताओं के विनाश के लिए आएंगे।

कल्कि अवतार के विशेषताएँ:

  1. जन्म:
    कल्कि अवतार का जन्म कलियुग के अंत में होगा। उनका जन्म सम्पूर्ण शांति और धर्म की पुनर्थापना के लिए होगा।
  2. मिशन:
    कल्कि अवतार का मुख्य मिशन अधर्म को समाप्त करना और धर्म की स्थापना करना होगा। उनका उद्देश्य लोककल्याण और सबके हित में रहेगा।
  3. लक्षण:
    कल्कि अवतार के लक्षण में उनकी शक्ति, विचारशीलता, और धर्मप्रेम की अद्वितीयता होगी। वे विष्णु भगवान के आदेशों के अनुसार कर्म करेंगे और अधर्म के नाश के लिए संयमित क्रोध का प्रदर्शन करेंगे।
  4. क्रियाएँ:
    कल्कि अवतार आकर दुष्टों के विनाश के लिए विशेष क्रियाएँ करेंगे और समाज को न्याय और शांति के मार्ग पर लाएंगे। उनके प्रकट होने से पूर्व अधर्म और अन्याय की वृद्धि होगी, जिसका उन्मूलन उन्हीं के आगमन से होगा।
  5. समाप्ति:
    कल्कि अवतार के आगमन के बाद, धर्म का उद्धार होगा और समाज में समृद्धि और शांति की स्थापना होगी। उनके आगमन के बाद, सत्य, न्याय, और धर्म का राज्य स्थापित होगा।

कल्कि अवतार का वर्णन हिंदू धर्म के प्रमुख पुराणों और ग्रंथों में मिलता है। यह अवतार भगवान के अंतिम अवतार के रूप में माना जाता है, जिसका उद्देश्य अधर्म को समाप्त करना और धर्म की पुनर्थापना करना है। इस अवतार के आगमन का इंतजार हम सभी कर रहे हैं, ताकि समाज में समृद्धि, शांति, और धर्म का उद्धार हो सके।

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